ओ३म्
अ इ उ ण् । ऋ ऌ क् । ए ओ ङ् । ऐ औ च् । ह य व र ट् । लँ ण् । ञ म ङ ण न म् । झ भ ञ् । घ ढ ध ष् । ज ब ग ड द श् । ख फ छ ठ थ च ट त व् । क प य् । श ष स र् । ह ल् ।
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
October 23, 2010
By 1.2.47 there is no प्रातिपदिकम् ending a long vowel in the neuter gender.
ज्ञान + सुँ 4.1.2 = ज्ञान + अम् 7.1.24 = ज्ञानम् 6.1.107
ज्ञान + सुँ (सम्बुद्धि:) = ज्ञान + अम् 7.1.24 = ज्ञान् अ + अ म् = ज्ञान् अ म् 6.1.107 = ज्ञान + म् using 6.1.85 = (हे) ज्ञान 6.1.69
In the neuter, as a general rule, the same form will be there in the nominative and accusative case, because of 7.1.23-25, 7.1.19-20. Sometimes the accusative may have alternate forms.
In 1.4.17-18, सुँ etc. refer to all the प्रत्यया: prescribed from 4.1.2 to the end of Chapter 5.
1.4.1-end of 2.2 is the अधिकार: of 1.4.1 “एका संज्ञा”
पद-संज्ञा triggers 8.1.16-8.3.54; भ-संज्ञा triggers 6.4.129 to end of 6.4.
ज्ञान + औ 4.1.2 = ज्ञान + शी 7.1.19 = ज्ञान + ई 1.3.8 = ज्ञान has भ-संज्ञा (1.4.18) that brings 6.4.148
6.4.148 stopped by the वार्त्तिकम् – औङः श्यां प्रतिषेधो वाच्यः
Final form is ज्ञाने 6.1.87
ज्ञान + जस्/शस् 4.1.2 = ज्ञान + शि 7.1.20, 1.1.55 (because शि is अनेकाल्-आदेश:) = ज्ञान + इ 1.3.8 = by 1.1.42, 7.1.72 we get a नुँम् augment for the अङ्गम् ज्ञान
= ज्ञानन् + इ 7.1.72, 1.1.47 = ज्ञानानि 6.4.8, 1.1.42, 1.1.65
तृतीया-प्रभृति राम-शब्दवत् प्रक्रिया
सर्व-शब्द: नपुंसके –
प्रथमा/द्वितीया ज्ञान-वत्
तृतीया-प्रभृति पुंलिङ्ग-सर्व-शब्दवत्
5.3.92-94 prescribes डतर/डतम
कतर + सुँ 4.1.2 = कतर + अद् 7.1.25, 1.3.3 – the टि of कतर is simply the ending अकार:
= कतर् + अद् 6.4.143 = कतरद् 8.2.39 = कतरत्/कतरद् 8.4.56
कतर + सुँ (सम्बुद्धि:) = कतरत्/द्
no special rules required for द्वि in the neuter
त्रि + जस्/शस् = त्रि + शि 7.1.20, 1.1.55 = त्रिन् + इ 7.1.72, 1.1.47, 1.3.8 = त्रीनि 1.1.42, 6.4.8 = त्रीणि 8.4.2
वारि + सुँ/अम् 4.1.2 = वारि 7.1.23
रामायणम्
अनुमान्य 3.4.21, 7.1.37
मन् + णिच् 3.1.26 = मानि 7.2.116
अनु मानि + क्त्वा 3.4.21 = अनुमानि ल्यप् (य) 7.1.37 = अनुमान्य 6.4.51
7.4.59, 60, 62, 66 – important rules for doing operations in the अभ्यास-भाग:
नि हन् + लिँट् 3.2.115 = नि हन् + तिप् 3.4.78 = नि हन् णल् 3.4.82 = नि घन् णल् 7.3.54 = नि झ घन् णल् (अ 1.3.7, 1.3.3) 6.1.8, 7.4.60, 7.4.62 = नि झ घान् अ 7.2.116 = निजघान 8.4.54
Applying 3.4.78, immediately scan remaining rules in 3.4
एनम् 2.4.34 अन्वादेशे
प्रति + पद् + णिच् = प्रति + स्था + णिच् = सम् + स्था + णिच् same meanings in this context
वचनाद् + हत्वा = वचनाद् धत्वा 8.4.62 – गीता 6.42
पद् + णिच् = पादि 7.2.116
प्रति अपादयत् 6.4.71, 3.4.78, 3.4.100, 3.1.68, 7.3.84, 6.1.78
स्था + णिच् 3.1.26 = स्थापि 7.3.36
स्थापयाम् 3.1.35, 2.4.81, 6.4.55 अस् + लिँट् = स्थापयाम् अस् अस् + णल् =स्थापयाम् आस 7.4.60, 7.4.70, 7.2.116
वानरर्षभ: 2.1.56
दृश् + सन् 3.1.7 = दृश् + स 7.2.10 (no इट्), 1.2.10 (no गुण:)
दृश्स् दृश् स 6.1.9 = ददृश्स 7.4.60, 66, 1.1.51 = दिदृश्स 7.4.79 = दिदृश्सु 3.2.168, 6.4.48 = दिदृक्षु 8.2.36, 8.2.41, 8.3.59
non-causative वानरा: दिश: प्रतस्थु:
वानरान् 1.4.52, 2.3.2
ओ३म्
अ इ उ ण् । ऋ ऌ क् । ए ओ ङ् । ऐ औ च् । ह य व र ट् । लँ ण् । ञ म ङ ण न म् । झ भ ञ् । घ ढ ध ष् । ज ब ग ड द श् । ख फ छ ठ थ च ट त व् । क प य् । श ष स र् । ह ल् ।
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
November 13, 2010
वारि + सुँ/अम् 4-1-2 = वारि 7-1-23
वारि + औ/औट् 4-1-2 = वारि + शी 7-1-19 = वारिनुँम् + ई 1-3-8 , 7-1-73, 1-1-47 = वारिनी 1-3-2, 1-3-3 = वारिणी 8-4-2
वारि + जस्/शस् 4-1-2 = वारि + शि 7-1-20 (The शि-प्रत्ययः gets सर्वनामस्थान-सञ्ज्ञा by 1-1-42) = वारिनुँम् +
1-3-8, 7-1-72 (could also use 7-1-73), 1-1-47 = वारीनि 6-4-8, 1-3-2, 1-3-3 = वारीणि 8-4-2
वारि + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = वारि 7-1-23 – By 1-1-63, the अङ्गकार्मयम्, namely गुणः by 7-3-108, is stopped.
However, 1-1-63 is not always followed in the language. So, we have an alternate form where 7-3-108 is allowed to operate. Then we get:
वारि + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = वारि 7-1-23 = वारे 7-3-108
वारि + टा 4-1-2, वारि has the घि-सञ्ज्ञा by 1-4-7 = वारि + ना 7-3-120 = वारिणा 8-4-2
वारि + भ्याम् 4-1-2 = वारिभ्याम्
वारि + भिस् 4-1-2 = वारिभिः 8-2-66, 8-3-15
वारि + ङे 4-1-2 = वारि has घि-सञ्ज्ञा by 1-4-7 and by 7-3-111, गुणादेशः प्राप्तः. By 7-1-73, नुँमागमः प्राप्तः. By the वार्त्तिकम् वृद्ध्यौत्व॰, नुँम् gets precedence by पूर्व-विप्रतिषेधः = वारिन् + ए 1-3-8, 7-1-73, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = वारिणे 8-4-2
वारि + भ्यस् 4-1-2 = वारिभ्यः 8-2-66, 8-3-15
वारि + ङसिँ 4-1-2 = वारिनुँम् + अस् 1-3-8, 1-3-2, 7-1-73, 1-1-47 = वारिनस् 1-3-2, 1-3-3 = वारिनः 8-2-66, 8-3-15 = वारिणः 8-4-2
वारि + ङस् 4-1-2 = वारिनुँम् + अस् 1-3-8, 7-1-73, 1-1-47 = वारिनस् 1-3-2, 1-3-3 = वारिनः 8-2-66, 8-3-15 = वारिणः 8-4-2
वारि + ओस् 4-1-2 = वारिन् + ओस् 7-1-73, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = वारिनोः 8-2-66, 8-3-15 = वारिणोः 8-4-2
वारि + आम् 4-1-2 = By 7-1-54 नुँडागमः प्राप्तः and by 7-1-73 नुँमागमः प्राप्तः. नुँट् comes by the वार्त्तिकम् नुँमचिर॰ = वारि + नाम् 7-1-54, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3 = वारीणाम् 6-4-3, 8-4-2
वारि + ङि 4-1-2 = By 7-3-119, ङि would get औ-आदेशः and by 7-1-73 वारि gets the नुँमागमः. Here by the वार्त्तिकम् वृद्ध्यौत्व॰, नुँम् gets precedence by पूर्व-विप्रतिषेधः = वारिनि 1-3-8, 7-1-73, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = वारिणि 8-4-2
वारि + सुप् 4-1-2 = वारिषु 1-3-3, 8-3-59
दधि-शब्दः – प्रथमा/द्वितीया वारि-वत्
दधि + टा 4-1-2 = दधनँङ् + आ 1-3-7, 7-1-75, 1-1-53 = दधन् + आ 1-3-2, 1-3-3 = दध्ना 6-4-134
दधि + ङे 4-1-2 = दधनँङ् + ए 1-3-8, 7-1-75, 1-1-53 = दधन् + ए 1-3-2, 1-3-3 = दध्ने 6-4-134
दधि + अस् (ङसिँ/ङस्) 4-1-2 = दधनँङ् + अस् 7-1-75, 1-1-53 = दधन् + अस् 1-3-2, 1-3-3 = दध्नः 6-4-134, 8-2-66, 8-3-15
दधि + ओस् 4-1-2 = दधनँङ् + ओस् 7-1-75, 1-1-53 = दधन् + ओस् 1-3-2, 1-3-3 = दध्नोः 6-4-134, 8-2-66, 8-3-15
दधि + आम् 4-1-2 = दधनँङ् + आम् 7-1-75, 1-1-53 = दधन् + आम् 1-3-2, 1-3-3 = दध्नाम् 6-4-134
दधि + ङि 4-1-2 = दधनँङ् + इ 1-3-8, 7-1-75, 1-1-53 = दधन् + इ 1-3-2, 1-3-3 = दध्नि/दधनि 6-4-136
दधि + सुप् 4-1-2 = दधिषु 1-3-3, 8-3-59
दधि declines like वारि – except तृतीया-प्रभृति अजादौ प्रत्यये परे 7-1-75
मधु uses same rules as those required for वारि
धातृ-शब्दः – प्रथमा/द्वितीया same rules as required for वारि (धातृ, धातृणी, धातॄणि) Please note that in the case of धातॄणि, the गुणादेश: which would have come by 7-3-110 is stopped by the वार्त्तिकम् वृद्ध्यौत्व॰
हे धातृ + सुँ (सम्बुद्धि:) = हे धातृ 7-1-23 / धात: 7-1-23, 7-3-108, 1-1-51, 8-3-15
Without पुंवद्भावः –
धातृ + टा = धातृ + आ 1-3-7 = धातृणा 7-1-73, 8-4-1 वार्त्तिकम् ऋवर्णान्नस्य॰ (Note: In the case of वारि and मधु 7-3-120 is used because they have घि-सञ्ज्ञा)
धातृ + ङे 4-1-2 = धातृन् + ए 1-3-8, 7-1-73, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = धातृणे by 8-4-1 वार्त्तिकम् ऋवर्णान्नस्य॰
धातृ + अस् (ङसिँ/ङस्) 4-1-2 = धातृनुँम् + अस् 7-1-73, 1-1-47 = धातृनस् 1-3-2, 1-3-3 = धातृनः 8-2-66, 8-3-15 = धातृणः by the वार्त्तिकम् ऋवर्णान्नस्य॰
धातृ + ओस् 4-1-2 = धातृन् + ओस् 7-1-73, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = धातृनोः 8-2-66, 8-3-15 = धातृणोः by the वार्त्तिकम् ऋवर्णान्नस्य॰
धातृ + आम् 4-1-2 = By 7-1-54 नुँडागमः प्राप्तः and by 7-1-73 नुँमागमः प्राप्तः. नुँट् comes by the वार्त्तिकम् नुँमचिर॰ = धातृ + नाम् 7-1-54, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3 = धातॄणाम् 6-4-3, वार्त्तिकम् ऋवर्णान्नस्य॰
धातृ + ङि 4-1-2 = धातृनि 1-3-8, 7-1-73 (वार्त्तिकम् will stop गुण: mandated by 7-3-110), 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = धातृणि by the वार्त्तिकम् ऋवर्णान्नस्य॰
In the case of पुंवद्भावः – धातृ + टा = धातृ + आ 1-3-7 = धात्रा 6-1-77
Similarly, remaining forms also follow those of a ऋकारान्त-पुँल्लिङ्ग-शब्द: – धात्रे, धातुः, धात्रोः, धातरि
रामायणम्
ओ३म्
बल + इनिँ 5-2-115 = बल् इन् 1-3-2, 1-4-18, 6-4-148
स्तीर्ण (स्तॄ) – 7-2-11, 7-1-100, 1-1-51, 8-2-42, 8-2-77, 8-4-1
पु प्लु + ए 3-4-81 then 6-4-77
ॐ
अ इ उ ण् । ऋ ऌ क् । ए ओ ङ् । ऐ औ च् । ह य व र ट् । लँ ण् । ञ म ङ ण न म् । झ भ ञ् । घ ढ ध ष् । ज ब ग ड द श् । ख फ छ ठ थ च ट त व् । क प य् । श ष स र् । ह ल् ।
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
November 27, 2010
लिह् + सुँ 4-1-2 = लिह् + स् 1-3-2 = लिह् 6-1-68. Here “लिह्” gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-14. [Even though सुँ has taken लोपः, because of 1-1-62 we still have प्रत्यय-लक्षणम् ] So now we get लिढ् 8-2-31 = लिड् 8-2-39 = लिट्, लिड् 8-4-56
लिह् + औ 4-1-2 = लिहौ
लिह् + जस् 4-1-2 = लिहः 1-3-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
लिह् + अम् 4-1-2 = लिहम्
लिह् + शस् 4-1-2 = लिहः 1-3-8, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
लिह् + भ्याम् 4-1-2. Here लिह् gets the पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 and so we get लिढ् + भ्याम् 8-2-31 = लिड्भ्याम् 8-2-39
लिह् + भिस् 4-1-2. Here लिह् gets the पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 and so we get लिढ् + भिस् 8-2-31 = लिड्भिः 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
लिह् + भ्यस् 4-1-2. Here लिह् gets the पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 and so we get लिढ् + भ्यस् 8-2-31 = लिड्भ्यः 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
लिह् + ङसिँ 4-1-2 = लिहः 1-3-8, 1-3-2, 8-2-66, 8-3-15
लिह् + ङस् 4-1-2 = लिहः 1-3-8, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
लिह् + ओस् 4-1-2 = लिहोः 8-2-66, 8-3-15
लिह् + आम् 4-1-2 = लिहाम्
लिह् + सुप् 4-1-2 = लिह् + सु 1-3-3. Here लिह् gets the पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 and so we get लिढ् + सु 8-2-31 = लिड् + सु 8-2-39 – The सकारः following a डकारः gets the धुँडागमः optionally.
[धुँट्-पक्षे] लिड् + सु = लिड् + ध्सु 1-3-2, 1-3-3, 1-1-46 – By 8-4-41, धकारस्य ढकारः प्राप्तः – However, by 8-4-42, this ढकारादेशः is stopped. So then we have लिड् + त्सु 8-4-55 = लिट्त्सु 8-4-55 – The तकारः is असिद्धः to 8-4-48. Therefore, it does not optionally become थकारः by वार्त्तिकम् चयो द्वितीयाः॰
[धुँडभाव-पक्षे] लिड् + सु – By 8-4-41, सकारस्य षकार: प्राप्तः – However, by 8-4-42, this षकारादेशः is stopped. So then we have लिट्सु 8-4-55 – The टकारः is असिद्धः to 8-4-48. Therefore, it does not optionally become ठकारः by वार्त्तिकम् चयो द्वितीयाः॰
दुह् + सुँ 4-1-2 = दुह् + स् 1-3-2 = दुह् 6-1-68. Here दुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-14. [Even though सुँ has taken लोपः, because of 1-1-62 we still have प्रत्यय-लक्षणम् ] So now we get दुघ् 8-2-32 [Even though this सूत्रम् is असिद्धम् to 8-2-31, it is an अपवादः to 8-2-31, and it must be given a chance to operate in its sub-domain – due to वचनसामर्थ्यम् ] = धुघ् 8-2-37 = धुग् 8-2-39 = धुक्, धुग् 8-4-56
दुह् + औ 4-1-2 = दुहौ
दुह् + जस् 4-1-2 = दुहः 1-3-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
दुह् + अम् 4-1-2 = दुहम्
दुह् + शस् 4-1-2 = दुहः 1-3-8, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
दुह् + भ्याम् 4-1-2. Here दुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now we get दुघ् + भ्याम् 8-2-32 = धुग्भ्याम् 8-2-37, 8-2-39
दुह् + भिस् 4-1-2. Here दुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now we get दुघ् + भिस् 8-2-32 = धुग्भिः 8-2-37, 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
दुह् + भ्यस् 4-1-2. Here दुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now we get दुघ् + भ्यस् 8-2-32 = धुग्भ्यः 8-2-37, 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
दुह् + ङसिँ 4-1-2 = दुहः 1-3-8, 1-3-2, 8-2-66, 8-3-15
दुह् + ङस् 4-1-2 = दुहः 1-3-8, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
दुह् + ओस् 4-1-2 = दुहोः 8-2-66, 8-3-15
दुह् + आम् 4-1-2 = दुहाम्
दुह् + सुप् 4-1-2. Here दुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now we get दुघ् + सु 8-2-32 = धुग् + सु 8-2-37, 8-2-39 = धुग् + षु 8-3-59 = धुक्षु 8-4-55
अनडुह् + सुँ 4-1-2 = अनडुह् + स् 1-3-2 = अनडु आ ह् + स् 1-1-43, 7-1-98, 1-3-3, 1-1-47 = अनड्वाह् + स् 6-1-77 = अनड्वा न् ह् + स् 7-1-82, 1-3-2, 1-3-3, 1-1-47 = अनड्वान्ह् 6-1-68 = अनड्वान् 8-2-23
[Note:
a) After 8-2-23 applies, 8-2-7 doesn’t get a chance to apply (and remove the ending नकार:) because of 8-2-1.
b) Also, 8-2-31 doesn’t get a chance to apply (and change the ending हकार: to a ढकार:) because it has to wait for 8-2-23 (which is an earlier rule in the त्रिपादी section.) After 8-2-23 applies and the हकार: is lost then 8-2-31 cannot apply.]
अनडुह् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = अनडुह् + स् 1-3-2 = अनडु अ ह् + स् 7-1-99, 1-3-3, 1-1-47 = अनड्वह् + स् 6-1-77 = अनड्व न् ह् + स् 7-1-82, 1-3-2, 1-3-3, 1-1-47 = अनड्वन्ह् 6-1-68 = अनड्वन् 8-2-23
[Note: अनुवृत्ति: of “आत्” comes from 7-1-80 into 7-1-82, that is why 7-1-82 does not over-rule 7-1-98 or 7-1-99. It can only apply after 7-1-98 or 7-1-99]
अनडुह् + औ 4-1-2 = अनडु आ ह् + औ 1-1-43, 7-1-98, 1-3-3, 1-1-47 = अनड्वाहौ 6-1-77
अनडुह् + जस् 4-1-2 = अनडुह् + अस् 1-3-7, 1-3-4 = अनडु आ ह् + अस् 1-1-43, 7-1-98, 1-3-3, 1-1-47 = अनड्वाहः 6-1-77, 8-2-66, 8-3-15
अनडुह् + अम् 4-1-2 = अनडु आ ह् + अम् 1-1-43, 7-1-98, 1-3-3, 1-1-47 = अनड्वाहम् 6-1-77
अनडुह् + औट् 4-1-2 = अनडुह् + औ 1-3-3 = अनडु आ ह् + औ 1-1-43, 7-1-98, 1-3-3, 1-1-47 = अनड्वाहौ 6-1-77
अनडुह् + शस् 4-1-2 = अनडुहः 1-3-8, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
अनडुह् + टा 4-1-2 = अनडुहा 1-3-7
अनडुह् + भ्याम् 4-1-2. Here अनडुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now we get अनडुद्भ्याम् 8-2-72
अनडुह् + भिस् 4-1-2. Here अनडुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now we get अनडुद्भिः 8-2-72, 8-2-66, 8-3-15
अनडुह् + ङे 4-1-2 = अनडुहे 1-3-8
अनडुह् + भ्यस् 4-1-2. Here अनडुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now we get अनडुद्भ्यः 8-2-72, 8-2-66, 8-3-15
अनडुह् + ङसिँ 4-1-2 = अनडुहः 1-3-8, 1-3-2, 8-2-66, 8-3-15
अनडुह् + ङस् 4-1-2 = अनडुहः 1-3-8, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
अनडुह् + ओस् 4-1-2 = अनडुहोः 8-2-66, 8-3-15
अनडुह् + आम् 4-1-2 = अनडुहाम्
अनडुह् + ङि 4-1-2 = अनडुहि 1-3-8
अनडुह् + सुप् 4-1-2 = अनडुह् + सु 1-3-3. Here अनडुह् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now we get अनडुद् + सु 8-2-72 = अनडुत्सु 8-4-55
चतुर्-शब्द: नित्यं बहुवचनान्त: ।
चतुर् + जस् 4-1-2 = चतु आ र् + अस् 1-3-7, 1-3-4, 1-1-43, 7-1-98, 1-3-3, 1-1-47 = चत्वारः 6-1-77, 8-2-66, 8-3-15
चतुर् + शस् 4-1-2 = चतुरः 1-3-8, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
चतुर् + भिस् 4-1-2 = चतुर्भिः 8-2-66, 8-3-15
चतुर् + भ्यस् 4-1-2 = चतुर्भ्यः 8-2-66, 8-3-15
चतुर् + आम् 4-1-2 = चतुर् + नाम् 7-1-55, 1-3-2, 1-3-3, 1-1-46 = चतुर् + णाम् 8-4-1 = चतुर्णाम्, चतुर्ण्णाम् 8-4-46
चतुर् + सुप् 4-1-2 = चतुर् + सु 1-3-3. Here चतुर् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17. So now by 8-3-15, रेफस्य विसर्गादेशः प्राप्तः. But 8-3-16 prevents विसर्गादेशः – because only a रुँ can get विसर्गादेशः when followed by सुप् (सप्तमी-बहुवचन-प्रत्यय:). Any ordinary रेफ: cannot. Hence the final form is चतुर्षु 8-3-59 – The द्वित्वम् for षकारः by 8-4-46 is prevented by 8-4-49.
रामायणम्
ओ३म्
अग्र + ङि + गम् + ड (अ) 3-2-48 extension = अग्रग 6-4-143 extension
हत्वा 6-4-37
दह् + त्वा 3-4-21 = दघ् त्वा 8-2-32 (no 8-2-37) = दघ्ध्वा 8-2-40 = दग्ध्वा 8-4-53
आ + अ 6-4-71 या 3-1-68, 2-4-72 त् 3-4-100
रामाय 2-3-12
ॐ
अ इ उ ण् । ऋ ऌ क् । ए ओ ङ् । ऐ औ च् । ह य व र ट् । लँ ण् । ञ म ङ ण न म् । झ भ ञ् । घ ढ ध ष् । ज ब ग ड द श् । ख फ छ ठ थ च ट त व् । क प य् । श ष स र् । ह ल् ।
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
December 11, 2010
When a विभक्तिः follows, किम् is replaced by क and the rest of the प्रक्रिया is as it is for the सर्व-शब्दः।
किम् + सुँ 4-1-2 = क + स् 7-2-103, 1-3-2 = कः 8-2-66, 8-3-15
किम् + औ 4-1-2 = क + औ 7-2-103 = कौ 6-1-88
किम् + जस् 4-1-2 = क + शी 7-2-103, 7-1-17 = के 1-3-8, 6-1-87
किम् + अम् 4-1-2 = क + अम् 7-2-103, 1-3-4 = कम् 6-1-107
किम् + औट् 4-1-2 = क + औ 7-2-103, 1-3–3 = कौ 6-1-88
किम् + शस् 4-1-2 = क + अस् 7-2-103, 1-3-8, 1-3-4 = कान् 6-1-102, 6-1-103
किम् + टा 4-1-2 = क + इन 7-2-103, 7-1-12 = केन 6-1-87
किम् + भ्याम् 4-1-2 = क + भ्याम् 7-2-103, 1-3-4 = काभ्याम् 7-3-102
किम् + भिस् 4-1-2 = क + भिस् 7-2-103 = क + ऐस् 7-1-9 = कैः 1-3-4, 6-1-88, 8-2-66, 8-3-15
किम् + ङे 4-1-2 = क + स्मै 7-2-103, 7-1-14 = कस्मै
किम् + भ्यस् 4-1-2 = क + भ्यस् 7-2-103, 1-3-4 = केभ्यः 7-3-103, 8-2-66, 8-3-15
किम् + ङसिँ 4-1-2 = क + स्मात् 7-2-103, 7-1-15 = कस्मात् 1-3-4
किम् + ङस् 4-1-2 = क + स्य 7-2-103, 7-1-12 = कस्य
किम् + ओस् 4-1-2 = क + ओस् 7-2-103, 1-3-4 = के + ओस् 7-3-104 = कयोः 6-1-78, 8-2-66, 8-3-15
किम् + आम् 4-1-2 = क + आम् 7-2-103, 1-3-4 = क + सुँट् आम् 7-1-52, 1-1-46 = क + साम् 1-3-2, 1-3-3 = के + साम् 7-3-103 = केषाम् 8-3-59
किम् + ङि 4-1-2 = क + स्मिन् 7-2-103, 7-1-15 = कस्मिन् 1-3-4
किम् + सुप् 4-1-2 = क + सु 7-2-103, 1-3-3 = केषु 7-3-103, 8-3-59
इदम् + सुँ 4-1-2 = इदम् + स् 1-3-2. Now by 7-2-102 the ending मकार: of “इदम्” would have been replaced by an अकारः। But (when the सुँ-प्रत्यय: follows) 7-2-108 ordains a मकारः in the place of मकारः to stop 7-2-102. Then we get अयम् + स् 7-2-111 =अयम् 6-1-68
इदम् + औ 4-1-2 = इद अ + औ 7-2-102 = इद + औ 6-1-97 = इम + औ 7-2-109 = इमौ 6-1-88
इदम् + जस् 4-1-2 = इद अ + जस् 7-2-102 = इद + जस् 6-1-97 = इम + जस् 7-2-109 = इम+ शी 7-1-17 Even though इदम् has changed into इम, by the “एकदेशविकृतमनन्यवत्।” न्याय:, इम also has the सर्वनाम-सञ्ज्ञा and hence 7-1-17 is applicable = इमे 1-3-8, 6-1-87
इदम् + अम् 4-1-2 = इद अ + अम् 7-2-102, 1-3-4 = इद + अम् 6-1-97 = इम + अम् 7-2-109 = इमम् 6-1-107
इदम् + औट् 4-1-2 = इद अ + औ 7-2-102, 1-3-3 = इद + औ 6-1-97 = इम + औ 7-2-109 = इमौ 6-1-88
इदम् + शस् 4-1-2 = इद अ + अस् 7-2-102, 1-3-8, 1-3-4 = इद + अस् 6-1-97 = इम + अस् 7-2-109 = इमान् 6-1-102, 6-1-103
इदम् + टा 4-1-2 = इद अ + टा 7-2-102 = इद + टा 6-1-97 = अन + टा 7-2-112 = अन + इन 7-1-12 = अनेन 6-1-87
इदम् + भ्याम् 4-1-2 = इद अ + भ्याम् 7-2-102, 1-3-4 = इद + भ्याम् 6-1-97 = अ + भ्याम् 7-2-113 ordains लोपः of इद्, which is a part of the प्रातिपदिकम् इदम्. Only the ending दकारः of इद् would take लोपः by 1-1-52. But the following परिभाषा takes effect:
नानर्थकेऽलोन्त्यविधिरनभ्यासविकारे।
This means that the rule 1-1-52 अलोऽन्त्यस्य does not apply in the case of a term that is devoid of meaning, except in the case which involves modification of an अभ्यास:।
In this example, the entire term इदम् has meaning but the इद् part doesn’t. So 1-1-52 will not apply when it comes to operating on the इद् part. Therefore, the इद् part completely takes लोपः by 7-2-113.
Then we get आभ्याम् by 7-3-102 which ordains a दीर्घः to an अदन्तमङ्गम्। However, in this case, the अङ्गम् is अ itself: only a single letter अङ्गम्। So, to treat this अकारः as the last letter of the अङ्गम्, the rule 1-1-21 is used. By this परिभाषा-सूत्रम्, an operation should be performed on a single letter as upon an initial letter or upon a final letter. In this case, the दीर्घः of 7-3-102 is therefore applicable giving the form आभ्याम्।
इदम् + भिस् 4-1-2 = इद अ + भिस् 7-2-102 = इद + भिस् 6-1-97 = अ + भिस् 7-2-113 = एभिः 7-1-11 stops 7-1-9 and so भिस् does not get the ऐसादेशः, 7-3-103, 8-2-66, 8-3-15
इदम् + ङे 4-1-2 = इद अ + ङे 7-2-102 = इद + ङे 6-1-97 = इद + स्मै Both 7-1-14 and 7-2-112 come into operation at this stage. However, 7-1-14 is a नित्यकार्यम् with respect to 7-2-112. Therefore by the परिभाषा पूर्वपरनित्याऽन्तरङ्गाऽपवादानामुत्तरोत्तरं बलीयः ।, even though 7-2-112 is परकार्यम् to 7-1-14, due to नित्यत्वम्, 7-1-14 operates = अस्मै 7-2-113
इदम् + भ्यस् 4-1-2 = इद अ + भ्यस् 7-2-102, 1-3-4 = इद + भ्यस् 6-1-97 = अ + भ्यस् 7-2-113 = एभ्यः 7-3-103, 8-2-66, 8-3-15
इदम् + ङसिँ 4-1-2 = इद अ + ङसिँ 7-2-102 = इद + ङसिँ 6-1-97 = इद + स्मात् 7-1-15 (takes precedence over 7-2-112, as discussed above) = अस्मात् 7-2-113
इदम् + ङस् 4-1-2 = इद अ + ङस् 7-2-102 = इद + ङस् 6-1-97 = इद + स्य 7-1-12 (takes precedence over 7-2-112, as discussed above) = अस्य 7-2-113
इदम् + ओस् 4-1-2 = इद अ + ओस् 7-2-102, 1-3-4 = इद + ओस् 6-1-97 = अन + ओस् 7-2-112 = अने + ओस् 7-3-104 = अनयोः 6-1-78, 8-2-66, 8-3-15
इदम् + आम् 4-1-2 = इद अ + आम् 7-2-102, 1-3-4 = इद + आम् 6-1-97 = इद + सुँट् आम् 7-1-52 (takes precedence over 7-2-112, as discussed above), 1-1-46 = इद + साम् 1-3-2, 1-3-3 = अ + साम् 7-2-113 = एषाम् 7-3-103, 8-3-59
इदम् + ङि 4-1-2 = इद अ + ङि 7-2-102 = इद + ङि 6-1-97 = इद + स्मिन् 7-1-15 (takes precedence over 7-2-112, as discussed above) = अस्मिन् 7-2-113
इदम् + सुप् 4-1-2 = इदम् + सु 1-3-3 = इद अ + सु 7-2-102 = इद + सु 6-1-97 = एषु 7-2-113, 7-3-103, 8-3-59
राजन् + सुँ 4-1-2 = राजान् + स् 6-4-8, 1-3-2 = राजान् 6-1-68 = राजा 8-2-7
राजन् + सुँ 4-1-2 (सम्बुद्धिः) = राजन् + स् 1-3-2, 6-4-8 cannot be applied because सुँ has सम्बुद्धि-सञ्ज्ञा = राजन् 6-1-68, नकारलोपः of 8-2-7 is stopped by 8-2-8
राजन् + औ 4-1-2 = राजानौ 6-4-8
राजन् + जस् 4-1-2 = राजानः 6-4-8, 1-3-7, 8-2-66, 8-3-15
राजन् + अम् 4-1-2 = राजानम् 6-4-8, 1-3-4
राजन् + औट् 4-1-2 = राजानौ 6-4-8, 1-3-3
राजन् + शस् 4-1-2 = राजन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = राज्न् + अस् 6-4-134 = राज्ञः 8-2-66, 8-3-15, 8-4-40
राजन् + टा 4-1-2 = राजन् + आ 1-3-2, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = राज्न् + आ 6-4-134 = राज्ञा 8-4-40
राजन् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = राजभ्याम् 8-2-7, 1-3-4, by 8-2-2, नलोपः is असिद्धः to सुँब्विधिः This makes the नलोपः असिद्धः to 7-3-102, which is a rule applicable based on the presence of a सुँप्-प्रत्ययः and hence is a सुँब्विधिः। Thus, even though राज ends is an अकारः and is followed by a यञादि-सुँप्-प्रत्ययः, the अकारः of राज does not get दीर्घादेशः.
राजन् + भिस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = राजभिः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, by 8-2-2, नलोपः is असिद्धः to सुँब्विधिः This makes the नलोपः असिद्धः to 7-1-9, which is a rule applicable on a सुँप्-प्रत्ययः and hence is a सुँब्विधिः। Thus, even though राज ends is an अकारः, भिस् does not get replaced by ऐस्.
राजन् + ङे 4-1-2, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = राज्ने 1-3-8, 6-4-134 = राज्ञे 8-4-40
राजन् + भ्यस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = राजभ्यः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, similar to the above cases, नलोपः is असिद्धः to 7-3-103 by 8-2-2 and hence the अकारः of राज does not get एकारादेशः.
राजन् + ङसिँ 4-1-2 = राजन् + अस् 1-3-8, 1-3-2, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = राज्ञः 6-4-134, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-40
राजन् + ङस् 4-1-2 = राजन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = राज्ञः 6-4-134, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-40
राजन् + ओस् 4-1-2 = राजन् + ओस् 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = राज्ञोः 6-4-134, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-40
राजन् + आम् 4-1-2= राजन् + आम् 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = राज्ञाम् 6-4-134, 8-4-40
राजन् + ङि 4-1-2= राजन् + इ 1-3-8, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 and by 6-4-136, the अल्लोपः ordained by 6-4-134 is optional.
लोप-पक्षे – राज्ञि 6-4-136, 8-4-40
लोपाभाव-पक्षे – राजनि 6-4-136
राजन् + सुप् 4-1-2 = राजन् + सु 1-3-3, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = राजसु 8-2-7, एत्वम् stopped because नलोपः is असिद्धः by 8-2-2. No षत्वम् because निमित्तम् is not present.
ब्रह्मन् – Similar to राजन्, but no अल्लोपः because of 6-4-137 and णत्वम् due to the presence of निमित्तम् which is the रेफ: in the प्रातिपदिकम् “ब्रह्मन्” .
ब्रह्मन् + सुँ 4-1-2 = ब्रह्मान् + स् 6-4-8, 1-3-2 = ब्रह्मान् 6-1-68 = ब्रह्मा 8-2-7
ब्रह्मन् + सुँ 4-1-2 (सम्बुद्धिः) = ब्रह्मन् + स् 1-3-2, 6-4-8 cannot be applied because सुँ has सम्बुद्धि-सञ्ज्ञा = ब्रह्मन् 6-1-68, नकारलोपः of 8-2-7 is stopped by 8-2-8
ब्रह्मन् + औ 4-1-2 = ब्रह्माणौ 6-4-8, 8-4-2
ब्रह्मन् + जस् 4-1-2 = ब्रह्माणः 6-4-8, 1-3-7, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-2
ब्रह्मन् + अम् 4-1-2 = ब्रह्माणम् 6-4-8, 1-3-4, 8-4-2
ब्रह्मन् + औट् 4-1-2 = ब्रह्माणौ 6-4-8, 1-3-3, 8-4-2
ब्रह्मन् + शस् 4-1-2 = ब्रह्मन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = ब्रह्मणः 8-2-66, 8-3-15, 8-4-2, 6-4-137 stops अल्लोपः because the अन् of ब्रह्मन् follows a संयोगः ह्म्, which has a मकारः as its final letter.
ब्रह्मन् + टा 4-1-2 = ब्रह्मन् + आ 1-3-2, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = ब्रह्मणा 6-4-137, 8-4-2
ब्रह्मन् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = ब्रह्मभ्याम् 8-2-7, 1-3-4, 8-2-2 stops 7-3-102
ब्रह्मन् + भिस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = ब्रह्मभिः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-1-9
ब्रह्मन् + ङे 4-1-2, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = ब्रह्मणे 1-3-8, 6-4-137, 8-4-2
ब्रह्मन् + भ्यस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = ब्रह्मभ्यः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-3-103
ब्रह्मन् + ङसिँ 4-1-2 = ब्रह्मन् + अस् 1-3-8, 1-3-2, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = ब्रह्मणः 6-4-137, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-2
ब्रह्मन् + ङस् 4-1-2 = ब्रह्मन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = ब्रह्मणः 6-4-137, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-2
ब्रह्मन् + ओस् 4-1-2 = ब्रह्मन् + ओस् 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = ब्रह्मणोः 6-4-137, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-2
ब्रह्मन् + आम् 4-1-2= ब्रह्मन् + आम् 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = ब्रह्मणाम् 6-4-137, 8-4-2
ब्रह्मन् + ङि 4-1-2= ब्रह्मन् + इ 1-3-8, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = ब्रह्मणि 6-4-137, 8-4-2
ब्रह्मन् + सुप् 4-1-2 = ब्रह्मन् + सु 1-3-3, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = ब्रह्मसु 8-2-7, 8-2-2 stops 7-3-103. No षत्वम् because निमित्तम् is not present.
वृत्रहन् + सुँ 4-1-2 = वृत्रहान् + स् 1-3-2, 6-4-12 restricts the application of 6-4-8 to only the case when the शि-प्रत्ययः follows for शब्दाः ending in हन्. So, 6-4-8 cannot cause उपधादीर्घः in this example. However, 6-4-13 applies and causes the उपधादीर्घः = वृत्रहान् 6-1-68 = वृत्रहा 8-2-7
वृत्रहन् + सुँ 4-1-2 (सम्बुद्धिः) = वृत्रहन् + स् 1-3-2, 6-4-13 cannot be applied because सुँ has सम्बुद्धि-सञ्ज्ञा = वृत्रहन् 6-1-68, नकारलोपः of 8-2-7 is stopped by 8-2-8
वृत्रहन् + औ 4-1-2 = वृत्रहणौ 6-4-12 stops 6-4-8, 8-4-2 cannot cause णत्वम् because रेफः is in वृत्र and नकारः is in हन्, and hence not समानपदे। However, 8-4-12 applies, since the उत्तरपदम् of the compound is एकाच्, and the निमित्तम् (रेफः in this case) is in the पूर्वपदम् and the नकारः is a प्रातिपदिकान्त-नकारः।
वृत्रहन् + जस् 4-1-2 = वृत्रहणः 1-3-7, 6-4-12 stops 6-4-8, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-12
वृत्रहन् + अम् 4-1-2 = वृत्रहणम् 1-3-4, 6-4-12 stops 6-4-8, 8-4-12
वृत्रहन् + औट् 4-1-2 = वृत्रहणौ 1-3-3, 6-4-12 stops 6-4-8, 8-4-12
वृत्रहन् + शस् 4-1-2 = वृत्रहन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = वृत्रह्न् + अस् 6-4-134 =वृत्रघ्नः 7-3-54, 1-1-50, 8-2-66, 8-3-15, 8-4-12 does not cause णत्वम् because the उत्तरमपदम् is not एकाच् anymore.
वृत्रहन् + टा 4-1-2 = वृत्रहन् + आ 1-3-2, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = वृत्रह्न् + आ 6-4-134 = वृत्रघ्ना 7-3-54, 1-1-50
वृत्रहन् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = वृत्रहभ्याम् 8-2-7, 1-3-4, 8-2-2 stops 7-3-102
वृत्रहन् + भिस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = वृत्रहभिः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-1-9
वृत्रहन् + ङे 4-1-2, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = वृत्रह्ने 1-3-8, 6-4-134 = वृत्रघ्ने 7-3-54, 1-1-50
वृत्रहन् + भ्यस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = वृत्रहभ्यः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-3-103
वृत्रहन् + ङसिँ 4-1-2 = वृत्रहन् + अस् 1-3-8, 1-3-2, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = वृत्रघ्नः 6-4-134, 7-3-54, 1-1-50, 8-2-66, 8-3-15
वृत्रहन् + ङस् 4-1-2 = वृत्रहन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = वृत्रघ्नः 6-4-134, 7-3-54, 1-1-50, 8-2-66, 8-3-15
वृत्रहन् + ओस् 4-1-2 = वृत्रहन् + ओस् 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = वृत्रघ्नोः 6-4-134, 7-3-54, 1-1-50, 8-2-66, 8-3-15
वृत्रहन् + आम् 4-1-2= वृत्रहन् + आम् 1-3-4, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = वृत्रघ्नाम् 6-4-134, 7-3-54, 1-1-50
वृत्रहन् + ङि 4-1-2= वृत्रहन् + इ 1-3-8, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 and by 6-4-136, the अल्लोपः ordained by 6-4-134 is optional.
लोप-पक्षे – वृत्रघ्नि 6-4-136, 7-3-54, 1-1-50
लोपाभाव-पक्षे – वृत्रहणि 6-4-136, 8-4-12
वृत्रहन् + सुप् 4-1-2 = वृत्रहन् + सु 1-3-3, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = वृत्रहसु 8-2-7, 8-2-2 stops 7-3-103. No षत्वम् because निमित्तम् is not present.
योगिन् + सुँ 4-1-2 = योगिन् + स् 1-3-2, 6-4-12 restricts the application of 6-4-8 to only the case when the शि-प्रत्ययः follows for शब्दाः ending in “इन्”. So, 6-4-8 cannot cause उपधादीर्घः in this example. However, 6-4-13 applies and causes the उपधादीर्घः = योगीन् 6-1-68 = योगी 8-2-7
6-4-13 is the only special सूत्रम् required in the declension of a masculine प्रातिपदिकम् ending in “इन्”.
ओ३म्
अ इ उ ण् । ऋ ऌ क् । ए ओ ङ् । ऐ औ च् । ह य व र ट् । लँ ण् । ञ म ङ ण न म् । झ भ ञ् । घ ढ ध ष् । ज ब ग ड द श् । ख फ छ ठ थ च ट त व् । क प य् । श ष स र् । ह ल् ।
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
December 11, 2010
रामायणम्
ओ३म्
विद् + णिच् 3-1-26 = वेदि 7-3-86, 3-1-32
अ 6-4-71 वेदि + शप् + तिप् (त् 3-4-100) = अवेदय् 7-3-84, 6-1-78 अत् =अवेद् अय त्
मा + यत् 3-1-97 = मी + यत् 6-4-65 = मेय 7-3-84
तत्त्वत: 5-4-44 वा. (सार्वविभक्तिक: तसिँ:)
In a बहुव्रीहि: the उत्तरपदम् will most likely not be an adjective.
क्षोभयामास 3-1-26, 3-1-32, 3-1-35, 2-4-81, 3-1-40, 6-4-55
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ओ३म्
अ इ उ ण् । ऋ ऌ क् । ए ओ ङ् । ऐ औ च् । ह य व र ट् । लँ ण् । ञ म ङ ण न म् । झ भ ञ् । घ ढ ध ष् । ज ब ग ड द श् । ख फ छ ठ थ च ट त व् । क प य् । श ष स र् । ह ल् ।
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
December 25, 2010
मघवन् gets the तृँ-आदेशः optionally. So, it has two sets of declensions.
तृँत्वपक्षे –
मघवन् + सुँ 4-1-2 = मघवतृँ + स् 6-4-128, 1-3-2 (Even though तृँ is an अनेकाल्-आदेशः and should have come in place of the whole मघवन्-शब्दः, by the परिभाषा नानुबन्धकृतमनेकाल्त्वम्, तृँ should not be considered अनेकाल् by counting the इत्-letters.) = मघवत् + स् 1-3-2 = मघव नुँम् त् + स् 7-1-70, 1-1-47 = मघवन्त् + स् 1-3-2, 1-3-3 = मघवन्त् 6-1-68 = मघवन् 8-2-23 = मघवान् 6-4-8
मघवन् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = मघवतृँ + स् 6-4-128, 1-3-2, (Even though तृँ is an अनेकाल्-आदेशः and should have come in place of the whole मघवन्-शब्दः, by the परिभाषा नानुबन्धकृतमनेकाल्त्वम्, तृँ should not be considered अनेकाल् by counting the इत्-letters.) = मघवत् + स् 1-3-2 = मघव नुँम् त् + स् 7-1-70, 1-1-47 = मघवन्त् + स् 1-3-2, 1-3-3 = मघवन्त् 6-1-68 = मघवन् 8-2-23
मघवन् + औ 4-1-2 = मघवत् + औ 6-4-128, 1-3-2 = मघवन्तौ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = मघवंतौ 8-3-24 = मघवन्तौ 8-4-58, 1-1-50
मघवन् + जस् 4-1-2 = मघवत् + अस् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-4, 1-3-7 = मघवन्तस् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = मघवन्तः 8-2-66, 8-3-15 = मघवंतः 8-3-24 = मघवन्तः 8-4-58, 1-1-50
मघवन् + अम् 4-1-2 = मघवत् + अम् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-4 = मघवन्तम् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = मघवंतम् 8-3-24 = मघवन्तम् 8-4-58, 1-1-50
मघवन् + औट् 4-1-2 = मघवत् + औ 6-4-128, 1-3-2, 1-3-3 = मघवन्तौ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = मघवंतौ 8-3-24 = मघवन्तौ 8-4-58, 1-1-50
मघवन् + शस् 4-1-2 = मघवत् + अस् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-8, 1-3-4 = मघवतः 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + टा 4-1-2 = मघवता 6-4-128, 1-3-2, 1-3-7
मघवन् + भ्याम् 4-1-2 = मघवत् + भ्याम् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-4, मघवत् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = मघवद्भ्याम् 8-2-39
मघवन् + भिस् 4-1-2 = मघवत् + भिस् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-4, मघवत् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = मघवद्भिः 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + ङे 4-1-2 = मघवते 6-4-128, 1-3-2, 1-3-8
मघवन् + भ्यस् 4-1-2 = मघवत् + भ्यस् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-4, मघवत् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = मघवद्भ्यः 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + ङसिँ 4-1-2 = मघवत् + अस् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-8 = मघवतः 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + ङस् 4-1-2 = मघवत् + अस् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-8, 1-3-4 = मघवतः 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + ओस् 4-1-2 = मघवत् + ओस् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-4 = मघवतोः 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + आम् 4-1-2 = मघवताम् 6-4-128, 1-3-2, 1-3-4
मघवन् + ङि 4-1-2 = मघवति 6-4-128, 1-3-2, 1-3-8
मघवन् + सुप् 4-1-2 = मघवत्सु 6-4-128, 1-3-2, 1-3-3
तृँत्वाभावपक्षे –
मघवन् + सुँ 4-1-2 = मघवन् + स् 1-3-2 = मघवन् 6-1-68 = मघवान् 6-4-8 = मघवा 8-2-7
मघवन् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = मघवन् + स् 1-3-2 = मघवन् 6-1-68, 8-2-8
मघवन् + औ 4-1-2 = मघवानौ 6-4-8
मघवन् + जस् 4-1-2 = मघवान् + अस् 6-4-8, 1-3-4, 1-3-7 = मघवानः 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + अम् 4-1-2 = मघवानम् 6-4-8, 1-3-4
मघवन् + औट् 4-1-2 = मघवानौ 6-4-8, 1-3-3
मघवन् + शस् 4-1-2 = मघवन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, मघवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = मघ उ अन् + अस् 6-4-133, 1-1-45 = मघ उन् + अस् 6-1-108 = मघोनः 6-1-87, 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + टा 4-1-2 = मघवन् + आ 1-3-7, मघवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = मघ उ अन् + आ 6-4-133, 1-1-45 = मघ उन् + आ 6-1-108 = मघोना 6-1-87
मघवन् + भ्याम् 4-1-2 = मघवन् + भ्याम् 1-3-4, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = मघवभ्याम् 8-2-7, 8-2-2 stops 7-3-102
मघवन् + भिस् 4-1-2 = मघवन् + भिस् 1-3-4, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = मघवभिः 8-2-7, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-1-9
मघवन् + ङे 4-1-2 = मघवन् + ए 1-3-8, मघवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = मघ उ अन् + ए 6-4-133, 1-1-45 = मघ उन् + ए 6-1-108 = मघोने 6-1-87
मघवन् + भ्यस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = मघवभ्यः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-3-103
मघवन् + ङसिँ 4-1-2 = मघवन् + अस् 1-3-2, 1-3-8, मघवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = मघ उ अन् + अस् 6-4-133, 1-1-45 = मघ उन् + अस् 6-1-108 = मघोनः 6-1-87, 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + ङस् 4-1-2 = मघवन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, मघवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = मघ उ अन् + अस् 6-4-133, 1-1-45 = मघ उन् + अस् 6-1-108 = मघोनः 6-1-87, 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + ओस् 4-1-2 = मघवन् + ओस् 1-3-4, मघवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = मघ उ अन् + ओस् 6-4-133, 1-1-45 = मघ उन् + ओस् 6-1-108 = मघोनोः 6-1-87, 8-2-66, 8-3-15
मघवन् + आम् 4-1-2 = मघवन् + आम् 1-3-4, मघवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = मघ उ अन् + आम् 6-4-133, 1-1-45 = मघ उन् + आम् 6-1-108 = मघोनाम् 6-1-87
मघवन् + ङि 4-1-2 = मघवन् + इ 1-3-8, मघवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = मघ उ अन् + इ 6-4-133, 1-1-45 = मघ उन् + इ 6-1-108 = मघोनि 6-1-87
मघवन् + सुप् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = मघवसु 8-2-7, 1-3-3, 8-2-2 stops 7-3-103
युवन् + सुँ 4-1-2 = युवन् + स् 1-3-2 = युवन् 6-1-68 = युवान् 6-4-8 = युवा 8-2-7
युवन् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = युवन् + स् 1-3-2 = युवन् 6-1-68, 8-2-8
युवन् + औ 4-1-2 = युवानौ 6-4-8
युवन् + जस् 4-1-2 = युवान् + अस् 6-4-8, 1-3-4, 1-3-7 = युवानः 8-2-66, 8-3-15
युवन् + अम् 4-1-2 = युवानम् 6-4-8, 1-3-4
युवन् + औट् 4-1-2 = युवानौ 6-4-8, 1-3-3
युवन् + शस् 4-1-2 = युवन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, युवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = यु उ अन् + अस् 6-4-133, 1-1-45, there are two candidates to take सम्प्रसारणम्, यकारः and वकारः. But by the ज्ञापकम् of 6-1-37, the last यण् should take सम्प्रसारणम्. Hence वकारः takes सम्प्रसारणम् = यु उन् + अस् 6-1-108 = यूनः 6-1-101, 8-2-66, 8-3-15
युवन् + टा 4-1-2 = युवन् + आ 1-3-7, युवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = यु उ अन् + आ 6-4-133, 6-1-37, 1-1-45 = यु उन् + आ 6-1-108 = यूना 6-1-101
युवन् + भ्याम् 4-1-2 = युवन् + भ्याम् 1-3-4, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = युवभ्याम् 8-2-7, 8-2-2 stops 7-3-102
युवन् + भिस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = युवभिः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-1-9
युवन् + ङे 4-1-2 = युवन् + ए 1-3-8, युवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = यु उ अन् + ए 6-4-133, 6-1-37, 1-1-45 = यु उन् + ए 6-1-108 = यूने 6-1-101
युवन् + भ्यस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = युवभ्यः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-3-103
युवन् + ङसिँ 4-1-2 = युवन् + अस् 1-3-2, 1-3-8, युवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = यु उ अन् + अस् 6-4-133, 6-1-37, 1-1-45 = यु उन् + अस् 6-1-108 = यूनः 6-1-101, 8-2-66, 8-3-15
युवन् + ङस् 4-1-2 = युवन् + अस् 1-3-8, युवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = यु उ अन् + अस् 6-4-133, 6-1-37, 1-1-45 = यु उन् + अस् 6-1-108 = यूनः 6-1-101, 8-2-66, 8-3-15
युवन् + ओस् 4-1-2 = युवन् + ओस् 1-3-4, युवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = यु उ अन् + ओस् 6-4-133, 6-1-37, 1-1-45 = यु उन् + ओस् 6-1-108 = यूनोः 6-1-101, 8-2-66, 8-3-15
युवन् + आम् 4-1-2 = युवन् + आम् 1-3-4, युवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = यु उ अन् + आम् 6-4-133, 6-1-37, 1-1-45 = यु उन् + आम् 6-1-108 = यूनाम् 6-1-101
युवन् + ङि 4-1-2 = युवन् + इ 1-3-8, युवन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = यु उ अन् + इ 6-4-133, 6-1-37, 1-1-45 = यु उन् + इ 6-1-108 = यूनि 6-1-101
युवन् + सुप् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = युवसु 8-2-7, 1-3-3, 8-2-2 stops 7-3-103
पथिन् + सुँ 4-1-2 = पथिन् + स् 1-3-2 = पथि आ + स् 7-1-85 = पथ आ + स् 7-1-86 = पन्थ आ + स् 7-1-87 = पन्थाः 6-1-101, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = पथिन् + स् 1-3-2 = पथि आ + स् 7-1-85 = पथ आ + स् 7-1-86 = पन्थ आ + स् 7-1-87 = पन्थाः 6-1-101, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + औ 4-1-2 = पथन् + औ 7-1-86 = पन्थन् + औ 7-1-87 = पन्थानौ 6-4-8
पथिन् + जस् 4-1-2 = पन्थन् + अस् 7-1-86, 7-1-87, 1-3-4, 1-3-7 = पन्थानः 6-4-8, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + अम् 4-1-2 = पन्थन् + अम् 7-1-86, 7-1-87, 1-3-4 = पन्थानम् 6-4-8
पथिन् + औट् 4-1-2 = पन्थानौ 7-1-86, 7-1-87, 6-4-8, 1-3-3
पथिन् + शस् 4-1-2 = पथिन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, पथिन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = पथः 7-1-88, 1-1-64, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + टा 4-1-2 = पथिन् + आ 1-3-7, पथिन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = पथा 7-1-88, 1-1-64
पथिन् + भ्याम् 4-1-2 = पथिन् + भ्याम् 1-3-4, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पथिभ्याम् 8-2-7
पथिन् + भिस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पथिभिः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + ङे 4-1-2 = पथिन् + ए 1-3-8, पथिन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = पथे 7-1-88, 1-1-64
पथिन् + भ्यस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पथिभ्यः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + ङसिँ 4-1-2 = पथिन् + अस् 1-3-2, 1-3-8, पथिन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = पथः 7-1-88, 1-1-64, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + ङस् 4-1-2 = पथिन् + अस् 1-3-8, 1-3-4, पथिन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = पथः 7-1-88, 1-1-64, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + ओस् 4-1-2 = पथिन् + ओस् 1-3-4, पथिन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = पथोः 7-1-88, 1-1-64, 8-2-66, 8-3-15
पथिन् + आम् 4-1-2 = पथिन् + आम् 1-3-4, पथिन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = पथाम् 7-1-88, 1-1-64
पथिन् + ङि 4-1-2 = पथिन् + इ 1-3-8, पथिन् gets भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = पथि 7-1-88, 1-1-64
पथिन् + सुप् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पथिषु 8-2-7, 1-3-3, 8-3-59
पञ्चन् + जस् 4-1-2, पञ्चन् has षट्-सञ्ज्ञा by 1-1-24 = पञ्चन् 7-1-22 = पञ्च 8-2-7
पञ्चन् + शस् 4-1-2, पञ्चन् has षट्-सञ्ज्ञा by 1-1-24 = पञ्चन् 7-1-22 = पञ्च 8-2-7
पञ्चन् + भिस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पञ्चभिः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-1-9
पञ्चन् + भ्यस् 4-1-2, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पञ्चभ्यः 8-2-7, 1-3-4, 8-2-66, 8-3-15, 8-2-2 stops 7-3-103
पञ्चन् + आम् 4-1-2, पञ्चन् has षट्-सञ्ज्ञा by 1-1-24 = पञ्चन् + नाम् 7-1-55, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3 = पञ्चान् + नाम् 6-4-7, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पञ्चानाम् 8-2-7
पञ्चन् + सुप् 4-1-2 = पञ्चन् + सु 1-3-3, अङ्गम् gets पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पञ्चसु 8-2-7, 8-2-2 stops 7-3-103.
अष्टन् gets आकारः as an अन्तादेशः optionally. When the आकारादेश: is not taken, the forms are similar to those of पञ्चन्।
आकारादेश-पक्षे –
अष्टन् + जस् 4-1-2 = अष्ट आ + जस् 7-2-84, Even though the आकारादेशः is only when a हलादि-विभक्तिः follows, by the ज्ञापकम् from rule 7-1-21 अष्टाभ्य औश्, it should be understood to apply even when जस् and शस् follow = अष्टा + औ 6-1-101, 7-1-21, 1-1-55, 1-3-3 = अष्टौ 6-1-88
अष्टन् + शस् 4-1-2 = अष्ट आ + शस् 7-2-84, Even though the आकारादेशः is only when a हलादि-विभक्तिः follows, by the ज्ञापकम् from rule 7-1-21 अष्टाभ्य औश्, it should be understood to apply even when जस् and शस् follow = अष्टा + औ 6-1-101, 7-1-21, 1-1-55, 1-3-3 = अष्टौ 6-1-88
अष्टन् + भिस् 4-1-2 = अष्ट आ + भिस् 7-2-84, 1-3-4 = अष्टाभिः 6-1-101, 8-2-66, 8-3-15
अष्टन् + भ्यस् 4-1-2 = अष्ट आ + भ्यस् 7-2-84, 1-3-4 = अष्टाभ्यः 6-1-101, 8-2-66, 8-3-15
अष्टन् + आम् 4-1-2, अष्टन् has षट्-सञ्ज्ञा by 1-1-24 = अष्टन् + नाम् 7-1-55, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3 = अष्ट आ + नाम् 7-2-84 = अष्टानाम् 6-1-101
अष्टन् + सुप् 4-1-2 = अष्टन् + सु 1-3-3 = अष्ट आ + सु 7-2-84 = अष्टासु 6-1-101
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रामायणम्
1-1-40 gives अव्यय-सञ्ज्ञा to क्त्वान्त-शब्दा:।
सम्प्रसारणम् – think about the 20 धातव: in 6-1-15, 6-1-16
मृष् य आन 3-2-123, 3-2-124, 3-1-69 then 7-2-82 then 8-4-2
त्रिलोकी 2-1-52, 2-4-17 वा., 4-1-21, 1-4-18, 6-4-148 + ष्यन् 5-1-124 वा. = त्रैलोक् य 7-2-117, 1-4-18, 6-4-148
सचराचरम् / सदेवर्षिगणम् 6-3-82
बभौ 7-1-34
सम्प्रहृष्ट: 7-2-29
दैवतम् 5-4-38
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ओ३म्
January 8, 2011
अष्टन् gets आकारः as an अन्तादेशः optionally. When the आकारादेश: is not taken, the forms are similar to those of पञ्चन्। Below are the forms in the षष्ठी-बहुवचनम्।
आकारादेश-पक्षे In the case where the “आ” substitution is done:
अष्टन् + आम् 4-1-2, अष्टन् has षट्-सञ्ज्ञा by 1-1-24 = अष्टन् + नाम् 7-1-55, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3 = अष्ट आ + नाम् 7-2-84 = अष्टानाम् 6-1-101
आकारादेशाभाव-पक्षे In the case where the “आ” substitution is not done
अष्टन् + आम् 4-1-2, अष्टन् has षट्-सञ्ज्ञा by 1-1-24 = अष्टन् + नाम् 7-1-55, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3 = अष्टान् + नाम् 6-4-7 = अष्टानाम् 1-4-17, 8-2-7
Let us consider the प्रातिपदिकम् “ऋत्विज्” – The सूत्रम् 3-2-59 gives this as a ready-made प्रातिपदिकम्, ending in the क्विँन्-प्रत्यय:। This क्विँन्-प्रत्यय: has the कृत्-सञ्ज्ञा by 3-1-93.
The entire क्विँन्-प्रत्ययः takes लोपः as follows – The ककार:, इकार: and नकार: are removed using the usual rules 1-3-8, 1-3-2 and 1-3-3 along with 1-3-9. After this only the single letter वकार: remains. It is also removed by 6-1-67.
Now ऋत्विज् gets प्रातिपदिक-सञ्ज्ञा by 1-1-62, 1-2-46 and hence the will take the affixes सुँ etc.
ऋत्विज् + सुँ 4-1-2 = ऋत्विज् + स् 1-3-2 = ऋत्विज् 6-1-68 = ऋत्विग् 1-4-14, 8-2-62
Please note that we could not have used 8-2-30 because in the case of the धातु: “यज्” (which is present in ऋत्विज्) 8-2-36 would over-rule 8-2-30 and we would end up with a षकारादेश: in place of the ending जकार:। Hence 8-2-62 is required to give the गकारादेश: in place of the ending जकार:।
Finally we get two forms ऋत्विक्, ऋत्विग् 8-4-56. In the case of सम्बुद्धि: also the forms are the same (हे) ऋत्विक्, ऋत्विग्।
ऋत्विज् + औ 4-1-2 = ऋत्विजौ – nothing special here because ऋत्विज् does not get the पद-सञ्ज्ञा in this case.
Similarly ऋत्विज् + जस् = ऋत्विज:। ऋत्विज् + अम्= ऋत्विजम्। ऋत्विज् + औट् = ऋत्विजौ।
ऋत्विज् + शस् 4-1-2 = ऋत्विज् + अस् 1-3-4, 1-3-8 = ऋत्विजः 8-2-66, 8-3-15. Note that since the प्रत्ययः here is अजादिः and does not have the सर्वनामस्थान-सञ्ज्ञा, the अङ्गम् does not get the पद-सञ्ज्ञा but instead gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18. As a result, कुत्वम् (by 8-2-62) is stopped.
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: we get –
ऋत्विज् + टा = ऋत्विजा। ऋत्विज् + ङे = ऋत्विजे। ऋत्विज् + ङसिँ = ऋत्विजः। ऋत्विज् + ङस् = ऋत्विजः। ऋत्विज् + ओस् = ऋत्विजोः। ऋत्विज् + आम् = ऋत्विजाम्। ऋत्विज् + ङि = ऋत्विजि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
ऋत्विज् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = ऋत्विग्भ्याम् 8-2-62.
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
ऋत्विज् + भिस् = ऋत्विग्भि:। ऋत्विज् + भ्यस् = ऋत्विग्भ्यः। ऋत्विज् + सुप् = ऋत्विग् + सु 1-3-3, 8-2-62 = ऋत्विग् + षु 8-3-59 = ऋत्विक्षु 8-4-55.
Let us now consider the प्रातिपदिकम् “राज्” which is formed using the क्विँप्-प्रत्यय: with the धातु: “राज्”. Just like in the case of the क्विँन्-प्रत्यय:, the entire क्विँप्-प्रत्यय: takes लोप:।
Now राज् gets प्रातिपदिक-सञ्ज्ञा by 1-1-62, 1-2-46 and hence it will take the affixes सुँ etc.
राज् + सुँ 4-1-2 = राज् + स् 1-3-2 = राज् 6-1-68 = राष् 1-4-14, 8-2-36 = राड् 8-2-39 = राट्, राड् 8-4-56.
Please note that in the case of the धातु: “राज्” 8-2-36 is an अपवाद: for 8-2-30.
In the case of सम्बुद्धि: also the forms are the same (हे) राट्, राड्।
राज् + औ 4-1-2 = राजौ – nothing special here because राज् does not get the पद-सञ्ज्ञा in this case and is not followed by a झल् letter.
Similarly राज् + जस् = राज:। राज् + अम्= राजम्। राज् + औट् = राजौ।
राज् + शस् 4-1-2 = राज् + अस् 1-3-4, 1-3-8 = राजः 8-2-66, 8-3-15. Note that since the प्रत्ययः here is अजादिः and does not have the सर्वनामस्थान-सञ्ज्ञा, the अङ्गम् does not get the पद-सञ्ज्ञा but instead gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18. Thus षत्वम् (by 8-2-36) is stopped because the अङ्गम् doesn’t have the पद-सञ्ज्ञा and neither is a झल् letter following.
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: we get –
राज् + टा = राजा। राज् + ङे = राजे। राज् + ङसिँ = राजः। राज् + ङस् = राजः। राज् + ओस् = राजोः। राज् + आम् = राजाम्। राज् + ङि = राजि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
राज् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = राष् + भ्याम् 8-2-36 = राड्भ्याम् 8-2-39.
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
राज् + भिस् = राड्भि:। राज् + भ्यस् = राड्भ्य:। राज् + सुप् = राष् + सु 1-3-3, 8-2-36 = राड् + सु 8-2-39 = राट्सु 8-4-55 or राट्त्सु 8-3-29, 8-4-55 (twice.) Please note that 8-4-42 stops 8-4-41.
Let us consider the प्रातिपदिकम् “भृस्ज्” which is derived from the धातु: “भ्रस्ज्” by adding the क्विँप्-प्रत्यय:। As in the example above, the entire क्विँप्-प्रत्यय: takes लोप: and भृस्ज् gets the प्रातिपदिक-सञ्ज्ञा by 1-1-62, 1-2-46 and hence it will take the affixes सुँ etc.
भृस्ज् + सुँ 4-1-2 = भृस्ज् + स् 1-3-2 = भृस्ज् 6-1-68 = भृज् 1-4-14, 8-2-29 (Note: 8-2-23 is over-ruled by 8-2-29) = भृष् 8-2-36 = भृड् 8-2-39 = भृट्, भृड् 8-4-56
In the case of सम्बुद्धि: also the forms are the same (हे) भृट्, भृड्।
भृस्ज् + औ 4-1-2 = भृश्जौ 8-4-40 = भृज्जौ 8-4-53. Please note that भृस्ज् does not get the पद-सञ्ज्ञा in this case and is not followed by a झल् letter.
Similarly भृस्ज् + जस् = भृज्ज:। भृस्ज् + अम्= भृज्जम्। भृस्ज् + औट् = भृज्जौ।
भृस्ज् + शस् 4-1-2 = भृस्ज् + अस् 1-3-4, 1-3-8 = भृज्जः 8-2-66, 8-3-15, 8-4-40, 8-4-53. Note that since the प्रत्ययः here is अजादिः and does not have the सर्वनामस्थान-सञ्ज्ञा, the अङ्गम् does not get the पद-सञ्ज्ञा but instead gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18. The संयोगः “स्ज्” is also not followed by a झल् letter. So 8-2-29 does not apply, neither does 8-2-36.
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: we get –
भृस्ज् + टा = भृज्जा। भृस्ज् + ङे = भृज्जे। भृस्ज् + ङसिँ = भृज्जः। भृस्ज् + ङस् = भृज्जः। भृस्ज् + ओस् = भृज्जोः। भृस्ज् + आम् = भृज्जाम्। भृस्ज् + ङि = भृज्जि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
भृस्ज् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = भृज् + भ्याम् 8-2-29 = भृष् + भ्याम् 8-2-36 = भृड्भ्याम् 8-2-39.
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
भृस्ज् + भिस् = भृड्भि:। भृस्ज् + भ्यस् = भृड्भ्य:। भृस्ज् + सुप् = भृज् + सु 1-3-3, 8-2-29 = भृष् + सु 8-2-36 = भृड् + सु 8-2-39 = भृट्सु 8-4-55 or भृट्त्सु 8-3-29, 8-4-55 (twice.) Please note that 8-4-42 stops 8-4-41.
Let us consider the प्रातिपदिकम् “तद्” which gets the सर्वनाम-सञ्ज्ञा by 1-1-27.
तद् + सुँ 4-1-2 = त अ + स् 1-3-2, 7-2-102 = त + स् 6-1-97 = सः 7-2-106, 8-2-66, 8-3-15
In all the remaining forms also, तद् becomes त by 7-2-102, 6-1-97 and then declines like the प्रातिपदिकम् “सर्व”, giving the forms तौ, ते, तम्, तौ, तान्, तेन, ताभ्याम्, तै:, तस्मै, ताभ्याम्, तेभ्य:, तस्मात्, ताभ्याम्, तेभ्य:, तस्य, तयो:, तेषाम्, तस्मिन्, तयो:, तेषु।
एतद् also is similar to तद् and gives एष: (8-3-59), एतौ, एते, एतम्, एतौ, एतान्, एतेन, एताभ्याम्, एतै:, एतस्मै, एताभ्याम्, एतेभ्य:, एतस्मात्, एताभ्याम्, एतेभ्य:, एतस्य, एतयो:, एतेषाम्, एतस्मिन्, एतयो:, एतेषु।
In अन्वादेशः, एतद् gets एन as a replacement (by 2-4-34) when a द्वितीया-विभक्ति: (अम्, औट्, शस्) or टा or ओस् follows to give the forms एनम्, एनौ, एनान्, एनेन and एनयो:।
युष्मद् and अस्मद् involve several rules in their derivation and these rules are also not useful in other contexts in Sanskrit grammar. Besides, the forms are well known and so, it is better to memorize them rather than applying the rules. The rules for their derivation come in the sections 7-1-27 to 7-1-33 and 7-2-86 to 7-2-97.
The declension table for युष्मद् is as follows:
प्रथमा – त्वम्, युवाम्, यूयम्
द्वितीया – त्वाम्, युवाम्, युष्मान्
तृतीया – त्वया, युवाभ्याम्, युष्माभि:
चतुर्थी – तुभ्यम्, युवाभ्याम्, युष्मभ्यम्
पञ्चमी – त्वत्/त्वद्, युवाभ्याम्, युष्मत्/युष्मद्
षष्ठी – तव, युवयो:, युष्माकम्
सप्तमी – त्वयि, युवयो:, युष्मासु
The declension table for अस्मद् is as follows:
प्रथमा – अहम्, आवाम्, वयम्
द्वितीया – माम्, आवाम्, अस्मान्
तृतीया – मया, आवाभ्याम्, अस्माभि:
चतुर्थी – मह्यम्, आवाभ्याम्, अस्मभ्यम्
पञ्चमी – मत्/मद्, आवाभ्याम्, अस्मत्/अस्मद्
षष्ठी – मम, आवयो:, अस्माकम्
सप्तमी – मयि, आवयो:, अस्मासु
When युष्मद्/अस्मद् is following another पदम् and is not at the beginning of a metrical पाद: then the following short forms are prescribed in द्वितीया, चतुर्थी and षष्ठी.
[So for example, in the sentence त्वां लोका: पश्यन्ति। we cannot use त्वा in place of त्वाम् because there is no पदम् preceding. Similarly in the verse स जगद्रक्षको देवो मां सदा पालयिष्यति। we cannot use मा instead of माम् because it is at the beginning of a metrical quarter.
Also as per 8-1-24, the short forms cannot be used in conjunction with च, वा, ह, अह or एव। So in the sentence हरिस्त्वां मां च रक्षतु। we cannot use त्वा/मा in place of त्वाम्/माम्]
युष्मद् + अम् 4-1-2 = त्वा 8-1-23
युष्मद् + औट् 4-1-2 = वाम् 8-1-20
युष्मद् + शस् 4-1-2 = वः 8-1-21, 8-2-66, 8-3-15
युष्मद् + ङे 4-1-2 = ते 8-1-22
युष्मद् + भ्याम् 4-1-2 = वाम् 8-1-20
युष्मद् + भ्यस् 4-1-2 = वः 8-1-21, 8-2-66, 8-3-15
युष्मद् + ङस् 4-1-2 = ते 8-1-22
युष्मद् + ओस् 4-1-2 = वाम् 8-1-20
युष्मद् + आम् 4-1-2 = वः 8-1-21, 8-2-66, 8-3-15
अस्मद् + अम् 4-1-2 = मा 8-1-23
अस्मद् + औट् 4-1-2 = नौ 8-1-20
अस्मद् + शस् 4-1-2 = नः 8-1-21, 8-2-66, 8-3-15
अस्मद् + भ्याम् 4-1-2 = नौ 8-1-20
अस्मद् + भ्यस् 4-1-2 = नः 8-1-21, 8-2-66, 8-3-15
अस्मद् + ङस् 4-1-2 = मे 8-1-22
अस्मद् + ओस् 4-1-2 = नौ 8-1-20
अस्मद् + आम् 4-1-2 = नः 8-1-21, 8-2-66, 8-3-15
The following two verses show how the above short forms are to be used:
श्रीशस्त्वाऽवतु माऽपीह दत्तात्ते मेऽपि शर्म सः । स्वामी ते मेऽपि स हरिः पातु वामपि नौ विभुः ।।
सुखं वां नौ ददात्वीशः पतिर्वामपि नौ हरिः । सोऽव्याद्वो नः शिवं वो नो दद्यात् सेव्योऽत्र वः स नः ।।
Please note that the above short forms can only be used if युष्मद्/अस्मद् is following another पदम् in the same sentence. The general definition of a sentence is given by “एकतिङ् वाक्यम्।” In general a sentence can contain only one तिङन्त-पदम्।
So in a situation such as ओदनं पच तव भविष्यति। we cannot use ते instead of तव because तव follows the पदम् “पच” which is in a difference sentence.
Please note that the above short forms are optional when there is no अन्वादेश:। So we can have धाता ते भक्तोऽस्ति। or धाता तव भक्तोऽस्ति। But when there is अन्वादेश: then the short form has to be used – for example – योऽग्निर्हव्यवाट् तस्मै ते नम:। Here ते has to be used – तव will not be allowed.
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January 8, 2011
ओ३म्
रामायणम्
त्रिलोकी 2-1-52, 2-4-17 वा., 4-1-21, 1-4-18, 6-4-148 + ष्यन् 5-1-124 वा. = त्रैलोक् य 7-2-117, 1-3-6, 1-3-3, 1-4-18, 6-4-148
Similarly त्रिपादी, सप्ताध्यायी, चतुश्श्लोकी etc.
सचराचरम् / सदेवर्षिगणम् 6-3-82
दैवतम् 5-4-38
सौख्यम् 5-1-124 वा.
षिच् then 6-1-64 सिच्
अभिषिच्य 8-3-59, 8-3-111, 8-3-65
विभीषणम् 3-1-134
कृत्यम् 3-1-120
विज्वर: 2-2-24 वा. , गीता 3-30
स्था + णिच् 3-1-26 = स्थापि 7-3-36
सम् + उद् + स्थापि + ल्यप् 3-4-21/7-1-37 = सम् उत् थ्थाप्य 6-4-51, 8-4-55, 8-4-61 = समुत्थाप्य 8-4-65
स्थित 7-4-40
प्रस्थित: कर्तरि 3-4-72
गम् + क्त्वा = गत्वा 6-4-37
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January 22, 2011
प्र अन्च् – this gets the क्विँन्-प्रत्ययः by 3-2-59. क्विँन् takes सर्वापहारलोपः by 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8, 6-1-67. Now, since क्विँन् is a कित्-प्रत्ययः, by 6-4-24, the उपधा-नकारः of अन्च् takes लोपः to give प्र अच्। Now, by 1-2-46, प्र अच् gets the प्रातिपदिक-सञ्ज्ञा and can now get the सुँप्-प्रत्ययाः।
प्र अच् + सुँ 4-1-2 = प्र अच् स् 1-3-2 = प्र अनुँम्च् स् 7-1-70, 1-1-47 = प्र अन्च् स् 1-3-2, 1-3-3 = प्र अन्च् 6-1-68 = प्रान्च् 6-1-101 = प्रान् 8-2-23 = प्राङ् 8-2-62
प्र अच् + औ 4-1-2 = प्र अन्च् औ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = प्रान्चौ 6-1-101 = प्रांचौ 8-3-24 = प्राञ्चौ 8-4-58.
Similarly, in the case of the remaining सर्वनामस्थान-प्रत्यया: we get –
प्र अच् + जस् = प्राञ्चः। प्र अच् + अम् = प्राञ्चम्। प्र अच् + औट् = प्राञ्चौ।
प्र अच् + शस् 4-1-2 = प्र अच् + अस् 1-3-8, अङ्गम् has भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = प्र च् + अस् 6-4-138 = प्राचः 6-3-138, 8-2-66, 8-3-15
Similarly, with the other अजादि-विभक्तयः, we get,
प्र अच् + टा 4-1-2 = प्राचा। प्र अच् + ङे 4-1-2 = प्राचे। प्र अच् + ङसिँ 4-1-2 = प्राचः। प्र अच् + ङस् 4-1-2 = प्राचः। प्र अच् + ओस् 4-1-2 = प्राचोः। प्र अच् + आम् 4-1-2 = प्राचाम्। प्र अच् + ङि 4-1-2 = प्राचि।
प्र अच् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = प्राच् + भ्याम् 6-1-101 = प्राक् + भ्याम् 8-2-30 = प्राग्भ्याम् 8-2-39. After this 8-2-62 could be applied, but it will not change the form.
Similarly, with the other हलादि-विभक्तयः we get,
प्र अच् + भिस् 4-1-2 = प्राग्भिः। प्र अच् + भ्यस् 4-1-2 = प्राग्भ्यः। प्र अच् + सुप् 4-1-2 = प्राक्षु 8-2-30, 8-2-39, 8-3-59, 8-4-55.
उद् अच् is also formed with the क्विँन्-प्रत्ययः similar to प्र अच्।
उद् अच् + सुँ 4-1-2 = उद् अच् स् 1-3-2 = उद् अनुँम्च् स् 7-1-70, 1-1-47 = उद् अन्च् स् 1-3-2, 1-3-3 = उद् अन्च् 6-1-68 = उद् अन् 8-2-23 = उदङ् 8-2-62.
उद् अच् + औ 4-1-2 = उद् अन्च् औ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = उद् अंचौ 8-3-24 = उदञ्चौ 8-4-58.
Similarly, in the case of the remaining सर्वनामस्थान-प्रत्यया: we get –
उद् अच् + जस् = उदञ्चः। उद् अच् + अम् = उदञ्चम्। उद् अच् + औट् = उदञ्चौ।
उद् अच् + शस् 4-1-2 = उद् अच् + अस् 1-3-8, अङ्गम् has भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = उद् ईच् + अस् 6-4-139 = उदीचः 8-2-66, 8-3-15.
Similarly, with the other अजादि-विभक्तयः, we get,
उद् अच् + टा 4-1-2 = उदीचा। उद् अच् + ङे 4-1-2 = उदीचे। उद् अच् + ङसिँ 4-1-2 = उदीचः। उद् अच् + ङस् 4-1-2 = उदीचः। उद् अच् + ओस् 4-1-2 = उदीचोः। उद् अच् + आम् 4-1-2 = उदीचाम्। उद् अच् + ङि 4-1-2 = उदीचि।
When followed by हलादि-विभक्तयः, the steps are similar to the case of प्र अच् and we have the forms,
उद् अच् + भ्याम् 4-1-2 = उदग्भ्याम्। उद् अच् + भिस् 4-1-2 = उदग्भिः। उद् अच् + भ्यस् 4-1-2 = उदग्भ्यः। उद् अच् + सुप् 4-1-2 = उदक्षु 8-2-30, 8-2-39, 8-3-59, 8-4-55.
सम् अच् is also formed with the क्विँन्-प्रत्ययः similar to प्र अच्।
By 6-3-93, सम् gets the समि-आदेशः to give समि + अच्। Now, by 1-2-46, समि अच् gets the प्रातिपदिक-सञ्ज्ञा which brings in the सुँप्-प्रत्ययाः।
The प्रक्रिया for समि अच् is similar to that of प्र अच्।
समि अच् + सुँ 4-1-2 = समि अच् स् 1-3-2 = समि अनुँम्च् स् 7-1-70, 1-1-47 = समि अन्च् स् 1-3-2, 1-3-3 = समि अन्च् 6-1-68 = सम्यन्च् 6-1-77 = सम्यन् 8-2-23 = सम्यङ् 8-2-62
समि अच् + औ 4-1-2 = समि अन्च् औ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = सम्यन्चौ 6-1-77 = सम्यंचौ 8-3-24 = सम्यञ्चौ 8-4-58.
Similarly, in the case of the remaining सर्वनामस्थान-प्रत्यया: we get –
समि अच् + जस् = सम्यञ्चः। समि अच् + अम् = सम्यञ्चम्। समि अच् + औट् = सम्यञ्चौ।
समि अच् + शस् 4-1-2 = समि अच् + अस् 1-3-8, अङ्गम् has भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = समि च् + अस् 6-4-138 = समीचः 6-3-138, 8-2-66, 8-3-15
Similarly, with the other अजादि-विभक्तयः, we get,
समि अच् + टा 4-1-2 = समीचा। समि अच् + ङे 4-1-2 = समीचे। समि अच् + ङसिँ 4-1-2 = समीचः। समि अच् + ङस् 4-1-2 = समीचः। समि अच् + ओस् 4-1-2 = समीचोः। समि अच् + आम् 4-1-2 = समीचाम्। समि अच् + ङि 4-1-2 = समीचि।
समि अच् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = सम्यच् + भ्याम् 6-1-77 = सम्यक् + भ्याम् 8-2-30 = सम्यग्भ्याम् 8-2-39.
Similarly, with the other हलादि-विभक्तयः we get,
समि अच् + भिस् 4-1-2 = सम्यग्भिः। समि अच् + भ्यस् 4-1-2 = सम्यग्भ्यः। समि अच् + सुप् 4-1-2 = सम्यक्षु 8-2-30, 8-2-39, 8-3-59, 8-4-55.
तिरस् अच् is also formed with the क्विँन्-प्रत्ययः similar to प्र अच्।
Now, by 1-2-46, तिरस् अच् gets the प्रातिपदिक-सञ्ज्ञा which brings in the सुँप्-प्रत्ययाः।
तिरस् अच् + सुँ 4-1-2 = तिरि अच् स् 1-3-2, 6-3-94 = तिरि अनुँम्च् स् 7-1-70, 1-1-47 = तिरि अन्च् स् 1-3-2, 1-3-3 = तिरि अन्च् 6-1-68 = तिर्यन्च् 6-1-77 = तिर्यन् 8-2-23 = तिर्यङ् 8-2-62.
तिरस् अच् + औ 4-1-2 = तिरि अन्च् औ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3, 6-3-94 = तिर्यन्च् औ 6-1-77 = तिर्यंचौ 8-3-24 = तिर्यञ्चौ 8-4-58.
Similarly, in the case of the remaining सर्वनामस्थान-प्रत्यया: we get –
तिरस् अच् + जस् = तिर्यञ्चः। तिरस् अच् + अम् = तिर्यञ्चम्। तिरस् अच् + सम्य तिर्यञ्चौ।
तिरस् अच् + शस् 4-1-2 = तिरस् अच् + अस् 1-3-8, अङ्गम् has भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = तिरस् च् + अस् 6-4-138. Here तिरस् does not get the तिरि-आदेशः because the अकारः has taken लोपः। Now we get = तिरश्चः 8-2-66, 8-3-15, 8-4-40.
Similarly, with the other अजादि-विभक्तयः, we get,
तिरस् अच् + टा 4-1-2 = तिरश्चा। तिरस् अच् + ङे 4-1-2 = तिरश्चे। तिरस् अच् + ङसिँ 4-1-2 = तिरश्चः। तिरस् अच् + ङस् 4-1-2 = तिरश्चः। तिरस् अच् + ओस् 4-1-2 = तिरश्चोः। तिरस् अच् + आम् 4-1-2 = तिरश्चाम्। तिरस् अच् + ङि 4-1-2 = तिरश्चि।
तिरस् अच् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = तिरि अच् + भ्याम् 6-3-94 = तिर्यच् + भ्याम् 6-1-77 = तिर्यक् + भ्याम् 8-2-30 = तिर्यग्भ्याम् 8-2-39
Similarly, with the other हलादि-विभक्तयः we get,
तिरस् अच् + भिस् 4-1-2 = तिर्यग्भिः। तिरस् अच् + भ्यस् 4-1-2 = तिर्यग्भ्यः। तिरस् अच् + सुप् 4-1-2 = तिर्यक्षु 8-2-30, 8-2-39, 8-3-59, 8-4-55.
By the उणादि-सूत्रम् “वर्तमाने पृषद्-बृहन्महज्जगद् शतृँवच्च।” the प्रातिपदिकम् “महत्” will undergo the same operations as a शतृँ-प्रत्ययान्त-शब्द:। This makes it उगित् (one that has an उक् letter as an इत्) and hence 7-1-70 can apply.
महत् + सुँ 4-1-2 = महनुँम्त् + स् 1-3-2, 7-1-70, 1-1-47 = महन्त् + स् 1-3-2, 1-3-3 = महान्त् + स् 6-4-10 = महान्त् 6-1-68 = महान् 8-2-23. Note: After this 8-2-7 cannot be applied because of 8-2-1.
(हे) महत् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = महनुँम्त् + स् 1-3-2, 7-1-70, 1-1-47 = महन्त् + स् 1-3-2, 1-3-3 = महन्त् 6-1-68 = महन् 8-2-23.
महत् + औ 4-1-2 = महन्तौ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = महान्तौ 6-4-10 = महांतौ 8-3-24 = महान्तौ 8-4-58
Similarly, in the case of the remaining सर्वनामस्थान-प्रत्यया: we get –
महत् + जस् = महान्तः। महत् + अम् = महान्तम्। महत् + औट् = महान्तौ।
महत् + शस् 4-1-2 = महत् + अस् 1-3-8 = महतः 8-2-66, 8-3-15
Similarly, with the other अजादि-विभक्तयः, we get,
महत् + टा 4-1-2 = महता। महत् + ङे 4-1-2 = महते। महत् + ङसिँ 4-1-2 = महतः। महत् + ङस् 4-1-2 = महतः। महत् + ओस् 4-1-2 = महतोः। महत् + आम् 4-1-2 = महताम्। महत् + ङि 4-1-2 = महति।
महत् + भ्याम् 4-1-2 = महद्भ्याम् 1-4-17, 8-2-39.
Similarly, with the other हलादि-विभक्तयः we get,
महत् + भिस् 4-1-2 = महद्भिः। महत् + भ्यस् 4-1-2 = महद्भ्यः। महत् + सुप् 4-1-2 = महत्सु 8-2-39, 8-4-55.
धीमत् is a मतुँप्-प्रत्ययान्त-शब्दः and hence 6-4-14 comes into application.
धीमत् + सुँ 4-1-2 = धीमात् + स् 6-4-14, 1-3-2
Note: 7-1-70 is actually a later rule, and also an invariable rule (नित्य-कार्यम्) compared to 6-4-14. So as per 1-4-2, we should apply 7-1-70 before 6-4-14. But if we do that then the mention of “अतु” in 6-4-14 will become useless – it will never find application because then the उपधा will always be a नकार:। So on the basis of वचनसामर्थ्यात् we apply 6-4-14 before 7-1-70.
Now we get धीमान्त् + स् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = धीमान्त् 6-1-68 = धीमान् 8-2-23. Note: After this 8-2-7 cannot be applied because of 8-2-1.
(हे) धीमत् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = धीमनुँम्त् + स् 1-3-2, 7-1-70, 1-1-47 = धीमन्त् + स् 1-3-2, 1-3-3 = धीमन्त् 6-1-68 = धीमन् 8-2-23.
धीमत् + औ 4-1-2 = धीमन्तौ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = धीमंतौ 8-3-24 = धीमन्तौ 8-4-58
Similarly, in the case of the remaining सर्वनामस्थान-प्रत्यया: we get –
धीमत् + जस् = धीमन्तः। धीमत् + अम् = धीमन्तम्। धीमत् + औट् = धीमन्तौ।
धीमत् + शस् 4-1-2 = धीमत् + अस् 1-3-8 = धीमतः 8-2-66, 8-3-15.
Similarly, with the other अजादि-विभक्तयः, we get,
धीमत् + टा 4-1-2 = धीमता। धीमत् + ङे 4-1-2 = धीमते। धीमत् + ङसिँ 4-1-2 = धीमतः। धीमत् + ङस् 4-1-2 = धीमतः। धीमत् + ओस् 4-1-2 = धीमतोः। धीमत् + आम् 4-1-2 = धीमताम्। धीमत् + ङि 4-1-2 = धीमति।
धीमत् + भ्याम् 4-1-2 = धीमद्भ्याम् 8-2-39
Similarly, with the other हलादि-विभक्तयः we get,
धीमत् + भिस् 4-1-2 = धीमद्भिः। धीमत् + भ्यस् 4-1-2 = धीमद्भ्यः। धीमत् + सुप् 4-1-2 = धीमत्सु 8-2-39, 8-4-55.
भवत्-शब्दः can be derived in two ways. In one way it is डवतुँ-प्रत्ययान्तः and is used as a pronoun. In this case, 6-4-14 comes into application and the forms are similar to those of धीमत्। So, we have भवान्, (हे) भवन् (सम्बुद्धिः), भवन्तौ, भवन्तः, भवन्तम्, भवन्तौ, भवतः, भवता, भवद्भ्याम्, भवद्भिः, भवते, भवद्भ्याम्, भवद्भ्यः, भवतः, भवद्भ्याम्, भवद्भ्यः, भवतः, भवतोः, भवताम्, भवति, भवतोः, भवत्सु।
In the second derivation, it is शतृँ-प्रत्ययान्तः and is the present participle of the भू-धातु:। Here, 6-4-14 is not applicable. So, the प्रथमा-एकवचनम् does not have दीर्घः and we get भवन्। The rest of the forms are same as in the case of the डवतुँ-प्रत्ययान्त-भवत्-शब्दः।
ददत् – This is a शतृँ-प्रत्ययान्त-शब्द: derived from the दा-धातु:। Since this धातु: is in the जुहोत्यादि-गणः, the final form is derived through reduplication (अभ्यासः). Here, the दद् of ददत् gets अभ्यस्त-सञ्ज्ञा by 6-1-5. Due to the presence of an अभ्यस्तम् in the प्रातिपदिकम्, 7-1-70 is stopped by 7-1-78 and नुँम् augment does not come for this प्रातिपदिकम्।
ददत् + सुँ 4-1-2 = ददत् + स् 1-3-2 = ददत् 6-1-68. Now 7-1-78 stops 7-1-70 and we get ददद् 8-2-39 = ददत्, ददद् 8-4-56
ददत् + औ 4-1-2 = ददतौ
Similarly, in the case of the remaining सर्वनामस्थान-प्रत्यया: we get –
ददत् + जस् = ददतः। ददत् + अम् = ददतम्। ददत् + औट् = ददतौ।
The remaining forms are similar to those of धीमत्-शब्द:।
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January 22, 2010
ओ३म्
रामायणम्
जल्पत् (3-2-124, 3-1-68, 6-1-97) + सुँ 4-1-2 = जल्पन् त् सुँ 7-1-70 = जल्पन् 1-3-2, 6-1-68, 8-2-23 – after which we cannot apply 8-2-7
गीता – 1-12 we have दध्मौ = ध्मा + लिँट् 3rd person singular
या + लिँट् = या + तिप् 3-4-78 = या + णल् 3-4-82 = य या + औ 6-1-8, 7-4-59, 7-1-34 then 6-1-88
पुनर् is a रेफान्तम् अव्ययम् – not सकारान्तम्
सहित 7-4-42, 6-1-144 वा.
सुग्रीवेण सहित: 2-1-32
अवाप्तवत् + सुँ = अवाप्तवात् 6-4-14, 1-3-2, 6-1-68 = अवाप्तवान्त् 7-1-70 = अवाप्तवान् 8-2-23 after which we cannot use 8-2-7
हित्वा 7-4-43
भातृभि: 2-3-19 सहित:
अनघ 2-2-24
हृषित – गीता 11-45
प्रहृष्ट: 7-2-29
धर्म + अम् + ठक् 4-4-41 = धर्म + इक 7-3-50, 1-2-46, 2-4-71, 1-3-3 = धार्म + इक 7-2-118 = धार्मिक 1-4-18, 6-4-148
दुर्भिक्ष 2-1-6, 2-4-18, 1-2-47
द्रक्ष्यसि – गीता 4-35
दृश् + स्य + अन्ति 3-1-33 = दृअश् + स्यन्ति 6-1-58, 1-1-47, 6-1-97 = द्रक्ष्यन्ति 6-1-77, 8-2-36, 8-2-41, 8-3-59
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February 12, 2011
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ॐ
तद् + दृश् + कञ् 3-2-60 = त आ + दृश 1-3-3, 1-3-8, 6-3-91 = तादृश 6-1-101
Being an उपपद-समासः, by 1-2-46 तादृश gets the प्रातिपदिक-सञ्ज्ञा and the सुँप्-प्रत्ययाः are ordained after it. It is declined like the राम-शब्दः।
In addition to the कञ्-प्रत्यय:, 3-2-60 also ordains the क्विँन्-प्रत्ययः।
तद् + दृश् + क्विँन् 3-2-60 = त आ + दृश् 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8, 6-1-67, 6-3-91 = तादृश् 6-1-101
Being an उपपद-समासः, by 1-2-46 तादृश् gets the प्रातिपदिक-सञ्ज्ञा and the सुँप्-प्रत्ययाः are ordained after it.
The declension of तादृश् in the masculine follows the same steps as the declension of ऋत्विज्।
तादृश् + सुँ 4-1-2 = तादृश् + स् 1-3-2 = तादृश् 6-1-68 = तादृष् 1-4-14, 8-2-36 = तादृड् 8-2-39 = तादृग् 8-2-62 = तादृक्, तादृग् 8-4-56.
तादृश् + औ 4-1-2 = तादृशौ nothing special here because तादृश् does not get the पद-सञ्ज्ञा in this case and is not followed by a झल् letter.
Similarly तादृश् + जस् = तादृशः। तादृश् + अम्= तादृशम्। तादृश् + औट् = तादृशौ।
तादृश् + शस् 4-1-2 = तादृश् + अस् 1-3-4, 1-3-8 = तादृशः 8-2-66, 8-3-15. Note that the प्रत्ययः here is अजादिः and does not have the सर्वनामस्थान-सञ्ज्ञा। Hence the अङ्गम् does not get the पद-सञ्ज्ञा but instead gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18. Thus षत्वम् (by 8-2-36) is stopped because the अङ्गम् doesn’t have the पद-सञ्ज्ञा and neither is a झल् letter following. Also 8-2-62 क्विन्प्रत्ययस्य कुः (which requires the पद-सञ्ज्ञा) doesn’t apply.
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: we get –
तादृश् + टा = तादृशा। तादृश् + ङे = तादृशे। तादृश् + ङसिँ = तादृशः। तादृश् + ङस् = तादृशः। तादृश् + ओस् = तादृशोः। तादृश् + आम् = तादृशाम्। तादृश् + ङि = तादृशि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
तादृश् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = तादृष् + भ्याम् 8-2-36 = तादृड् + भ्याम् 8-2-39 = तादृग्भ्याम् 8-2-62
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
तादृश् + भिस् = तादृग्भि:। तादृश् + भ्यस् = तादृग्भ्यः। तादृश् + सुप् = तादृष् + सु 1-3-3, 8-2-36 = तादृड् + सु 8-2-39 = तादृग् + सु 8-2-62 = तादृग् + षु 8-3-59 = तादृक्षु 8-4-55
षष् is always declined only in the plural – नित्यं बहुवचनान्त: शब्द:। It has the same forms in all three genders.
No new rules are required here.
षष् + जस् 4-1-2 षष् has the षट्-सञ्ज्ञा by 1-1-24 = षष् 7-1-22 = षड् 8-2-39 = षट्, षड् 8-4-56
Similarly षष् + शस् = षट्, षड्
षष् + भिस् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = षड्भिः 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
षष् + भ्यस् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = षड्भ्यः 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
षष् + आम् 4-1-2 = षष् + नाम् 7-1-55, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = षड् + नाम् 8-2-39 = षड् + णाम् 8-4-41
[Note: 8-4-42 does not stop ष्टुत्वम् because the सूत्रम् mentions अनाम् and excludes नाम् from the निषेधः।]
= षण्णाम् 8-4-45, by the वार्त्तिकम् – “प्रत्यये भाषायां नित्यम्”, the णकारादेश: will always be done.
षष् + सुप् 4-1-2 = षष् + सु 1-3-3 = षड् + सु 8-2-39 = षड् + ध्सु , षड् + सु 8-3-29, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3, धुँडागमः is optionally taken.
षड् + सु = षट्सु 8-4-55
षड् + ध्सु = षड् + त्सु 8-4-55 = षट्त्सु 8-4-55
Note: In both the above cases 8-4-41 is stopped by 8-4-42.
Let us consider the प्रातिपदिकम् “वेधस्”। No new rules are required in declining “वेधस्”।
वेधस् + सुँ 4-1-2 = वेधस् + स् 1-3-2 = वेधास् + स् 6-4-14 = वेधास् 6-1-68 = वेधा: 8-2-66, 8-3-15.
(हे) वेधस् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = (हे) वेध: – same steps as above, except 6-4-14 does not apply.
वेधस् + औ 4-1-2 = वेधसौ
Similarly in the case of the remaining अजादि-विभक्तय: we get वेधस् + जस् = वेधस:। वेधस् + अम्= वेधसम्। वेधस् + औट् = वेधसौ। वेधस् + शस् = वेधस:। वेधस् + टा = वेधसा। वेधस् + ङे = वेधसे। वेधस् + ङसिँ = वेधसः। वेधस् + ङस् = वेधसः। वेधस् + ओस् = वेधसोः। वेधस् + आम् = वेधसाम्। वेधस् + ङि = वेधसि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
वेधस् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = वेधोभ्याम् 8-2-66, 1-3-2, 6-1-114, 6-1-87
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
वेधस् + भिस् = वेधोभिः। वेधस् + भ्यस् = वेधोभ्यः। वेधस् + सुप् = वेध:सु, वेधस्सु (8-3-15, 8-3-34, 8-3-36)
Let us consider the प्रातिपदिकम् “निराशिस्”। This is a समास: (compound) formed by using the अव्ययम् निर्/निस् and the feminine प्रातिपदिकम् “आशिस्”। It is an adjective. We will be declining it here in the masculine.
The important thing to remember here is that the ending सकार: of “निराशिस्” comes from the धातु: “शास्” (for details see वार्तिकम् under 6-4-34 शास इदङ्हलोः।)
निराशिस् + सुँ 4-1-2 = निराशिस् 1-3-2, 6-1-68 = निराशिरुँ 8-2-66 = निराशीर् 1-3-2, 8-2-76 = निराशीः 8-3-15
निराशिस् + औ 4-1-2 = निराशिषौ 8-3-60
Similarly निराशिस् + जस् = निराशिषः। निराशिस् + अम्= निराशिषम्। निराशिस् + औट् = निराशिषौ।
निराशिस् + शस् 4-1-2 = निराशिस् + अस् 1-3-4, 1-3-8 = निराशिषः 8-3-60, 8-2-66, 8-3-15. Note that since the प्रत्ययः here is अजादिः and does not have the सर्वनामस्थान-सञ्ज्ञा, the अङ्गम् does not get the पद-सञ्ज्ञा but instead gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18. Thus रुँत्वम् for the ending सकार: of निराशिस् is stopped.
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: we get –
निराशिस् + टा = निराशिषा। निराशिस् + ङे = निराशिषे। निराशिस् + ङसिँ = निराशिषः। निराशिस् + ङस् = निराशिषः। निराशिस् + ओस् = निराशिषोः। निराशिस् + आम् = निराशिषाम्। निराशिस् + ङि = निराशिषि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
निराशिस् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = निराशिरुँ + भ्याम् 8-2-66 = निराशीर्भ्याम् 1-3-2, 8-2-76
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
निराशिस् + भिस् = निराशीर्भि:। निराशिस् + भ्यस् = निराशीर्भ्यः। निराशिस् + सुप् = निराशीर् + सु 1-3-3, 8-2-66, 1-3-2, 8-2-76 = निराशीः + सु 8-3-15 = निराशीः + सु, निराशीस् + सु 8-3-34, 8-3-36
निराशीः + सु = निराशीःषु 8-3-58
निराशीस् + सु = निराशीष्षु 8-3-58, 8-4-41
Let us consider the प्रातिपदिकम् “विद्वस्”। It is formed from the धातु: “विद्” using the शतृँ-प्रत्यय:। The शतृँ-प्रत्यय: gets the वसुँ-आदेश: (reference 7-1-36 विदेः शतुर्वसुः।) Thus it is an उगित्।
विद्वस् + सुँ 4-1-2 = विद्वस् + स् 1-3-2 = विद्वन्स् + स् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = विद्वान्स् + स् 6-4-10 = विद्वान्स् 6-1-68 = विद्वान् 8-2-23. After this 8-2-7 cannot apply because of 8-2-1.
(हे) विद्वस् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = (हे) विद्वस् + स् 1-3-2 = विद्वन्स् + स् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = विद्वन्स् 6-1-68 = (हे) विद्वन् 8-2-23
विद्वस् + औ 4-1-2 = विद्वन्स् + औ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = विद्वान्स् + औ 6-4-10 = विद्वांसौ 8-3-24
Similarly विद्वस् + जस् = विद्वांसः। विद्वस् + अम्= विद्वांसम्। विद्वस् + औट् = विद्वांसौ।
विद्वस् + शस् 4-1-2, अङ्गम् has भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = विदु अस् + अस् 1-3-4, 1-3-8, 6-4-131, 6-1-37 = विदुषः 6-1-108, 8-3-59, 8-2-66, 8-3-15
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: we get –
विद्वस् + टा = विदुषा। विद्वस् + ङे = विदुषे। विद्वस् + ङसिँ = विदुषः। विद्वस् + ङस् = विदुषः। विद्वस् + ओस् = विदुषोः। विद्वस् + आम् = विदुषाम्। विद्वस् + ङि = विदुषि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
विद्वस् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = विद्वद्भ्याम् 8-2-72
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
विद्वस् + भिस् = विद्वद्भि:। विद्वस् + भ्यस् = विद्वद्भ्यः। विद्वस् + सुप् = विद्वत्सु (8-4-55)
The declension of श्रेयस्-शब्दः is similar to that of विद्वस्-शब्दः except that neither 6-4-131 nor 8-2-72 apply. श्रेयस् is formed using the तद्धित-प्रत्यय: “ईयसुँन्” (reference 5-3-57 द्विवचनविभज्योपपदे तरबीयसुनौ।) Thus it an उगित्।
श्रेयस् + सुँ 4-1-2 = श्रेयस् + स् 1-3-2 = श्रेयन्स् + स् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = श्रेयान्स् + स् 6-4-10 = श्रेयान्स् 6-1-68 = श्रेयान् 8-2-23. After this 8-2-7 cannot apply because of 8-2-1.
(हे) श्रेयस् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = श्रेयस् + स् 1-3-2 = श्रेयन्स् + स् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = श्रेयन्स् 6-1-68 = (हे) श्रेयन् 8-2-23
श्रेयस् + औ 4-1-2 = श्रेयन्स् + औ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = श्रेयान्स् + औ 6-4-10 = श्रेयांसौ 8-3-24
Similarly श्रेयस् + जस् = श्रेयांसः। श्रेयस् + अम्= श्रेयांसम्। श्रेयस् + औट् = श्रेयांसौ।
श्रेयस् + शस् 4-1-2, अङ्गम् has भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = श्रेयसः 8-2-66, 8-3-15. रुँत्वम् does not happen because अङ्गम् does not have पद-सञ्ज्ञा.
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: we get –
श्रेयस् + टा = श्रेयसा। श्रेयस् + ङे = श्रेयसे। श्रेयस् + ङसिँ = श्रेयसः। श्रेयस् + ङस् = श्रेयसः। श्रेयस् + ओस् = श्रेयसोः। श्रेयस् + आम् = श्रेयसाम्। श्रेयस् + ङि = श्रेयसि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
श्रेयस् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = श्रेयोभ्याम् 8-2-66, 1-3-2, 6-1-114, 6-1-87
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
श्रेयस् + भिस् = श्रेयोभिः। श्रेयस् + भ्यस् = श्रेयोभ्यः। श्रेयस् + सुप् = श्रेयःसु, श्रेयस्सु (8-3-15, 8-3-34, 8-3-36)
Let us consider the प्रातिपदिकम् “पुम्स्”। It is formed using the उणादि-प्रत्यय: “डुम्सुँन्”। Thus it an उगित्।
The मकार: will take the अनुस्वारादेश: by 8-3-24. But 8-3-24 is in the त्रिपादी section. As per 8-2-1, it has to wait until all prior rules have applied. So we will start with पुम्स्।
पुम्स् + सुँ 4-1-2 = पुम् असुँङ् + स् 1-3-2, 7-1-89, 1-1-53 = पुमस् + स् 1-3-2, 1-3-3 = पुमन्स् + स् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = पुमान्स् + स् 6-4-10 = पुमान्स् 6-1-68 = पुमान् 8-2-23. After this 8-2-7 cannot apply because of 8-2-1.
(हे) पुम्स् + सुँ (सम्बुद्धिः) 4-1-2 = पुम् असुँङ् + स् 1-3-2, 7-1-89, 1-1-53 = पुमस् + स् 1-3-2, 1-3-3 = पुमन्स् + स् 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = पुमन्स् 6-1-68 = (हे) पुमन् 8-2-23
पुम्स् + औ 4-1-2 = पुम् असुँङ् + औ 7-1-89, 1-1-53 = पुमस् + औ 1-3-2, 1-3-3 = पुमन्स् + औ 7-1-70, 1-1-47, 1-3-2, 1-3-3 = पुमान्स् + औ 6-4-10 = पुमांसौ 8-3-24
Similarly पुम्स् + जस् = पुमांसः। पुम्स् + अम्= पुमांसम्। पुम्स् + औट् = पुमांसौ।
पुम्स् + शस् 4-1-2 = पुम्स् + अस् 1-3-4, 1-3-8 = पुंसः 8-2-66, 8-3-15, 8-3-24.
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: we get –
पुम्स् + टा = पुंसा। पुम्स् + ङे = पुंसे। पुम्स् + ङसिँ = पुंसः। पुम्स् + ङस् = पुंसः। पुम्स् + ओस् = पुंसोः। पुम्स् + आम् = पुंसाम्। पुम्स् + ङि = पुंसि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया:।
पुम्स् + भ्याम् 4-1-2, अङ्गम् has पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17 = पुम् + भ्याम् 8-2-23 = पुंभ्याम् 8-3-23 = पुम्भ्याम्, पुंभ्याम् 8-4-59
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
पुम्स् + भिस् = पुम्भिः, पुंभिः। पुम्स् + भ्यस् = पुम्भ्यः, पुंभ्यः। पुम्स् + सुप् = पुंसु।
Let us consider the प्रातिपदिकम् “उशनस्”। This will decline like वेधस् except in the प्रथमा-एकवचनम् and in सम्बुद्धि:।
उशनस् + सुँ 4-1-2 = उशन अनँङ् + सुँ 7-1-94, 1-1-53 = उशन अन् + स् 1-3-2, 1-3-3 = उशनन् + स् 6-1-97 = उशनान् + स् 6-4-8 = उशनान् 6-1-68 = उशना 8-2-7
In सम्बुद्धि: we get three forms due to the वार्त्तिकम् “अस्य सम्बुद्धौ वानङ्, नलोपश्च वा वाच्यः”। They are as follows:
1. When the अनँङ्-आदेश: is not done, then it will decline like वेधस् and we get (हे) उशन:।
2. When अनँङ्-आदेश: is done then we get (हे) उशनस् + सुँ (सम्बुद्धि:) 4-1-2 = उशन अनँङ् + सुँ 7-1-94, 1-1-53 = उशन अन् + स् 1-3-2, 1-3-3 = उशनन् + स् 6-1-97 = (हे) उशनन् 6-1-68. (8-2-8 stops 8-2-7.)
3. As per the वार्त्तिकम् mentioned above, there is optional नकार-लोप: so we get the third form (हे) उशन
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ओ३म्
Feb 12th 2011, रामायणम्
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किञ्चित् + न = किञ्चिद् + न 8-2-39 = किञ्चिन् + न 8-4-45
अग्नेः जायते इति अग्निजम् ।
अग्नि + ङसिँ + जन् + ड 2-2-19, 3-2-98 = अग्नि + ज् अ 1-2-46, 2-4-71, 1-3-7, 6-4-143 व्याख्यानम् –
टिलोपः।
“अप्” is a स्त्रीलिङ्ग-प्रातिपदिकम्, नित्यं बहुवचनान्त-शब्दः। 2 special rules 7-4-48, 6-4-11.
मस्ज् + श + झि = मस्ज् + अ + अन्ति 7-1-3, 1-3-8 = मश् ज् अन्ति 6-1-97, 8-4-40 = मज्जन्ति 8-4-53
नगर 5-2-107
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February 26, 2011
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ॐ
Let us consider the सर्वनाम-शब्द: “अदस्”। Since this is a pronoun, it will decline in all three genders. Presently, we will decline it in the masculine.
अदस् + सुँ 4-1-2 = अद औ 7-2-107 = अदौ 6-1-88 = असौ 7-2-106
अदस् + औ 4-1-2 = अद अ + औ 7-2-102 = अद + औ 6-1-97 = अदौ 6-1-88 = अमू 8-2-80
अदस् + जस् 4-1-2 = अद अ + जस् 7-2-102 = अद + जस् 6-1-97 = अद + शी 7-1-17 = अद + ई 1-3-8 = अदे 6-1-87 = अमी 8-2-81
अदस् + अम् 4-1-2 = अद अ + अम् 7-2-102 = अद + अम् 6-1-97 = अदम् 6-1-107, 1-3-4 = अमुम् 8-2-80
अदस् + औट् = अमू same steps as in प्रथमा-द्विवचनम्।
अदस् + शस् 4-1-2 = अद अ + शस् 7-2-102 = अद + शस् 6-1-97 = अद + अस् 1-3-4, 1-3-8 = अदास् 6-1-102 = अदान् 6-1-103 = अमून् 8-2-80
अदस् + टा 4-1-2 = अद अ + टा 7-2-102 = अद + टा 6-1-97 = अमु + टा 8-2-80 (Note: 7-1-12 was not applied because doing so will make 8-2-3 useless) = अमुना 8-2-3, 1-4-7, 7-3-120 (Note: 7-3-102 does not apply because of 8-2-3.)
अदस् + भ्याम् 4-1-2 = अद अ + भ्याम् 7-2-102 = अद + भ्याम् 6-1-97 = अदाभ्याम् 7-3-102 = अमूभ्याम् 8-2-80
अदस् + भिस् 4-1-2 = अद अ + भिस् 7-2-102 = अद + भिस् 6-1-97 = अदेभिस् 7-3-103 (Note: 7-1-9 is stopped by 7-1-11) = अमीभि: 8-2-66, 8-2-81, 8-3-15
अदस् + ङे 4-1-2 = अद अ + ङे 7-2-102 = अद + ङे 6-1-97 = अद + स्मै 7-1-14 = अमुस्मै 8-2-80 = अमुष्मै 8-3-59
अदस् + भ्यस् 4-1-2 = अद अ + भ्यस् 7-2-102 = अद + भ्यस् 6-1-97 = अदेभ्यस् 7-3-103 = अमीभ्य: 8-2-66, 8-2-81, 8-3-15
अदस् + ङसिँ 4-1-2 = अद अ + ङसिँ 7-2-102 = अद + ङसिँ 6-1-97 = अद + स्मात् 7-1-15 = अमुस्मात् 8-2-80 = अमुष्मात् 8-3-59
अदस् + ङस् 4-1-2 = अद अ + ङस् 7-2-102 = अद + ङस् 6-1-97 = अद + स्य 7-1-12 = अमुस्य 8-2-80 = अमुष्य 8-3-59
अदस् + ओस् 4-1-2 = अद अ + ओस् 7-2-102 = अद + ओस् 6-1-97 = अदे + ओस् 7-3-104 = अदयोस् 6-1-78 = अमुयो: 8-2-66, 8-2-80, 8-3-15
अदस् + आम् 4-1-2 = अद अ + आम् 7-2-102 = अद + आम् 6-1-97 = अद + सुँट् आम् 7-1-52, 1-1-46 = अद + साम् 1-3-2, 1-3-3 = अदे साम् 7-3-103 = अमी साम् 8-2-81 = अमीषाम् 8-3-59
अदस् + ङि 4-1-2 = अद अ + ङि 7-2-102 = अद + ङि 6-1-97 = अद + स्मिन् 7-1-15, 1-3-4 = अमुस्मिन् 8-2-80 = अमुष्मिन् 8-3-59
अदस् + सुप् 4-1-2 = अद अ + सुप् 7-2-102 = अद + सुप् 6-1-97 = अदे + सु 7-3-103, 1-3-3 = अमी + सु 8-2-81 = अमीषु 8-3-59
This concludes our discussion of the हलन्त-पुंलिङ्ग-प्रकरणम्।
Let us now look at the स्त्रीलिङ्ग-प्रातिपदिकम् “उपानह्”। This प्रातिपदिकम् is formed by adding the क्विँप्-प्रत्यय: to the धातु: “नह्” preceded by the उपसर्ग: “उप”। The ending अकार: of “उप” gets the दीर्घादेश: by 6-3-116. The entire क्विँप्-प्रत्यय: takes सर्वापहार-लोप: by 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8 and 6-1-67.
उपानह् + सुँ 4-1-2 = उपानह् 1-3-2, 6-1-68 (now “उपानह्” gets पद-सञ्ज्ञा by 1-1-62, 1-4-14 ) = उपानध् 8-2-34 = उपानद् 8-2-39 = उपानत्/उपानद् 8-4-56
The form in सम्बुद्धि: is the same as above – (हे) उपानत्/उपानद्।
When an अजादि-विभक्ति: follows, there is no special operation. So we have –
उपानह् + औ/औट् = उपानहौ। उपानह् + जस्/शस् = उपानह:। उपानह् + अम् = उपानहम्। उपानह् + टा = उपानहा। उपनह् + ङे = उपानहे। उपनह् + ङसिँ/ङस् = उपानह:। उपनह् + ओस् = उपानहो:। उपानह् + आम् = उपानहाम्। उपनह् + ङि = उपानहि।
Now let us look at the हलादि-विभक्तय:।
उपानह् + भ्याम् 4-1-2 (अङ्गम् has the पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17) = उपानध् + भ्याम् 8-2-34 = उपानद्भ्याम् 8-2-39।
Similarly –
उपानह् + भि: = उपानद्भि:। उपानह् + भ्यस् = उपानद्भ्य:। उपानह् + सुप् = उपानत्सु (8-4-55).
Let us now briefly look at the feminine प्रातिपदिकम् “उष्णिह्” which – just like the masculine प्रातिपदिकम् “ऋत्विज्” – is formed by using the क्विँन्-प्रत्यय: as per 3-2-59. The steps required in the declension of “उष्णिह्” will be similar to those required for “ऋत्विज्”। (Only difference is that where 8-2-36 applies in the case of “ऋत्विज्”, there 8-2-31 applies in the case of “उष्णिह्”)।
Forms are as follows:
प्रथमा/सम्बुद्धि: – उष्णिक्/उष्णिग्*, उष्णिहौ, उष्णिह:
द्वतीया – उष्णिहम्, उष्णिहौ, उष्णिह:
तृतीया – उष्णिहा, उष्णिग्भ्याम्**, उष्णिग्भि:
चतुर्थी – उष्णिहे, उष्णिग्भ्याम्, उष्णिग्भ्य:
पञ्चमी – उष्णिह:, उष्णिग्भ्याम्, उष्णिग्भ्य:
षष्ठी – उष्णिह:, उष्णिहो:, उष्णिहाम्
सप्तमी – उष्णिहि, , उष्णिहो:, उष्णिक्षु***
* 8-2-31, 8-2-39, 8-2-62, 8-4-56
** 8-2-31, 8-2-39, 8-2-62
*** 8-2-31, 8-2-39, 8-2-62, 8-3-59, 8-4-55
Let us consider the स्त्रीलिङ्ग-प्रातिपदिकम् “दिव्”।
दिव् + सुँ 4-1-2 = दि औ + स् 7-1-84, 1-3-2 = द्यौ: 6-1-77, 8-2-66, 8-3-15
Similarly (हे) दिव् + सुँ (सम्बुद्धि:) 4-1-2 = (हे) द्यौ:।
There are no special rules required when an अजादि-विभक्ति: follows:
दिव् + औ/औट् 4-1-2 = दिवौ, दिव् + जस्/शस् 4-1-2 = दिव:, दिव् + अम् 4-1-2 = दिवम्, दिव् + टा 4-1-2 = दिवा, दिव् + ङे 4-1-2 = दिवे, दिव् + ङसिँ/ङस् 4-1-2 = दिव:, दिव् + ओस् 4-1-2 = दिवो:, दिव् + आम् 4-1-2 = दिवाम्, दिव् + ङि 4-1-2 = दिवि।
दिव् + भ्याम् 4-1-2 = दि उ + भ्याम् 1-4-17, 6-1-131 = द्युभ्याम् 6-1-77, 1-3-4
Similarly in the case of the remaining हलादि-विभक्तय: –
दिव् + भिस् 4-1-2 = द्युभि:, दिव् + भ्यस् 4-1-2 = द्युभ्य:, दिव् + सुप् 4-1-2 = द्युषु 8-3-59
Let us consider the declension of the सर्वनाम-शब्द: “इदम्” in the feminine.
इदम् + सुँ 4-1-2 = इदम् + सुँ 7-2-108 (Note: 7-2-108 prevents 7-2-102 from applying) = इयम् + सुँ 7-2-110 = इयम् 1-3-2, 6-1-68
इदम् + औ 4-1-2 = इद अ + औ 7-2-102 = इद + औ 6-1-97 = इदा + औ 4-1-4, 6-1-101 = इमा + औ 7-2-109 = इमा + शी 7-1-18 = इमे 1-3-8, 6-1-87
इदम् + जस् 4-1-2 = इद अ + जस् 7-2-102 = इद + जस् 6-1-97 = इदा + जस् 4-1-4, 6-1-101 = इमा + जस् 7-2-109 = इमा + अस् 1-3-7, 1-3-4 = इमास् 6-1-101 (Note: 6-1-102 was stopped by 6-1-105) = इमा: 8-2-66, 8-3-15
इदम् + अम् 4-1-2 = इद अ + अम् 7-2-102 = इद + अम् 6-1-97 = इदा + अम् 4-1-4, 6-1-101 = इमा + अम् 7-2-109 = इमाम् 6-1-107
इदम् + औट् 4-1-2 = इमे (same steps as in इदम् + औ)
इदम् + शस् 4-1-2 = इद अ + शस् 7-2-102 = इद + शस् 6-1-97 = इदा + शस् 4-1-4, 6-1-101 = इमा + शस् 7-2-109 = इमा + अस् 1-3-8, 1-3-4 = इमास् 6-1-102 (Note: 6-1-105 does not apply here) = इमा: 8-2-66, 8-3-15
इदम् + टा 4-1-2 = इद अ + टा 7-2-102 = इद + टा 6-1-97 = इदा + टा 4-1-4, 6-1-101 = अना + टा 7-2-112 = अना + आ 1-3-7 = अने + आ 7-3-105 = अनया 6-1-78
इदम् + भ्याम् 4-1-2 = इद अ + भ्याम् 7-2-102 = इद + भ्याम् 6-1-97 = इदा + भ्याम् 4-1-4, 6-1-101 = आभ्याम् 7-2-113
Similarly इदम् + भिस् = आभि: 8-2-66, 8-3-15 and इदम् + भ्यस्= आभ्य: 8-2-66, 8-3-15
इदम् + ङे 4-1-2 = इद अ + ङे 7-2-102 = इद + ङे 6-1-97 = इदा + ङे 4-1-4, 6-1-101 = इदा + ए 1-3-8 = इद + स्या ए 7-3-114, 1-1-46, 1-3-3 = इद स्यै 6-1-88 = अस्यै 7-2-113
इदम् + ङसिँ 4-1-2 = इद अ + ङसिँ 7-2-102 = इद + ङसिँ 6-1-97 = इदा + ङसिँ 4-1-4, 6-1-101 = इदा + अस् 1-3-8, 1-3-2 = इद + स्या अस् 7-3-114, 1-1-46, 1-3-3 = इद स्यास् 6-1-101 = अस्यास् 7-2-113 = अस्या: 8-2-66, 8-3-15
Similarly इदम् + ङस् 4-1-2 = अस्या:
इदम् + ओस् 4-1-2 = इद अ + ओस् 7-2-102 = इद + ओस् 6-1-97 = इदा + ओस् 4-1-4, 6-1-101 = अना + ओस् 7-2-112 = अने + ओस् 7-3-105 = अनयोस् 6-1-78 = अनयो: 8-2-66, 8-3-15
इदम् + आम् 4-1-2 = इद अ + आम् 7-2-102 = इद + आम् 6-1-97 = इदा + आम् 4-1-4, 6-1-101 = इदा + स् आम् 7-1-52, 1-1-46, 1-3-3 = आसाम् 7-2-113
इदम् + ङि 4-1-2 = इद अ + ङि 7-2-102 = इद + ङि 6-1-97 = इदा + ङि 4-1-4, 6-1-101 = इदा + आम् 7-3-116 = इद + स्या आम् 7-3-114, 1-1-46, 1-3-3 = इद + स्याम् 6-1-101 = अस्याम् 7-2-113
इदम् + सुप् 4-1-2 = इद अ + सुप् 7-2-102 = इद + सुप् 6-1-97 = इदा + सुप् 4-1-4, 6-1-101 = इदा + सु 1-3-3 = आसु 7-2-113
Let us consider the स्त्रीलिङ्ग-प्रातिपदिकम् “अप्” – this is a नित्यं बहुवचनान्त-शब्द:।
अप् + जस् 4-1-2 = आप् + जस् 1-1-43, 6-4-11 = आप: 1-3-4, 1-3-7, 8-2-66, 8-3-15
अप् + शस् 4-1-2 = अप: 1-3-4, 1-3-8, 8-2-66, 8-3-15. (Note: शस्-प्रत्यय: does not have सर्वनामस्थान-सञ्ज्ञा by 1-1-43. Hence 6-4-11 does not apply.)
अप् + भिस् 4-1-2 = अत् + भिस् 7-4-48 = अद्भि: 8-2-39, 8-2-66, 8-3-15
Similarly अप् +भ्यस् 4-1-2 = अद्भ्य:
Nothing special in the remaining two forms. (7-4-48 does not apply because the प्रत्यय: does not begin with a भकार:)।
अप् + आम् 4-1-2 = अपाम्
अप् + सुप् 4-1-2 = अप्सु
Let us consider the स्त्रीलिङ्ग-प्रातिपदिकम् “दृश्”। It is derived from the धातु: “दृश्” using the क्विँप्-प्रत्यय: (not क्विँन्-प्रत्यय:)। But by 3-2-60, we have seen that the धातु: “दृश्” can take the क्विँन्-प्रत्यय: when the words त्यद् etc. stand as उपपदम्। For this reason, even when the क्विँन्-प्रत्यय: is not actually used, 8-2-62 can apply. Thus “दृश्” will decline similar to the पुंलिङ्ग-प्रातिपदिकम् “ऋत्विज्”।
Now let us consider the सर्वनाम-शब्द: “अदस्” in the feminine.
अदस् + सुँ 4-1-2 = असौ – same steps as in the masculine (shown above.)
अदस् + औ/औट् 4-1-2 = अद अ + औ 7-2-102 = अद + औ 6-1-97 = अद टाप् + औ 4-1-4 = अदा + औ 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदा + शी 7-1-18 = अदे 1-3-8, 6-1-87 = अमू 8-2-80
अदस् + जस् 4-1-2 = अद अ + जस् 7-2-102 = अद + जस् 6-1-97 = अद टाप् + जस् 4-1-4 = अदा + जस् 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदा + अस् 1-3-4, 1-3-7 = अदास् 6-1-101 (Note: 6-1-105 stops 6-1-102) = अदार् 8-2-66, 1-3-2 = अमूर् 8-2-80 = अमू: 8-3-15
अदस् + अम् 4-1-2 = अद अ + अम् 7-2-102 = अद + अम् 6-1-97 = अद टाप् + अम् 4-1-4 = अदा + अम् 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदाम् 6-1-107 = अमूम् 8-2-80
अदस् + शस् 4-1-2 = अद अ + शस् 7-2-102 = अद + शस् 6-1-97 = अद टाप् + शस् 4-1-4 = अदा + शस् 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदा + अस् 1-3-4, 1-3-8 = अदास् 6-1-102 = अदार् 8-2-66, 1-3-2 = अमूर् 8-2-80 = अमू: 8-3-15
अदस् + टा 4-1-2 = अद अ + टा 7-2-102 = अद + टा 6-1-97 = अद टाप् + टा 4-1-4 = अदा + टा 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदा + आ 1-3-7 = अदे + आ 7-3-105 = अदया 6-1-78 = अमुया 8-2-80
अदस् + भ्याम् 4-1-2 = अद अ + भ्याम् 7-2-102 = अद + भ्याम् 6-1-97 = अद टाप् + भ्याम् 4-1-4 = अदा + भ्याम् 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अमूभ्याम् 8-2-80
Similarly अदस् + भिस् 4-1-2 = अमूभि:, अदस् + भ्यस् 4-1-2 = अमूभ्य:।
अदस् + ङे 4-1-2 = अद अ + ङे 7-2-102 = अद + ङे 6-1-97 = अद टाप् + ङे 4-1-4 = अदा + ङे 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदा + ए 1-3-8 = अद + स्या ए 7-3-114, 1-1-46, 1-3-3 = अद + स्यै 6-1-88 = अमुस्यै 8-2-80 = अमुष्यै 8-3-59
अदस् + ङसिँ/ङस् 4-1-2 = अदस् + अस् 1-3-8, 1-3-2 = अद अ + अस् 7-2-102 = अद + अस् 6-1-97 = अद टाप् + अस् 4-1-4 = अदा + अस् 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अद + स्या अस् 7-3-114, 1-1-46, 1-3-3 = अद + स्यास् 6-1-101 = अदस्यार् 8-2-66, 1-3-2 = अमुस्यार् 8-2-80 = अमुष्या: 8-3-15, 8-3-59
अदस् + ओस् 4-1-2 = अद अ + ओस् 7-2-102 = अद + ओस् 6-1-97 = अद टाप् + ओस् 4-1-4 = अदा + ओस् 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदे + ओस् 7-3-105 = अदयोस् 6-1-78 = अदयोर् 8-2-66, 1-3-2 = अमुयोर् 8-2-80 = अमुयो: 8-3-15
अदस् + आम् 4-1-2 =अदस् + आम् 1-3-4 = अद अ + आम् 7-2-102 = अद + आम् 6-1-97 = अद टाप् + आम् 4-1-4 = अदा + आम् 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदा + स् आम् 7-1-52, 1-1-46, 1-3-2, 1-3-3 = अमूषाम् 8-2-80, 8-3-59
अदस् + ङि 4-1-2 = अद अ + ङि 7-2-102 = अद + ङि 6-1-97 = अद टाप् + ङि 4-1-4 = अदा + ङि 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अदा + आम् 7-3-116, 1-3-4 = अद + स्या आम् 7-3-114, 1-1-46, 1-3-3 = अमुष्याम् 8-2-80, 8-3-59
अदस् + सुप् 4-1-2 = अदस् + सु 1-3-3 = अद अ + सु 7-2-102 = अद + सु 6-1-97 = अद टाप् + सु 4-1-4 = अदा + सु 1-3-7, 1-3-3, 6-1-101 = अमूषु 8-2-80, 8-3-59
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ओ३म्
Feb 26th 2011, रामायणम्
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राजवंशान् + शतगुणान् = (8-3-31 पदान्तस्य नस्य शे परे तुग्वा) = राजवंशान्त् + शतगुणान् = राजवंशाञ् च् + शतगुणान् 8-4-40 twice = राजवंशाञ् च् + छतगुणान् 8-4-63 = राजवंशाञ् + छतगुणान् 8-4-65
राजवंशाञ् + शतगुणान् 8-4-40
राजवंशाञ् च् + शतगुणान् 8-3-31, 8-4-40
राजवंशाञ् च् + छतगुणान् 8-3-31, 8-4-40, 8-4-63
यज् + क्त्वा 3-4-21 = इअज् + त्वा 1-3-8, 6-1-15, 1-1-45, 7-2-10 = इज् त्वा 6-1-108 = इष् त्वा 8-2-36 = ईष्ट्वा 8-4-41
दा + क्त्वा 3-4-21 = दथ् + त्वा 7-4-46 = दत् त्वा 8-4-55
विद्वद्भ्य: 1-4-17, 8-2-72
ख्या + यत् 3-1-97 = ख्यी + यत् 6-4-65 = ख्ये य 7-3-84, 1-3-3
महायशा: 6-4-14 – गीता 2-56
राजवंशान् 1-4-52 gives कर्म-सञ्ज्ञा
स्थापि 3-1-26, 7-3-36
स्थापि + इस्य ति 3-4-78, 3-1-33, 7-2-35 = स्थापे + इस्य ति 7-3-84 then 6-1-78, 8-3-59
अस्मिन् 7-1-15, 7-2-113
स्वे 7-1-16 – गीता 18-45
चत्वार: एव वर्णा: – चातुर्वर्ण्यम् 5-1-124 वा.
नि युज् स्य ति 3-4-78, 3-1-33, 7-2-10 then use 7-3-86, 8-2-30, 8-3-59, 8-4-55
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March 12, 2011
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ओ३म्
We will now begin the declension of neuter bases ending in a consonant – हलन्त-नपुंसकलिङ्ग-प्रकरणम्।
Let us consider the प्रातिपदिकम् “इदम्” (“this”) in the neuter gender. “इदम्” is a सर्वनाम-शब्द: as per 1-1-27.
इदम् + सुँ/अम् 4-1-2 = इदम् 7-1-23. Note: 1-1-63 stops 7-2-102 and 7-2-108.
इदम् + औ/औट् 4-1-2 = इदम् + शी 7-1-19 = इद + शी 7-2-102, 6-1-97 = इम + शी 7-2-109 = इमे 1-3-8, 6-1-87
इदम् + जस् /शस् 4-1-2 = इदम् + शि 7-1-20, 1-1-42 = इद + शि 7-2-102, 6-1-97 = इम + शि 7-2-109 = इम नुँम् + शि 7-1-72, 1-1-47 = इमानि 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8, 6-4-8
The remaining forms are same as in the masculine.
Now let us consider the same प्रातिपदिकम् “इदम्” (“this”) when used in अन्वादेशे in the neuter gender. (Recall the सूत्रम् 2-4-34 द्वितीयाटौस्स्वेनः)।
इदम् + अम् 4-1-2 = इदम् 7-1-23 = एनत् (Note: Here even though 1-1-63 stops further अङ्ग-कार्याणि after लुक् of अम्-प्रत्ययः, since we have the वार्त्तिकम् – अन्वादेशे नपुंसक एनद्वक्तव्यः prescribing “एनत्”-आदेश:, based on the वचनसामर्थ्यम्, we do the आदेश:।) = एनद् 8-2-39 = एनत् /एनद् 8-4-56.
In द्वितीया-विभक्ति: द्विवचनम् and बहुवचनम् the forms (in अन्वादेशे) will be
एने and एनानि respectively. These can be derived using the सूत्रम् 2-4-34. The वार्त्तिकम् is not necessary.
The remaining forms are same as in the masculine.
Let us consider the प्रातिपदिकम् “अहन्” (“a day”).
अहन् + सुँ/अम् 4-1-2 = अहन् 7-1-23 = अहर् 8-2-69 = अहः 8-3-15
Note: When performing सन्धि: we have to remember that the रेफ: in “अहर्” is not a “रुँ”। So for example, अहरह: (6-1-113 does not apply), अहर्गण: (6-1-114 does not apply), अहरागच्छति (8-3-17 does not apply).
Here, in the सूत्रम् 8-2-69 रोऽसुपि, असुँपि is a नञ्-तत्पुरुष-समासः। नञ् conveys negation (प्रतिषेधः)। There are 2 kinds of negations –
प्रसज्य-प्रतिषेधः स्यात् क्रियया सह यत्र नञ्।
पर्युदास: स विज्ञेयो यत्रोत्तरपदेन नञ्।
1) पर्युदास-प्रतिषेधः – For example – अब्राह्मणम् आनय। (Bring someone other than a ब्राह्मण:)। Here the verbal activity (of bringing) has primary importance. The negation is secondary. The verbal activity (आनय) itself is not negated.
This पर्युदास-प्रतिषेधः is generally expressed using a नञ्-तत्पुरुष-समासः (like अब्राह्मणम्)।
After the negation, the verbal activity still proceeds with a thing/person that is similar to the one that was negated. So in the above example a man (other than a ब्राह्मण:) will be brought, but not something dissimilar like a dog or a stone or nothing.
2) प्रसज्य-प्रतिषेधः – For example – निन्दा न कर्तव्या। (Criticism is not to be done.) Here the negation is primary, the verbal activity is secondary. The negation (“न”) connects with the verbal activity (कर्तव्या) – so the entire action is negated.
This प्रसज्य-प्रतिषेधः is generally expressed using the particle न (not compounded) connecting with the verbal activity. For example – न हि सुप्तस्य सिंहस्य मुखे प्रविशन्ति मृगा:।
After the negation, the verbal activity is stopped.
These two are explained here so that we understand in what sense पाणिनिः has used असुँपि in the सूत्रम् 8-2-69. Using the above guidelines, असुँपि should have been a पर्युदास-प्रतिषेधः। It would have meant that in order to apply the सूत्रम् 8-2-69 there should be a प्रत्यय: following that is different from सुँप्। But interpreting it in that manner will not give us the desired results. Consider the example अहरागच्छति। Here after applying 7-1-23 there is no प्रत्यय: at all following “अहन्”। So if असुँपि were to be taken as a पर्युदास-प्रतिषेधः then 8-2-69 could not be applied. But 8-2-69 is required to apply here. So असुँपि is interpreted as a प्रसज्य-प्रतिषेधः। Another example where this interpretation is necessary is a compound like अहर्गणः। Here also after applying 2-4-71, there is no प्रत्यय: following “अहन्”, but 8-2-69 is required to apply.
(हे) अहन् + सुँ (सम्बुद्धिः) = (हे) अहः। same steps as in प्रथमा-एकवचनम्।
अहन् + औ/औट् 4-1-2 = अहन् + शी 7-1-19, अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18 = अहन् + ई 1-3-8 = अहनी, अह्नी 6-4-136
अहन् + जस्/शस् 4-1-2 = अहन् + शि 7-1-20, 1-1-42 = अहान् + शि 6-4-8 = अहानि 1-3-8
Similarly, in the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: (अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18), 6-4-134 will always apply (except in the case of the affix ङि ) and we get –
अहन् + टा = अह्ना। अहन् + ङे = अह्ने। अहन् + ङसिँ = अह्नः। अहन् + ङस् = अह्नः। अहन् + ओस् = अह्नोः। अहन् + आम् = अह्नाम्।
अहन् + ङि = अहन् + इ 1-3-8 = अहनि, अह्नि 6-4-136
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया: (अङ्गम् gets the पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17)।
अहन् + भ्याम् = अहरुँ + भ्याम् 8-2-68 = अहर् + भ्याम् 1-3-2, 1-3-4 = अह उ + भ्याम् 6-1-114 = अहोभ्याम् 6-1-87
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
अहन् + भिस् = अहोभिः। अहन् + भ्यस् = अहोभ्यः। अहन् + सुप् = अहःसु, अहस्सु 8-3-36
Let us consider the प्रातिपदिकम् “दण्डिन्” – this is an adjective meaning “one that has a दण्ड:”। Here we will be declining it in the neuter, so it will be qualifying a neuter noun like कुलम्।
दण्डिन् + सुँ/अम् 4-1-2 = दण्डिन् 7-1-23 = दण्डि 8-2-7
(हे) दण्डिन् + सुँ (सम्बुद्धिः) = दण्डिन् 7-1-23 = दण्डिन् 8-2-8 stops 8-2-7.
Now, by the वार्त्तिकम् – सम्बुद्धौ नपुंसकानां नलोपो वा वाच्यः, नकार-लोपः is optional giving the alternate form as
(हे) दण्डि।
दण्डिन् + औ/औट् 4-1-2 = दण्डिन् + शी 7-1-19 = दण्डिनी 1-3-8
दण्डिन् + जस्/शस् 4-1-2 = दण्डिन् + शि 7-1-20, 1-1-42 = दण्डीन् + शि 6-4-8 (Note: 6-4-12 does not stop 6-4-8) = दण्डीनि 1-3-8
The remaining forms are same as in the masculine.
Let us consider the adjective प्रातिपदिकम् “ददत्” (“giving”).
We have seen earlier that the प्रातिपदिकम् “ददत्” is a शतृँ-प्रत्ययान्त-शब्द: derived from the दा-धातु: and the “दद्” of ददत् gets अभ्यस्त-सञ्ज्ञा by 6-1-5.
Due to the presence of an अभ्यस्तम् in the प्रातिपदिकम्, the नुँम् augmentation by either 7-1-70 or 7-1-72 is stopped by 7-1-78.
ददत् + सुँ/अम् 4-1-2 = ददत् 7-1-23 = ददद् 8-2-39 = ददत् / ददद् 8-4-56
The form is the same in सम्बुद्धिः।
ददत् + औ/औट् 4-1-2 = ददत् + शी 7-1-19 = ददती 1-3-8 (Note: 7-1-80 and 7-1-81 do not apply here because the अङ्गम् “दद्” for the शतृँ-प्रत्यय: does not end in the अवर्ण:)।
ददत् + जस् /शस् 4-1-2 = ददत् + शि 7-1-20, 1-1-42 = ददत् + इ 1-3-8 = ददति
But, optionally we get नुँम्-आगमः by 7-1-79 वा नपुंसकस्य
ददत् + जस् /शस् 4-1-2 = ददत् + शि 7-1-20, 1-1-42 = दद नुँम् त् + शि 7-1-79, 1-1-47 = ददन्ति 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8 = ददंति 8-3-24 = ददन्ति 8-4-58
So there are two forms ददति / ददन्ति।
In the case of the remaining अजादि-प्रत्यया:(अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18) we get
ददत् + टा = ददता। ददत् + ङे = ददते। ददत् + ङसिँ/ङस् = ददतः। ददत् + ओस् = ददतोः। ददत् + आम् = ददताम्। ददत् + ङि = ददति।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया: (अङ्गम् gets the पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17)।
ददत् + भ्याम् = ददद् + भ्याम् 8-2-39 = ददद्भ्याम् ।
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
ददत् + भिस् = ददद्भिः। ददत् + भ्यस् = ददद्भ्यः। ददत् + सु = ददत्सु (8-4-55)।
Let us consider the प्रातिपदिकम् “तुदत्” (“hurting”).
This is a शतृँ-प्रत्ययान्त-शब्द: derived from the तुद्-धातु:। The तुद्-धातुः belongs to तुदादि-गणः। When the शतृँ-प्रत्यय: follows, the धातु: “तुद्” takes the श-प्रत्यय:। So we get तुद् + श + शतृँ = तुद + अत् 1-3-8, 1-3-2 = तुदत् 6-1-97.
तुदत् + सुँ/अम् 4-1-2 = तुदत् 7-1-23 = तुदद् 8-2-39 = तुदत् / तुदद् 8-4-56
The form is the same in सम्बुद्धिः।
तुदत् + औ/औट् 4-1-2 = तुदत् + शी 7-1-19 = तुदती 1-3-8
Since the अङ्गम् (“तुद”) for the शतृँ-प्रत्ययः ends in the अवर्ण: (in this case an अकारः), by 7-1-80 आच्छीनद्योर्नुम् तुदत् gets the नुँम्-आगमः optionally, when followed by शी-प्रत्ययः।
तुदत् + औ/औट् 4-1-2 = तुदत् + शी 7-1-19 = तुद नुँम् त् + शी 7-1-80, 1-1-47 = तुदन्ती 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8 = तुदंती 8-3-24 = तुदन्ती 8-4-58
So there are two forms तुदती/तुदन्ती।
तुदत् + जस् /शस् 4-1-2 = तुदत् + शि 7-1-20, 1-1-42 = तुद नुँम् त् + शि 7-1-70/7-1-72, 1-1-47 = तुदन्ति 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8 = तुदंति 8-3-24 = तुदन्ति 8-4-58
There is nothing special in the remaining forms – they will be similar to those of the प्रातिपदिकम् “ददत्” shown above.
Let us consider the प्रातिपदिकम् “पचत्” (“cooking”).
This is a शतृँ-प्रत्ययान्त-शब्द: derived from the पच्-धातु:। The पच्-धातुः belongs to भ्वादि-गणः। When the शतृँ-प्रत्यय: follows, the धातु: “पच्” takes the शप्-प्रत्यय:। So we get पच् + शप् + शतृँ = पच + अत् 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8 = पचत् 6-1-97.
पचत् + सुँ/अम् 4-1-2 = पचत् 7-1-23 = पचद् 8-2-39 = पचत् / पचद् 8-4-56
The form is the same in सम्बुद्धिः।
Since the अङ्गम् (“पच”) for the शतृँ-प्रत्ययः ends in the अवर्ण: (in this case an अकारः), by 7-1-81 शप्श्यनोर्नित्यम् पचत् gets the नुँम्-आगमः always, when followed by शी-प्रत्ययः।
पचत् + औ/औट् 4-1-2 = पचत् + शी 7-1-19 = पच नुँम् त् + शी 7-1-81, 1-1-47 = पचन्ती 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8 = पचंती 8-3-24 = पचन्ती 8-4-58
पचत् + जस् /शस् 4-1-2 = पचत् + शि 7-1-20, 1-1-42 = पच नुँम् त् + शि 7-1-70/7-1-72, 1-1-47 = पचन्ति 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8 = पचंति 8-3-24 = पचन्ति 8-4-58
There is nothing special in the remaining forms – they will be similar to those of the प्रातिपदिकम् “ददत्” shown above.
Let us consider the neuter प्रातिपदिकम् “धनुस्” (“bow”).
धनुस् + सुँ/अम् 4-1-2 = धनुस् 7-1-23 = धनुः 8-2-66, 8-3-15
The form is the same in सम्बुद्धिः।
धनुस् + औ/औट् 4-1-2 = धनुस् + शी 7-1-19 = धनुषी 1-3-8, 8-3-59
धनुस् + जस्/शस् 4-1-2 = धनुस् + शि 7-1-20, 1-1-42 = धनु नुँम् स् + शि 7-1-72, 1-1-47 = धनुन्स् + इ 1-3-2, 1-3-3, 1-3-8 = धनून्सि 6-4-10 = धनूंसि 8-3-24 = धनूंषि 8-3-58, 8-3-59.
In the case of the remaining अजादि-प्रत्यया: (अङ्गम् gets the भ-सञ्ज्ञा by 1-4-18) we get
धनुस् + टा = धनुषा। धनुस् + ङे = धनुषे। धनुस् + ङसिँ/ङस् = धनुषः। धनुस् + ओस् = धनुषोः। धनुस् + आम् = धनुषाम्। धनुस् + ङि = धनुषि।
Let us now consider the हलादि-प्रत्यया: (अङ्गम् gets the पद-सञ्ज्ञा by 1-4-17)।
धनुस् + भ्याम् = धनुर् + भ्याम् 8-2-66 = धनुर्भ्याम् ।
Similarly, in the case of the remaining हलादि-प्रत्यया: we get –
धनुस् + भिस् = धनुर्भिः। धनुस् + भ्यस् = धनुर्भ्यः।
धनुस् +सुप् 4-1-2 = धनुस् +सु 1-3-3 = धनुः + सु 8-2-66, 8-3-15 = धनुः + सु 8-3-36 or धनुस् + सु 8-3-34
= धनुःषु 8-3-58, 8-3-59 or धनुष्षु 8-3-58, 8-3-59, 8-4-41
Let us now consider the प्रातिपदिकम् “अदस्”” (“that over there, yonder”). “अदस्” is a सर्वनाम-शब्द: as per 1-1-27. We will be declining it here in the neuter.
अदस् + सुँ/अम् 4-1-2 = अदस् 7-1-23 (Note: 7-2-107 cannot apply because of 1-1-63) = अदः 8-2-66, 8-3-15
Note: 8-2-80 does does not apply since there is a सकार: at the end of “अदस्”। Further operations on “अदस्” have been stopped by 1-1-63
अदस् + औ/औट् 4-1-2 = अदस् + शी 7-1-19 = अद + शी 7-2-102, 6-1-97 = अदे 1-3-8, 6-1-77 = अमू 8-2-80
अदस् + जस्/शस् 4-1-2 = अदस् + शि 7-1-20, 1-1-42 = अद + शि 7-2-102, 6-1-97 = अद नुँम् + शि 7-1-72, 1-1-47 = अदन् + शि 1-3-2, 1-3-3 = अदानि 6-4-8, 1-3-8 = अमूनि 8-2-80
The remaining forms are the same as in the masculine.
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Mar 26th 2011 and Apr 9th 2011
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ओ३म्
Consider the अव्ययम् “उच्चैस्” from गीता v1-12
“सिंहनादं विनद्योच्चैः शङ्खं दध्मौ प्रतापवान् ।”
उच्चैस् has अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-37। It belongs to the स्वरादि-गणः।
उच्चैस् + सुँ 4-1-2 = उच्चैस् (सुँप-लुक् by 2-4-82, “उच्चैस्” पद-सञ्ज्ञा by 1-1-62 प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्, 1-4-14 सुप्तिङन्तं पदम्)
= उच्चैः (8-2-66, 8-3-15)
Consider the अव्ययम् “स्थाने” from गीता v6-13
“स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च |”
“स्थाने” is considered to be included in the स्वरादि-गणः under 1-1-37। (Because स्वरादि-गणः is an आकृति-गण:।)
स्थाने + सुँ 4-1-2 = स्थाने (सुँप-लुक् by 2-4-82)
Consider the अव्ययम् “भूयस्” from गीता v10-1
“भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः |”
“भूयस्” belongs to the चादि-गणः listed under 1-4-57. Hence it gets the निपात-सञ्ज्ञा। Since it is a निपातः it gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-37।
भूयस् + सुँ 4-1-2 = भूयस् (सुँप-लुक् by 2-4-82, “भूयस्” पद-सञ्ज्ञा by 1-1-62 प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्, 1-4-14 सुप्तिङन्तं पदम्)
= भूयः (8-2-66, 8-3-15)
Consider the form “अहंकारम्” from गीता v16-18
“अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिताः |
मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः ||”
By the गण-सूत्रम् “उपसर्ग-विभक्ति-स्वर-प्रतिरूपकाश्च।”, “अहम्” (used in “अहंकारम्”) is included in the चादि-गणः under 1-4-57. Hence it gets the निपात-सञ्ज्ञा। Since it is a निपातः it gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-37।
Note: The “अहम्” here is not the प्रथमा-एकवचनम् of the सर्वनाम-प्रातिपदिकम् “अस्मद्”। It is as विभक्ति-प्रतिरूपकः।
सुँप-लुक् by 2-4-82।
Consider the अव्ययम् “अहो” from गीता v1-45
“अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् |”
“अहो” is considered to be included in the चादि-गणः under 1-4-57। (Because चादि-गणः is also an आकृति-गण:।) Hence it gets the निपात-सञ्ज्ञा। Since it is a निपातः it gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-37।
अहो + सुँ 4-1-2 = अहो (सुँप-लुक् by 2-4-82)
Consider the अव्ययम् “अपि” from गीता v1-35
“अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते |”
“अपि” belongs to the प्रादि-गणः listed under 1-4-58। Hence it gets the निपात-सञ्ज्ञा। Since it is a निपातः it gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-37।
अपि + सुँ 4-1-2 = अपि (सुँप-लुक् by 2-4-82)
Consider the अव्ययम् “अभि” from गीता v1-11
“भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि |”
“अभि” belongs to the प्रादि-गणः listed under 1-4-58। Hence it gets the निपात-सञ्ज्ञा। Since it is a निपातः it gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-37। Here it is used in conjunction with the verb रक्षन्तु। By 1-4-59, अभि also gets उपसर्ग-सञ्ज्ञा।
Consider the form यतः from गीता v6-26
“यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम् ।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ।।”
The form यतः is from the प्रातिपदिकम् “यद्” followed by the तसिँल्-प्रत्ययः।
यद् + तसिँल् 4-1-2 = य अ + तसिँल् 7-2-102 = य + तसिँल् 6-1-97 = यतस् 1-3-2, 1-3-3
Now “यतस्” gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-38.
यतस् + सुँ 4-1-2 = यतस् (सुँप-लुक् by 2-4-82, “यतस्” gets पद-सञ्ज्ञा by 1-1-62 प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्, 1-4-14 सुप्तिङन्तं पदम्)
= यतः (8-2-66, 8-3-15)
Consider the form “भस्मसात्” from गीता v4-37
“यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।”
5-4-52 prescribes the सातिँ-प्रत्ययः।
Now “भस्मसात्” gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-38.
भस्मसात् + सुँ 4-1-2 = भस्मसात् (सुँप-लुक् by 2-4-82)
Consider the form “सहस्रकृत्वः” from गीता v11-39
“नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ||”
By 5-4-17, the संख्या-शब्दः “सहस्र” gets the “कृत्वसुँच्” प्रत्ययः।
सहस्र + कृत्वसुँच् 5-4-17 = सहस्रकृत्वस् 1-3-2, 1-3-3
Now “सहस्रकृत्वस्” gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-38.
सहस्रकृत्वस् + सुँ 4-1-2 = सहस्रकृत्वस् (सुँप-लुक् by 2-4-82, “सहस्रकृत्वस्” gets पद-सञ्ज्ञा by 1-1-62 प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्, 1-4-14 सुप्तिङन्तं पदम्) = सहस्रकृत्वः (8-2-66, 8-3-15)
Consider the form “शत्रुवत्” from गीता v6-6
“अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् ||”
By 5-1-115, “शत्रु” gets the “वतिँ” प्रत्ययः।
शत्रु + वतिँ 5-1-115 = शत्रुवत् 1-3-2
Now “शत्रुवत्” gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-38.
शत्रुवत् + सुँ 4-1-2 = शत्रुवत् (सुँप-लुक् by 2-4-82)
Consider the form “विना” from गीता v10-39
“न तदस्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ||”
By 5-2-27, “विना” is formed by adding ना-प्रत्ययः to “वि”।
Now “विना” gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-38.
विना + सुँ 4-1-2 = विना (सुँप-लुक् by 2-4-82)
Consider the form ज्ञातुम् from गीता v11-54
“भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन |
ज्ञातुं द्रष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परन्तप ।।”
ज्ञातुम् is a तुमुँन्-प्रत्ययान्त-शब्दः formed from the धातुः “ज्ञा”। It gives the meaning of “to know”
ज्ञा + तुमुँन् 3-4-65 = ज्ञातुम् 1-3-2, 1-3-3
Now by 1-1-39, ज्ञातुम् gets अव्यय-सञ्ज्ञा।
ज्ञातुम् + सुँ 4-1-2 = ज्ञातुम् (सुँप-लुक् by 2-4-82)
Consider the form ज्ञात्वा from गीता v14-1
“परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् |
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ||”
ज्ञात्वा is a क्त्वा-प्रत्ययान्त-शब्दः formed from the धातुः “ज्ञा”। It gives the meaning of “having known”
ज्ञा + क्त्वा 3-4-21 = ज्ञात्वा 1-3-8
Now by 1-1-40, ज्ञात्वा gets अव्यय-सञ्ज्ञा।
ज्ञात्वा + सुँ 4-1-2 = ज्ञात्वा (सुँप-लुक् by 2-4-82)
Consider the अव्ययीभाव-समासः “यथाविधि” formed using 2-1-6.
“यथाविधि” gets अव्यय-सञ्ज्ञा by 1-1-41.
यथाविधि + सुँ 4-1-2 = यथाविधि (सुँप-लुक् by 2-4-82)
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ओ३म्
March 26th 2011, रामायणम्
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ओम्
पण्य 3-1-101
इण् + तिप् 3-4-78 = इण् + त् 3-4-100 = इण् + यास् त् 3-4-104, 1-1-5 = इण् + यास् स्त् 3-4-107 = ई यास् स्त् 3-1-93, 3-4-116, 7-4-25 = ई यात् 8-2-29
ऋषि + ङस् + अण् 4-1-83, 4-3-120 = ऋषि + अण् 1-2-46, 2-4-71 = आर्षि + अ 7-2-117, 1-1-51 = आर्ष् + अ 1-4-18, 6-4-148
वल्मीक ङस् + इञ् 4-1-95 = वाल्मीकि 1-2-46, 2-4-71, 7-2-117, 1-4-18, 6-4-148
वाल्मीकीय 4-2-114, 1-1-73, 7-1-2, 1-4-18, 6-4-148
End of Balakandam of Ramayanam, For Sundarakandam please use the “Sundarakandam Class notes”
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Apr 23rd 2011
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ओ३म्
Consider the धातुः √भू (भू सत्तायाम्)।
In the धातु-पाठः, the भू-धातुः has no इत् letters. As per 1-3-78, the भू-धातुः, in कर्तरि प्रयोग:, gets the परस्मैपद-प्रत्यया: by default. By 1-4-99 the तिङ्-प्रत्यया: get परस्मैपद-सञ्ज्ञा, but 1-4-100 excludes the तङ्-प्रत्यया:। So भू-धातुः will take only the nine प्रत्यया: from “तिप्” up to “मस्” in कर्तरि प्रयोग:।
Let us take the विवक्षा of वर्तमान-काले, कर्तरि प्रयोग:।
भू + लँट् 3-4-69, 3-2-123।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
भू + लँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3 = भू + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भू + शप् + तिप् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + तिप् 7-3-84 = भो + अ + ति 1-3-3, 1-3-8 = भवति 6-1-78
प्रथम-पुरुषः, द्विवचनम् (3rd person, dual)
भू + लँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3 = भू + तस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भू + शप् + तस् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + तस् 7-3-84 = भो + अ + तस् 1-3-3, 1-3-8, 1-3-4 = भवतस् 6-1-78 = भवतः 8-2-66, 8-3-15
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम् (3rd person, plural)
भू + लँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3 = भू + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भू + शप् + झि 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + झि 7-3-84 = भो + अ + झि 1-3-3, 1-3-8 = भव + झि 6-1-78 = भव + अन्त् इ 7-1-3 = भवन्ति 6-1-97
मध्यम-पुरुषः, एकवचनम् (2nd person, singular)
भू + लँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3 = भू + सिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-105, सिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भू + शप् + सिप् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + सिप् 7-3-84 = भो + अ + सि 1-3-3, 1-3-8 = भवसि 6-1-78
Similarly
मध्यम-पुरुषः, द्विवचनम् (2nd person, dual)
भू + लँट् = भू + ल् = भू + थस् = भू + शप् + थस् = भो + शप् + थस् = भो + अ + थस् = भवथस् = भवथः
मध्यम-पुरुषः, बहुवचनम् (2nd person, plural)
भू + लँट् = भू + ल् = भू + थ = भू + शप् + थ = भो + शप् + थ = भो + अ + थ = भवथ
उत्तम-पुरुषः, एकवचनम् (1st person, singular)
भू + लँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3 = भू + मिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, मिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भू + शप् + मिप् 3-1-68 = भो + शप् + मिप् 7-3-84 = भो + अ + मि 1-3-3, 1-3-8
= भव + मि 6-1-78 = भवामि 7-3-101
Similarly
उत्तम-पुरुषः, द्विवचनम् (1st person, dual)
भू + लँट् = भू + ल् = भू + वस् = भू + शप् + वस् = भो + शप् + वस् = भो + अ + वस् = भववस् = भवावस् = भवावः
उत्तम-पुरुषः, बहुवचनम् (1st person, plural)
भू + लँट् = भू + ल् = भू + मस् = भू + शप् + मस् = भो + शप् + मस् = भो + अ + मस् = भवमस् = भवामस् = भवामः
The following gives the forms for धातुः √भू (“भू सत्तायाम्”) लँट्-लकारः, कर्तरि प्रयोग:
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | स भवति | तौ भवतः | ते भवन्ति |
म०पु | त्वं भवसि | युवां भवथः | यूयं भवथ |
उ०पु | अहं भवामि | आवां भवावः | वयं भवामः |
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May 14th 2011
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ओ३म्
Let us take the भू-धातुः (भू सत्तायाम्, भ्वादि-गणः, धातु-पाठः #१.१), लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
भू + लोँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + ति 1-3-3 = भू + तु 3-4-86
= भू + शप् + तु 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + तु 7-3-84 = भो + अ + तु 1-3-3, 1-3-8 = भवतु 6-1-78
If लोँट् is used आशिषि 3-3-173, then तु optionally gets तातङ्-आदेशः to give the alternate form भवतात् 7-1-35, 1-1-55, 1-3-3
प्रथम-पुरुषः, द्विवचनम् (3rd person, dual)
भू + लोँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + तस् 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + ताम् 3-4-85, 3-4-101, ताम् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= भू + शप् + ताम् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + ताम् 7-3-84 = भो + अ + ताम् 1-3-3, 1-3-8, 1-3-4 = भवताम् 6-1-78
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम् (3rd person, plural)
भू + लोँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + झ् उ 3-4-86 = भो + शप् + झ् उ 7-3-84 = भो + अ + झ् उ 1-3-3, 1-3-8
= भव + झ् उ 6-1-78 = भव + अन्त् उ 7-1-3 = भवन्तु 6-1-97
मध्यम-पुरुषः, एकवचनम् (2nd person, singular)
भू + लोँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + सिप् 1-4-101, 1-4-102, 1-4-105, सिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + हि 3-4-87, हि also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= भू + शप् + हि 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + हि 7-3-84 = भो + अ + हि 1-3-3, 1-3-8, 1-3-4 = भवहि 6-1-78 = भव 6-4-105
If लोँट् is used आशिषि 3-3-173, then हि optionally gets तातङ्-आदेशः to give the alternate form भवतात् 7-1-35, 1-1-55, 1-3-3
Similarly
मध्यम-पुरुषः, द्विवचनम् (2nd person, dual)
भू + लोँट् = भू + ल् = भू + थस् = भू + तम् = भू + शप् + तम् = भो + शप् + तम् = भो + अ + तम् = भवतम्
मध्यम-पुरुषः, बहुवचनम् (2nd person, plural)
भू + लोँट् = भू + ल् = भू + थ = भू + त = भू + शप् + त = भो + शप् + त = भो + अ + त = भवत
उत्तम-पुरुषः, एकवचनम् (1st person, singular)
भू + लोँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + मिप् 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, मिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + नि 3-4-89, नि also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= भू + आट् नि 3-4-92, 1-1-46
= भू आनि 1-3-3
= भू + शप् + आनि 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + आनि 7-3-84 = भो + अ + आनि 1-3-3, 1-3-8 = भव + आनि 6-1-78 = भवानि 6-1-101
उत्तम-पुरुषः, द्विवचनम् (1st person, dual)
भू + लोँट् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + वस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, वस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + व 3-4-85, 3-4-99 = भू + आट् व 3-4-92, 1-1-46 = भू + आ व 1-3-3
= भू + शप् + आव 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + आव 7-3-84 = भो + अ + आव 1-3-3, 1-3-8, 1-3-4 = भव + आव 6-1-78 = भवाव 6-1-101
Similarly उत्तम-पुरुषः, बहुवचनम् (1st person, plural)
भवाम
The following gives the forms for धातुः √भू (“भू सत्तायाम्”) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:
पुरुषः\वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्र०पु | भवतु(भवतात्) | भवताम् | भवन्तु |
म०पु | भव(भवतात्) | भवतम् | भवत |
उ०पु | भवानि | भवाव | भवाम |
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May 28th 2011
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ओ३म्
Let us take the भू-धातुः, लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
भू + लँङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + ति 1-3-3 = भू + त् 3-4-100
= भू + शप् + त् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भो + शप् + त् 7-3-84
= भो + अ + त् 1-3-3, 1-3-8 = भवत् 6-1-78 = अट् भवत् 6-4-71, 1-1-46 = अभवत् 1-3-3
Similarly,
प्रथम-पुरुषः, द्विवचनम् (3rd person, dual)
भू + लँङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + तस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + ताम् 3-4-101, 1-3-4 prevents the ending मकारः of ताम् from getting the इत्-सञ्ज्ञा। Now ताम् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56.
= भू + शप् + ताम् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भो + शप् + ताम् 7-3-84
= भो + अ + ताम् 1-3-3, 1-3-8 = भवताम् 6-1-78 = अट् भवताम् 6-4-71, 1-1-46 = अभवताम् 1-3-3
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम् (3rd person, plural)
भू + लँङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + झ् 3-4-100
= भू + शप् + झ् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + झ् 7-3-84 = भो + अ + झ् 1-3-3, 1-3-8 = भव + झ् 6-1-78 = भव + अन्त् 7-1-3
= भवन्त् 6-1-97 = अट् भवन्त् 6-4-71, 1-1-46 = अभवन्त् 1-3-3 = अभवन् 8-2-23
मध्यम-पुरुषः, एकवचनम् (2nd person, singular)
भू + लँङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + सिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-105, सिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + सि 1-3-3 = भू + स् 3-4-100
= भू + शप् + स् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भो + शप् + स् 7-3-84
= भो + अ + स् 1-3-3, 1-3-8 = भवस् 6-1-78 = अट् भवस् 6-4-71, 1-1-46 = अभवस् 1-3-3
= अभवः 8-2-66, 8-3-15
Similarly,
मध्यम-पुरुषः, द्विवचनम् (2nd person, dual)
= अभवतम्। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम् shown above.
मध्यम-पुरुषः, बहुवचनम् (2nd person, plural)
= अभवत। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम् shown above.
उत्तम-पुरुषः, एकवचनम् (1st person, singular)
भू + लँङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + मिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, मिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + अम् 3-4-101, अम् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= भू + शप् + अम् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भो + शप् + अम् 7-3-84 = भो + अ + अम् 1-3-3, 1-3-8, 1-3-4 = भव + अम् 6-1-78 = भवम् 6-1-97
= अट् भवम् 6-4-71, 1-1-46 = अभवम् 1-3-3
Similarly,
उत्तम-पुरुषः, द्विवचनम् (1st person, dual)
भू + लँङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + वस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, वस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + व 3-4-99
= भू + शप् + व 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = भो + शप् + व 7-3-84
= भो + अ + व 1-3-3, 1-3-8 = भव + व 6-1-78 = भवाव 7-3-101 = अट् भवाव 6-4-71, 1-1-46
= अभवाव 1-3-3
Similarly उत्तम-पुरुषः, बहुवचनम् (1st person, plural)
अभवाम।
The following gives the forms for धातुः √भू (“भू सत्तायाम्”) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:
पुरुषः\वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्र०पु | अभवत् | अभवताम् | अभवन् |
म०पु | अभवः | अभवतम् | अभवत |
उ०पु | अभवम् | अभवाव | अभवाम |
Let us take the भू-धातुः (भू सत्तायाम्, भ्वादि-गणः, धातु-पाठः #१. १), विधि-लिँङ् , कर्तरि प्रयोग:।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
भू + लिँङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + ति 1-3-3 = भू + त् 3-4-100 = भू + यासुट् त् 3-4-103, 1-1-46 = भू + यास् त् 1-3-3
= भू + शप् + यास् त् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + यास् त् 7-3-84 = भो + अ + यास् त् 1-3-3, 1-3-8 = भव यास् त् 6-1-78 = भव इय् त् 7-2-80 = भव इत् 6-1-66 = भवेत् 6-1-87
प्रथम-पुरुषः, द्विवचनम् (3rd person, dual)
भू + लिङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + तस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + ताम् 3-4-101, ताम् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= भू + यासुट् ताम् 3-4-103, 1-1-46 = भू + यास् ताम् 1-3-3, 1-3-4
= भू + शप् + यास् ताम् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + यास् ताम् 7-3-84 = भो + अ + यास् ताम् 1-3-3, 1-3-8 = भव यास् ताम् 6-1-78
= भव इय् ताम् 7-2-80 = भव इ ताम् 6-1-66 = भवेताम् 6-1-87
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम् (3rd person, plural)
भू + लिँङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + जुस् 3-4-108, जुस् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= भू + उस् 1-3-7, 1-3-4
= भू + यासुट् उस् 3-4-103, 1-1-46 = भू + यास् उस् 1-3-3
= भू + शप् + यास् उस् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + यास् उस् 7-3-84 = भो + अ + यास् उस् 1-3-3, 1-3-8
= भव यास् उस् 6-1-78 = भव इय् उस् 7-2-80 = भवेयुस् 6-1-87 = भवेयुः 8-2-66, 8-3-15
मध्यम-पुरुषः, एकवचनम् (2nd person, singular)
भू + लिङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + सिप् 1-4-101, 1-4-102, 1-4-105, सिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + सि 1-3-3 = भू + स् 3-4-100 = भू + यासुट् स् 3-4-103, 1-1-46 = भू + यास् स् 1-3-3
= भू + शप् + यास् स् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + यास् स् 7-3-84 = भो + अ + यास् स् 1-3-3, 1-3-8 = भव यास् स् 6-1-78
= भव इय् स् 7-2-80 = भव इ स् 6-1-66 = भवेस् 6-1-87 = भवे: 8-2-66, 8-3-15
Similarly,
मध्यम-पुरुषः, द्विवचनम् (2nd person, dual)
= भवेतम्। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम् shown above.
मध्यम-पुरुषः, बहुवचनम् (2nd person, plural)
= भवेत। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम् shown above.
उत्तम-पुरुषः, एकवचनम् (1st person, singular)
भू + लिङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + मिप् 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, मिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + अम् 3-4-101, अम् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56 = भू + यासुट् अम् 3-4-103, 1-1-46 = भू + यास् अम् 1-3-3, 1-3-4
= भू + शप् + यास् अम् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + यास् अम् 7-3-84 = भो + अ + यास् अम् 1-3-3, 1-3-8 = भव यास् अम् 6-1-78 = भव इय् अम् 7-2-80 = भवेयम् 6-1-87
उत्तम-पुरुषः, द्विवचनम् (1st person, dual)
भू + लिङ् = भू + ल् 1-3-2, 1-3-3
= भू + वस् 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, वस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भू + व 3-4-99 = भू + यासुट् व 3-4-103, 1-1-46 = भू + यास् व 1-3-3
= भू + शप् + यास् व 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= भो + शप् + यास् व 7-3-84 = भो + अ + यास् व 1-3-3, 1-3-8 = भव यास् व 6-1-78 = भव इय् व 7-2-80
= भवेव 6-1-66, 6-1-87
उत्तम-पुरुषः, बहुवचनम् (1st person, plural)
Simlarly भवेम।
The following gives the forms for धातुः √भू (“भू सत्तायाम्”) विधि-लिँङ् , कर्तरि प्रयोग:
पुरुषः\वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्र०पु | भवेत् | भवेताम् | भवेयुः |
म०पु | भवे: | भवेतम् | भवेत |
उ०पु | भवेयम् | भवेव | भवेम |
Let us take the अत्-धातुः (भ्वादि-गणः, अतँ सातत्यगमने १. ३८), लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
अत् + लँङ् = अत् + ल् 1-3-2, 1-3-3
= अत् + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= अत् + ति 1-3-3 = अत् + त् 3-4-100
= अत् + शप् + त् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= अत् + अ + त् 1-3-3, 1-3-8 = आट् अतत् 6-4-72, 1-1-46
= आ अतत् 1-3-3 = आतत् 6-1-90
प्रथम-पुरुषः, द्विवचनम् (3rd person, dual)
अत् + लङ् = अत् + ल् 1-3-2, 1-3-3
= अत् + तस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= अत् + ताम् 3-4-85, 3-4-101, ताम् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= अत् + शप् + ताम् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= अत् + अ + ताम् 1-3-3, 1-3-8, 1-3-4
= आट् अतताम् 6-4-72, 1-1-46 = आ अतताम् 1-3-3 = आतताम् 6-1-90
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम् (3rd person, plural)
अत् + लङ् = अत् + ल् 1-3-2, 1-3-3
= अत् + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= अत् + झ् 3-4-100
= अत् + शप् + झ् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= अत् + अ + झ् 1-3-3, 1-3-8 = अत् + अ + अन्त् 7-1-3 = अतन्त् 6-1-97
= आट् अतन्त् 6-4-72, 1-1-46 = आ अतन्त् 1-3-3
= आतन्त् 6-1-90 = आतन् 8-2-23
Similarly, 6-4-72, 6-1-90 apply in the remaining forms and the conjugation table is as follows.
The following gives the forms for धातुः √अत् लँङ् , कर्तरि प्रयोग:।
पुरुषः\वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्र०पु | आतत् | आतताम् | आतन् |
म०पु | आतः | आततम् | आतत |
उ०पु | आतम् | आताव | आताम |
Let us take the शुच्-धातुः (भ्वादि-गणः, शुचँ शोके १. २१०), लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
शुच् + लँट् 3-2-123 = शुच् + ल् 1-3-2, 1-3-3
= शुच् + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शुच् + शप् + तिप् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शुच् + अ + ति 1-3-3, 1-3-8 = शोच् + अ + ति 7-3-86 = शोचति।
The conjugation table of √शुच् in लँट्, लोँट्, लँङ् and विधि-लिँङ् can be simply arrived at from that of √भू by replacing the अङ्गम् “भव” with “शोच”।
The following gives the forms for धातुः √शुच् लँट , कर्तरि प्रयोग:।
पुरुषः\वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्र०पु | शोचति | शोचतः | शोचन्ति |
म०पु | शोचसि | शोचथः | शोचथ |
उ०पु | शोचामि | शोचावः | शोचामः |
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June 11th 2011
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ओ३म्
Consider the धातु: टुनदिँ समृद्धौ, भ्वादि-गणः, धातु-पाठः #१. ७०
The “टु” at the beginning of this धातुः gets इत्-सञ्ज्ञा by 1-3-5. The इकारः at the end gets इत्-सञ्ज्ञा by 1-3-2. Therefore this धातुः is an इदित्।
Both the “टु” and the “इ” take लोप: by 1-3-9 तस्य लोपः।
नद् 1-3-5, 1-3-2, 1-3-9 = न नुँम् द् 7-1-58, 1-1-47 = न न् द् 1-3-2, 1-3-3, 1-3-9, 8-3-24, 8-4-58.
Now let us look at लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
नन्द् + लँट् = नन्द् + ल् 1-3-2, 1-3-3 = नन्द् + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= नन्द् + शप् + तिप् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= नन्द् + अ + ति 1-3-3, 1-3-8 = नन्दति
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् for this धातु: will follow the same steps as those for √भू, except that instead of the अङ्गम् “भव” the अङ्गम् here will be “नन्द”।
The forms for लँट् will be नन्दति, नन्दतः, नन्दन्ति etc.
The forms for लोँट् will be नन्दतु (नन्दतात्), नन्दताम्, नन्दन्तु etc.
The forms for लँङ् will be अनन्दत्, अनन्दताम्, अनन्दन् etc.
The forms for विधिलिँङ् will be नन्देत्, नन्देताम्, नन्देयुः etc.
Let us consider the √गुप्-धातुः (गुपूँ रक्षणे, भ्वादि-गणः, धातु-पाठः #१. ४६१), लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
गुप् + आय 3-1-28 = गोप् + आय 3-4-114, 7-3-86 = गोपाय । By 3-1-32, गोपाय gets धातु-सञ्ज्ञा।
Now we can add the लकाराः लँट् etc. to the गोपाय-धातुः।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
गोपाय + लँट् 3-2-123 = गोपाय + ल् 1-3-2, 1-3-3
= गोपाय + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= गोपाय + शप् + तिप् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = गोपाय + अ + ति 1-3-3, 1-3-8 = गोपायति 6-1-97
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् for this धातु: will follow the same steps as those for √भू, except that instead of the अङ्गम् “भव” the अङ्गम् here will be “गोपाय”।
The forms for लँट् will be गोपायति, गोपायतः, गोपायन्ति etc.
The forms for लोँट् will be गोपायतु (गोपायतात्), गोपायताम्, गोपायन्तु etc.
The forms for लँङ् will be अगोपायत्, अगोपायताम्, अगोपायन् etc.
The forms for विधिलिँङ् will be गोपायेत्, गोपायेताम्, गोपायेयुः etc.
Let us consider the √क्रम्-धातुः (क्रमुँ पादविक्षेपे, भ्वादि-गणः, धातु-पाठः #१. ५४५), लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
श्यन्-पक्षे –
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
क्रम् + लँट् 3-2-123 = क्रम् + ल् 1-3-2, 1-3-3 = क्रम् + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= क्रम् + श्यन् + तिप् 3-1-70, श्यन् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = क्रम् + य + ति 1-3-3, 1-3-8 = क्राम्यति 7-3-76
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् for this धातु: will follow the same steps as those for √भू, except that instead of the अङ्गम् “भव” the अङ्गम् here will be “क्राम्य”।
The forms for लँट् will be क्राम्यति, क्राम्यतः, क्राम्यन्ति etc.
The forms for लोँट् will be क्राम्यतु (क्राम्यतात्), क्राम्यताम्, क्राम्यन्तु etc.
The forms for लँङ् will be अक्राम्यत्, अक्राम्यताम्, अक्राम्यन् etc.
The forms for विधिलिँङ् will be क्राम्येत्, क्राम्येताम्, क्राम्येयुः etc.
शप्-पक्षे –
The श्यन्-प्रत्यय: is prescribed only optionally by 3-1-70. In the case where the श्यन्-प्रत्यय: is not used, the default शप्-प्रत्यय: is used by 3-1-68, giving the form क्रामति for लँट्, कर्तरि प्रयोग:, प्रथम-पुरुष:, एकवचनम्।
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् in this case will follow the same steps as those for √भू, except that instead of the अङ्गम् “भव” the अङ्गम् here will be “क्राम”।
The forms for लँट् will be क्रामति, क्रामतः, क्रामन्ति etc.
The forms for लोँट् will be क्रामतु (क्रामतात्), क्रामताम्, क्रामन्तु etc.
The forms for लँङ् will be अक्रामत्, अक्रामताम्, अक्रामन् etc.
The forms for विधिलिँङ् will be क्रामेत्, क्रामेताम्, क्रामेयुः etc.
Let us consider √श्रु-धातुः (श्रु श्रवणे, भ्वादि-गणः, धातु-पाठः #१. १०९२), लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
श्रु + लँट् 3-2-123 = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शृ + श्नु + तिप् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + ति 1-3-8, 1-3-3
The प्रत्यय: “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ”
= शृ + नो + ति 7-3-84 = शृणोति (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
प्रथम-पुरुषः, द्विवचनम् (3rd person, dual)
श्रु + लँट् 3-2-123 = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + तस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, 1-3-4, तस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शृ + श्नु + तस् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + तस् 1-3-8. Both “नु” as well as “तस्” are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृणुतः 8-2-66, 8-3-15, (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम् (3rd person, plural)
श्रु + लँट् 3-2-123 = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शृ + श्नु + झि 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + झि 1-3-8
Both “नु” as well as “झि” are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृनु + अन्ति 7-1-3 = शृन् व् अन्ति 6-4-87 = शृण्वन्ति (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
मध्यम-पुरुषः, एकवचनम् (2nd person, singular)
Derivation similar to that of प्रथम-पुरुषः, एकवचनम्।
श्रु + लँट् 3-2-123 = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + सिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-105, सिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शृ + श्नु + सिप् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + सि 1-3-8, 1-3-3
The प्रत्यय: “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ”
= शृ + नो + सि 7-3-84
= शृनोषि 8-3-59 = शृणोषि (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
Similarly,
मध्यम-पुरुषः, द्विवचनम् (2nd person, dual)
= शृणुथः। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम् shown above.
मध्यम-पुरुषः, बहुवचनम् (2nd person, plural)
= शृणुथ। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम् shown above.
उत्तम-पुरुषः, एकवचनम् (1st person, singular)
= शृणोमि। Derivation similar to that of प्रथम-पुरुषः, एकवचनम्।
उत्तम-पुरुषः, द्विवचनम् (1st person, dual)
श्रु + लँट् 3-2-123 = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + वस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, वस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शृ + श्नु + वस् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + वस् 1-3-8, 1-3-4
Both “नु” as well as “वस्” are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृनुवस्/ शृन्वस् 6-4-107, 1-1-52 = शृनुवः/शृन्वः 8-2-66, 8-3-15 = शृणुवः/शृण्वः (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)
उत्तम-पुरुषः, बहुवचनम् (1st person, plural)
Simlarly शृणुमः/शृण्मः।
The following gives the forms for धातुः √श्रु (“श्रु श्रवणे”) लँट्-लकारः, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | शृणोति | शृणुतः | शृण्वन्ति |
म०पु | शृणोषि | शृणुथः | शृणुथ |
उ०पु | शृणोमि | शृणुवः/शृण्वः | शृणुमः/शृण्मः |
Let us consider the √श्रु-धातुः, लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
श्रु + लोँट् 3-3-162, 3-4-69
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
श्रु + लोँट् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + तु 1-3-3, 3-4-86
= शृ + श्नु + तु 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + तु 1-3-8
The प्रत्यय: “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ”
= शृ + नो + तु 7-3-84 = शृणोतु (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
If लोँट् used in the sense of benediction (आशिषि) 3-3-173, then तु optionally gets तातङ्-आदेशः to give the alternate form शृणुतात्।
श्रु + लोँट् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + तु 1-3-3, 3-4-86
= शृ + श्नु + तु 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + तु 1-3-8
= शृ + नु + तातङ् 7-1-35, 1-1-55
“तातङ्” is ङित् (since it has ङकारः as an इत्) and “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृनुतात् 1-3-3 = शृणुतात् (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
प्रथम-पुरुषः, द्विवचनम् (3rd person, dual)
श्रु + लोँट् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + तस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + ताम् 3-4-85, 3-4-101, ताम् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= शृ + श्नु + ताम् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + ताम् 1-3-8, 1-3-4
Both “नु” as well as “ताम्” are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृणुताम् (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम् (3rd person, plural)
श्रु + लोँट् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + झ् उ 3-4-86
= शृ + श्नु + झ् उ 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + झ् उ 1-3-8
Both “नु” as well as “झि” are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृ + नु + अन्तु 7-1-3 = शृ न् व् अन्तु 6-4-87 = शृण्वन्तु (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
मध्यम-पुरुषः, एकवचनम् (2nd person, singular)
श्रु + लोँट् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + सिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-105, सिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + सि 1-3-3
= श्रु + हि 3-4-87, हि also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= शृ + श्नु + हि 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शृ + नु + हि 1-3-8
Both “नु” as well as “हि” (which is अपित् by 3-4-87) are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृनु 6-4-106 = शृणु (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)
If लोँट् used in the sense of benediction (आशिषि) 3-3-173, then हि optionally gets तातङ्-आदेशः (by 7-1-35) to give the alternate form शृणुतात्।
Similarly
मध्यम-पुरुषः, द्विवचनम् (2nd person, dual)
= शृणुतम्। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम्।
मध्यम-पुरुषः, बहुवचनम् (2nd person, plural)
= शृणुत। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम्।
उत्तम-पुरुषः, एकवचनम् (1st person, singular)
श्रु + लोँट् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + मिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, मिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + मि 1-3-3
= श्रु + नि 3-4-89, नि also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56 = श्रु + आट् नि 3-4-92, 1-1-46
= श्रु आनि 1-3-3
= शृ + श्नु + आनि 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + आनि 1-3-8
The प्रत्यय: “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ”
शृ नो आनि 7-3-84 = शृनवानि 6-1-78
= शृणवानि (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
उत्तम-पुरुषः, द्विवचनम् (1st person, dual)
श्रु + लोँट् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3 = श्रु + वस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, वस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + व 3-4-85, 3-4-99 = श्रु + आट् व 3-4-92, 1-1-46 = श्रु + आव 1-3-3
= शृ + श्नु + आव 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + आव 1-3-8
The प्रत्यय: “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ”
= शृ + नो + आव 7-3-84 = शृनवाव 6-1-78 = शृणवाव (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
Similarly उत्तम-पुरुषः, बहुवचनम् (1st person, plural)
शृणवाम।
The following gives the forms for धातुः √श्रु (“श्रु श्रवणे”) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:
पुरुषः\वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्र०पु | शृणोतु (शृणुतात्) | शृणुताम् | शृण्वन्तु |
म०पु | शृणु (शृणुतात्) | शृणुतम् | शृणुत |
उ०पु | शृणवानि | शृणवाव | शृणवाम |
Let us take the श्रु-धातुः, लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
श्रु + लँङ् 3-2-111, 3-4-69
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
श्रु + लँङ् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3= श्रु + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113= श्रु + ति 1-3-3 = श्रु + त् 3-4-100 = शृ + श्नु + त् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + त् 1-3-8
The प्रत्यय: “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ”
= शृनो + त् 7-3-84
= अट् शृनोत् 6-4-71, 1-1-46 = अशृनोत् 1-3-3 = अशृणोत् (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
प्रथम-पुरुषः, द्विवचनम् (3rd person, dual)
श्रु + लँङ् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + तस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + ताम् 3-4-101, 1-3-4 prevents the ending मकारः of ताम् from getting the इत्-सञ्ज्ञा। ताम् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56.
= शृ + श्नु + ताम् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ +नु + ताम् 1-3-8
Both “नु” as well as “ताम्” are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= अट् शृनुताम् 6-4-71, 1-1-46 = अशृनुताम् 1-3-3
= अशृणुताम् (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम् (3rd person, plural)
श्रु + लँङ् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + झ् 3-4-100
= शृ + श्नु + झ् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + झ् 1-3-8
Both “नु” as well as “झि” are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृ + नु + अन्त् 7-1-3 = शृन्वन्त् 6-4-87 = अट् शृन्वन्त् 6-4-71, 1-1-46 = अशृन्वन्त् 1-3-3
= अशृण्वन् 8-2-23, (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
मध्यम-पुरुषः, एकवचनम् (2nd person, singular)
श्रु + लँङ् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + सिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-105, सिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + सि 1-3-3 = श्रु + स् 3-4-100 = शृ + श्नु + स् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + स् 1-3-8
The प्रत्यय: “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ”
= शृ + नो + स् 7-3-84 = अट् शृनोस् 6-4-71, 1-1-46 = अशृनोस् 1-3-3
= अशृणोः 8-2-66, 8-3-15, (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
Similarly,
मध्यम-पुरुषः, द्विवचनम् (2nd person, dual)
= अशृणुतम्। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम् shown above.
मध्यम-पुरुषः, बहुवचनम् (2nd person, plural)
= अशृणुत। Derivation is similar to that of प्रथम-पुरुष-द्विवचनम् shown above.
उत्तम-पुरुषः, एकवचनम् (1st person, singular)
श्रु + लँङ् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + मिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, मिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + अम् 3-4-101, अम् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= शृ + श्नु + अम् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + अम् 1-3-8, 1-3-4
The प्रत्यय: “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ”
= शृ + नो + अम् 7-3-84 = शृनवम् 6-1-78 = अट् शृनवम् 6-4-71, 1-1-46
= अशृनवम् 1-3-3 = अशृणवम् (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)।
Similarly,
उत्तम-पुरुषः, द्विवचनम् (1st person, dual)
श्रु + लँङ् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + वस् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-107, वस् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + व 3-4-99
= शृ + श्नु + व 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + व 1-3-8
Both “नु” as well as “व” are ङिद्वत् by 1-2-4. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृनुव/शृन्व 6-4-107, 1-1-52
= अट् शृनुव/शृन्व 6-4-71, 1-1-46 = अ शृनुव/शृन्व 1-3-3
= अशृणुव/अशृण्व (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)
Similarly उत्तम-पुरुषः, बहुवचनम् (1st person, plural)
अशृणुम/अशृण्म।
The following gives the forms for धातुः √श्रु (“श्रु श्रवणे”) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
पुरुषः\वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्र०पु | अशृणोत् | अशृणुताम् | अशृण्वन् |
म०पु | अशृणोः | अशृणुतम् | अशृणुत |
उ०पु | अशृणवम् | अशृणुव/अशृण्व | अशृणुम/अशृण्म |
Let us take the श्रु-धातुः, विधि-लिँङ् , कर्तरि प्रयोग:।
श्रु + विधिलिँङ् 3-3-161, 3-4-69
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
श्रु + लिँङ् = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + ति 1-3-3 = श्रु + त् 3-4-100 = श्रु + यासुट् त् 3-4-103, 1-1-46 = श्रु + यास् त् 1-3-3
= शृ + श्नु + यास् त् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = शृ + नु + यास् त् 1-3-8
Now “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4 and “यास् त्” is ङित् by 3-4-103. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृनु + या त् 7-2-79 = शृणुयात् (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)
प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम्
श्रु + लिङ् 3-3-161 = श्रु + ल् 1-3-2, 1-3-3
= श्रु + झि 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, झि gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= श्रु + जुस् 3-4-108, जुस् also gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 1-1-56
= श्रु + उस् 1-3-7, 1-3-4
= श्रु + यासुट् उस् 3-4-103, 1-1-46 = श्रु + यास् उस् 1-3-3
= शृ + श्नु + यास् उस् 3-1-74, श्नु which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= शृ + नु + यास् उस् 1-3-8
Now “नु” is ङिद्वत् by 1-2-4 and “यास् उस्” is ङित् by 3-4-103. Therefore 1-1-5 prevents 7-3-84 from performing the गुण: substitution for the ऋकार: of “शृ” as well as the उकार: of “नु”।
= शृ + नु + या उस् 7-2-79
= शृ + नु + युस् 6-1-96
= शृनुयु: 8-2-66, 8-3-15 = शृणुयु: (वार्त्तिकम् (under 8-4-1) – ऋवर्णान्नस्य णत्वं वाच्यम्)
The following gives the forms for धातुः √श्रु (“श्रु श्रवणे”) विधि-लिँङ् , कर्तरि प्रयोग:
पुरुषः\वचनम् | एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् |
प्र०पु | शृणुयात् | शृणुयाताम् | शृणुयुः |
म०पु | शृणुया: | शृणुयातम् | शृणुयात |
उ०पु | शृणुयाम् | शृणुयाव | शृणुयाम |
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June 25th 2011
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ओ३म्
Let us consider √गम्-धातुः (गमॢँ गतौ, भ्वादि-गणः, धातु-पाठः # १. ११३७), लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम् (3rd person, singular)
गम् + लँट् 3-2-123 = गम् + ल् 1-3-2, 1-3-3
= गम् + तिप् 3-4-78, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, तिप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= गम् + शप् + तिप् 3-1-68, शप् which is a शित्, gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= गम् + अ + ति 1-3-3, 1-3-8 = गछ् + अ + ति 7-3-77 = ग तुँक् छ् + अति 6-1-73, 1-1-46 = ग त् छ ति 1-3-2, 1-3-3 = गच्छति 8-4-40
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् for this धातु: will follow the same steps as those for √भू, except that instead of the अङ्गम् “भव” the अङ्गम् here will be “गच्छ”।
The forms for लँट् will be गच्छति, गच्छतः, गच्छन्ति etc.
The forms for लोँट् will be गच्छतु (गच्छतात्), गच्छताम्, गच्छन्तु etc.
The forms for लँङ् will be अगच्छत्, अगच्छताम्, अगच्छन् etc.
The forms for विधिलिँङ् will be गच्छेत्, गच्छेताम्, गच्छेयुः etc.
The following table gives the forms for धातुः √एध् (एधँ वृद्धौ, धातु-पाठः # १. २) लँट्-लकारः, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | एधते | एधेते | एधन्ते |
म०पु | एधसे | एधेथे | एधध्वे |
उ०पु | एधे | एधावहे | एधामहे |
The following table gives the forms for धातुः √एध् (एधँ वृद्धौ, धातु-पाठः # १. २) लोँट्-लकारः, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | एधताम् | एधेताम् | एधन्ताम् |
म०पु | एधस्व | एधेथाम् | एधध्वम् |
उ०पु | एधै | एधावहै | एधामहै |
The following table gives the forms for धातुः √एध् (एधँ वृद्धौ, धातु-पाठः # १. २) लँङ्-लकारः, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ऐधत | ऐधेताम् | ऐधन्त |
म०पु | ऐधथाः | ऐधेथाम् | ऐधध्वम् |
उ०पु | ऐधे | ऐधावहि | ऐधामहि |
The following table gives the forms for धातुः √एध् (एधँ वृद्धौ, धातु-पाठः # १. २) (विधि)लिँङ्-लकारः, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | एधेत | एधेयाताम् | एधेरन् |
म०पु | एधेथाः | एधेयाथाम् | एधेध्वम् |
उ०पु | एधेय | एधेवहि | एधेमहि |
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July 9th 2011
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ओ३म्
Let us consider √वच्, अदादि-गणः, वचँ परिभाषणे, धातु-पाठः # २. ५८, लँट्, भावे/कर्मणि।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम्।
वच् + लँट् 3-4-69, 3-2-123 = वच् + ल् 1-3-2, 1-3-3
= वच् + त 1-3-13, 3-4-78, 1-4-100, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, त gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = वच् + ते 3-4-79
= वच् + यक् + ते 3-1-67, यक् gets आर्धधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-114
= वच् + य + ते 1-3-3 = व् अ च् + य + ते = उ अ च् + य + ते 6-1-15, 1-1-45 = उच्यते 6-1-108
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् will follow the same steps as those for √एध्, except that instead of the अङ्गम् “एध” the अङ्गम् here will be “उच्य”।
The forms for लँट् will be उच्यते, उच्येते, उच्यन्ते etc.
The forms for लोँट् will be उच्यताम्, उच्येताम्, उच्यन्ताम् etc.
The forms for लँङ् will be औच्यत, औच्येताम्, औच्यन्त etc.
The forms for विधिलिँङ् will be उच्येत, उच्येयाताम्, उच्येरन् etc.
Let us consider √ग्रह्, क्रयादि-गणः, ग्रहँ उपादाने, धातु-पाठः # ९. ७१, लँट्, भावे/कर्मणि।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम्।
ग्रह् + लँट् 3-4-69, 3-2-123 = ग्रह् + ल् 1-3-2, 1-3-3
= ग्रह् + त 1-3-13, 3-4-78, 1-4-100, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, त gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = ग्रह् + ते 3-4-79
= ग्रह् + यक् + ते 3-1-67, यक् gets आर्धधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-114
= ग्रह् + य + ते 1-3-3 = ग् र् अ ह् + य + ते = ग् ऋ अ ह् + य + ते 6-1-16, 1-1-45 = गृह्यते 6-1-108
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् will follow the same steps as those for √एध्, except that instead of the अङ्गम् “एध” the अङ्गम् here will be “गृह्य”।
The forms for लँट् will be गृह्यते, गृह्येते, गृह्यन्ते etc.
The forms for लोँट् will be गृह्यताम्, गृह्येताम्, गृह्यन्ताम् etc.
The forms for लँङ् will be अगृह्यत, अगृह्येताम्, अगृह्यन्त etc.
The forms for विधिलिँङ् will be गृह्येत, गृह्येयाताम्, गृह्येरन् etc.
Let us consider √दा, जुहोत्यादि-गण:, डुदाञ् दाने, धातु-पाठः # ३. १०, लँट्, भावे/कर्मणि।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम्।
दा + लँट् 3-4-69, 3-2-123 = दा + ल् 1-3-2, 1-3-3
= दा + त 1-3-13, 3-4-78, 1-4-100, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, त gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = दा + ते 3-4-79
= दा + यक् + ते 3-1-67, यक् gets आर्धधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-114
= दा + य + ते 1-3-3 = दीयते 6-4-66
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् will follow the same steps as those for √एध्, except that instead of the अङ्गम् “एध” the अङ्गम् here will be “दीय”।
The forms for लँट् will be दीयते, दीयेते, दीयन्ते etc.
The forms for लोँट् will be दीयताम्, दीयेताम्, दीयन्ताम् etc.
The forms for लँङ् will be अदीयत, अदीयेताम्, अदीयन्त etc.
The forms for विधिलिँङ् will be दीयेत, दीयेयाताम्, दीयेरन् etc.
Let us consider √कम्, भ्वादि-गणः, कमुँ कान्तौ, धातु-पाठः #१. ५११, लँट्, कर्तरि प्रयोगः।
कमुँ + णिङ् 3-1-30 = कम् + इ 1-3-2, 1-3-3, 1-3-7 = काम् + इ 7-2-116 = कामि
“कामि” gets धातु-सञ्ज्ञा by 3-1-32.
Since the णिङ्-प्रत्यय: has ङकार: as a इत्, as per 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम्, “कामि” will get आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
प्रथम-पुरुषः, एकवचनम्।
कामि + लँट् 3-2-123 = कामि + ल् 1-3-2, 1-3-3
= कामि + त 3-4-78, 1-4-100, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108, त gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113 = कामि + ते 3-4-79
= कामि + शप् + ते 3-1-68, शप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= कामि + अ + ते 1-3-3, 1-3-8 = कामे + अ + ते 7-3-84 = कामयते 6-1-78
All the remaining forms of लँट्, लोँट्, लँङ् and विधिलिँङ् for this धातु: will follow the same steps as those for √एध्, except that instead of the अङ्गम् “एध” the अङ्गम् here will be “कामय”।
The forms for लँट् will be कामयते, कामयेते, कामयन्ते etc.
The forms for लोँट् will be कामयताम्, कामयेताम्, कामयन्ताम् etc.
The forms for लँङ् will be अकामयत, अकामयेताम्, अकामयन्त etc.
The forms for विधिलिँङ् will be कामयेत, कामयेयाताम्, कामयेरन् etc.
The following table gives the forms for the धातुः √अद् (अदँ भक्षणे, धातु-पाठः # २. १) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
The ending अकारः (which is an इत्) of “अदँ” has a उदात्त-स्वरः। Thus the √अद्-धातुः is devoid of any indications for bringing in आत्मनेपद-प्रत्यया:। (Neither 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम् nor 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले applies.) Therefore, as per 1-3-78 शेषात् कर्तरि परस्मैपदम्, the √अद्-धातुः, in कर्तरि प्रयोग:, will take the परस्मैपद-प्रत्यया: by default.
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अत्ति | अत्तः | अदन्ति |
म०पु | अत्सि | अत्थः | अत्थ |
उ०पु | अद्मि | अद्वः | अद्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √अद् (अदँ भक्षणे, धातु-पाठः # २. १) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अत्तु/अत्तात् | अत्ताम् | अदन्तु |
म०पु | अद्धि/अत्तात् | अत्तम् | अत्त |
उ०पु | अदानि | अदाव | अदाम |
The following table gives the forms for the धातुः √अद् (अदँ भक्षणे, धातु-पाठः # २. १) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | आदत् | आत्ताम् | आदन् |
म०पु | आदः | आत्तम् | आत्त |
उ०पु | आदम् | आद्व | आद्म |
The following table gives the forms for the धातुः √अद् (अदँ भक्षणे, धातु-पाठः # २. १) विधि-लिँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अद्यात् | अद्याताम् | अद्युः |
म०पु | अद्याः | अद्यातम् | अद्यात |
उ०पु | अद्याम् | अद्याव | अद्याम |
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July 23rd 2011
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ओ३म्
The following table gives the forms for the धातुः √हन् (हनँ हिंसागत्योः, धातु-पाठः # २. २) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
The ending अकारः (which is an इत्) of “हनँ” has a उदात्त-स्वरः। Thus the √हन्-धातुः is devoid of any indications for bringing in आत्मनेपद-प्रत्यया:। (Neither 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम् nor 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले applies.) Therefore, as per 1-3-78 शेषात् कर्तरि परस्मैपदम्, the √हन्-धातुः, in कर्तरि प्रयोग:, will take the परस्मैपद-प्रत्यया: by default.
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | हन्ति | हतः | घ्नन्ति |
म०पु | हंसि | हथः | हथ |
उ०पु | हन्मि | हन्वः | हन्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √हन् (हनँ हिंसागत्योः, धातु-पाठः # २. २) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | हन्तु/हतात् | हताम् | घ्नन्तु |
म०पु | जहि/हतात् | हतम् | हत |
उ०पु | हनानि | हनाव | हनाम |
The following table gives the forms for the धातुः √हन् (हनँ हिंसागत्योः, धातु-पाठः # २. २) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अहन् | अहताम् | अघ्नन् |
म०पु | अहन् | अहतम् | अहत |
उ०पु | अहनम् | अहन्व | अहन्म |
The following table gives the forms for the धातुः √हन् (हनँ हिंसागत्योः, धातु-पाठः # २. २) विधि-लिँङ् , कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | हन्यात् | हन्याताम् | हन्युः |
म०पु | हन्याः | हन्यातम् | हन्यात |
उ०पु | हन्याम् | हन्याव | हन्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √यु (यु मिश्रेणे [अमिश्रणे च], धातु-पाठः # २. २७) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
The √यु-धातुः has no इत् letters. It is devoid of any indications for bringing in आत्मनेपद-प्रत्यया:। (Neither 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम् nor 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले applies.) Therefore, as per 1-3-78 शेषात् कर्तरि परस्मैपदम्, the √यु-धातुः, in कर्तरि प्रयोग:, will take the परस्मैपद-प्रत्यया: by default.
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | यौति | युतः | युवन्ति |
म०पु | यौषि | युथः | युथ |
उ०पु | यौमि | युवः | युमः |
The following table gives the forms for the धातुः √यु (यु मिश्रेणे [अमिश्रणे च], धातु-पाठः # २. २७) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | यौतु/युतात् | युताम् | युवन्तु |
म०पु | युहि/युतात् | युतम् | युत |
उ०पु | यवानि | यवाव | यवाम |
The following table gives the forms for the धातुः √या (या प्रापणे, धातु-पाठः # २. ४४) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
The √या-धातुः has no इत् letters. It is devoid of any indications for bringing in आत्मनेपद-प्रत्यया:। (Neither 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम् nor 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले applies.) Therefore, as per 1-3-78 शेषात् कर्तरि परस्मैपदम्, the √या-धातुः, in कर्तरि प्रयोग:, will take the परस्मैपद-प्रत्यया: by default.
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अयात् | अयाताम् | अयुः/अयान् |
म०पु | अयाः | अयातम् | अयात |
उ०पु | अयाम् | अयाव | अयाम |
The following table gives the forms for the धातुः √विद् (विदँ ज्ञाने , धातु-पाठः #२. ५९) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
The ending अकारः of the धातुः “विदँ” has a उदात्त-स्वरः। Thus the √विद्-धातुः is devoid of any indications for bringing in आत्मनेपद-प्रत्यया:। (Neither 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम् nor 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले applies.) Therefore, as per 1-3-78 शेषात् कर्तरि परस्मैपदम्, the √विद्-धातुः, in कर्तरि प्रयोग:, will take the परस्मैपद-प्रत्यया: by default.
णलादि-आदेश-पक्षे
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | वेद | विदतुः | विदुः |
म०पु | वेत्थ | विदथुः | विद |
उ०पु | वेद | विद्व | विद्म |
णलादि-आदेश-अभावपक्षे
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | वेत्ति | वित्तः | विदन्ति |
म०पु | वेत्सि | वित्थः | वित्थ |
उ०पु | वेद्मि | विद्वः | विद्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √विद् (विदँ ज्ञाने , धातु-पाठः #२. ५९) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
आम्-पक्षे
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | विदाङ्करोतु/विदाङ्कुरुतात् | विदाङ्कुरुताम् | विदाङ्कुर्वन्तु |
म०पु | विदाङ्कुरु/विदाङ्कुरुतात् | विदाङ्कुरुतम् | विदाङ्कुरुत |
उ०पु | विदाङ्करवाणि | विदाङ्करवाव | विदाङ्करवाम |
आम्-अभावपक्षे
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | वेत्तु/वित्तात् | वित्ताम् | विदन्तु |
म०पु | विद्धि/वित्तात् | वित्तम् | वित्त |
उ०पु | वेदानि | वेदाव | वेदाम |
The following table gives the forms for the धातुः √विद् (विदँ ज्ञाने , धातु-पाठः #२. ५९) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अवेत्-अवेद् | अवित्ताम् | अविदुः |
म०पु | अवेः/अवेत्-अवेद् | अवित्तम् | अवित्त |
उ०पु | अवेदम् | अविद्व | अविद्म |
The following table gives the forms for the धातुः √विद् (विदँ ज्ञाने , धातु-पाठः #२. ५९) विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | विद्यात् | विद्याताम् | विद्युः |
म०पु | विद्याः | विद्यातम् | विद्यात |
उ०पु | विद्याम् | विद्याव | विद्याम |
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Aug 13th 2011
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ओ३म्
The following table gives the forms for the धातुः √इ (इण् गतौ #२. ४०) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | एति | इतः | यन्ति |
म०पु | एषि | इथः | इथ |
उ०पु | एमि | इवः | इमः |
The following table gives the forms for the धातुः √इ (इण् गतौ #२. ४०) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | एतु-इतात् | इताम् | यन्तु |
म०पु | इहि-इतात् | इतम् | इत |
उ०पु | अयानि | अयाव | अयाम |
The following table gives the forms for the धातुः √इ (इण् गतौ #२. ४०) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ऐत् | ऐताम् | आयन् |
म०पु | ऐः | ऐतम् | ऐत |
उ०पु | आयम् | ऐव | ऐम |
The following table gives the forms for the धातुः √इ (इण् गतौ #२. ४०) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | इयात् | इयाताम् | इयुः |
म०पु | इयाः | इयातम् | इयात |
उ०पु | इयाम् | इयाव | इयाम |
The following table gives the forms for the धातुः √शी (शीङ् स्वप्ने, अदादि-गणः, धातु-पाठः #२. २६) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
The धातुः √शी is a ङित् (has ङकारः as a इत् letter)। Thus by 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम् √शी will get आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | शेते | शयाते | शेरते |
म०पु | शेषे | शयाथे | शेध्वे |
उ०पु | शये | शेवहे | शेमहे |
The following table gives the forms for the धातुः √शी (शीङ् स्वप्ने, अदादि-गणः, धातु-पाठः #२. २६) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | शेताम् | शयाताम् | शेरताम् |
म०पु | शेष्व | शयाथाम् | शेध्वम् |
उ०पु | शयै | शयावहै | शयामहै |
The following table gives the forms for the धातुः √शी (शीङ् स्वप्ने, अदादि-गणः, धातु-पाठः #२. २६) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अशेत | अशयाताम् | अशेरत |
म०पु | अशेथाः | अशयाथाम् | अशेध्वम् |
उ०पु | अशयि | अशेवहि | अशेमहि |
The following table gives the forms for the धातुः √शी (शीङ् स्वप्ने, अदादि-गणः, धातु-पाठः #२. २६) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | शयीत | शयीयाताम् | शयीरन् |
म०पु | शयीथाः | शयीयाथाम् | शयीध्वम् |
उ०पु | शयीय | शयीवहि | शयीमहि |
The following table gives the forms for the धातुः √इ (इङ् अध्ययने | नित्यमधिपूर्वः २. ४१) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
This धातुः always takes the उपसर्गः “अधि”।
√इ (इङ् अध्ययने | नित्यमधिपूर्वः २. ४१) is a ङित् (has ङकारः as a इत् letter)। Thus by 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम् it will get आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
Example: अधीयते।
धातुः-√इ (अदादि-गणः, इङ् अध्ययने | नित्यमधिपूर्वः, धातु-पाठः #२. ४१) with उपसर्गः “अधि”, लँट्, कर्तरि प्रयोगः, प्रथम-पुरुषः, बहुवचनम्।
अधि इ + लँट् 3-2-123 = अधि इ + ल् 1-3-2, 1-3-3
= अधि इ + झ 3-4-78, 1-4-100, 1-4-101, 1-4-102, 1-4-108. झ gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= अधि इ + झे 3-4-79 = अधि इ + शप् + झे 3-1-68, शप् gets सार्वधातुक-सञ्ज्ञा by 3-4-113
= अधि इ + झे 2-4-72
= अधि इ + अते 7-1-5 (Note: Since the सार्वधातुक-प्रत्यय: “अते” is अपित्, by 1-2-4 it behaves ङिद्वत् – as if it has ङकार: as a इत्। Therefore 1-1-5 stops the गुणादेशः on the इकार: of the अङ्गम् which would have been done by 7-3-84.)
= अधि इयते 6-4-77 = अधीयते 6-1-101
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अधीते | अधीयाते | अधीयते |
म०पु | अधीषे | अधीयाथे | अधीध्वे |
उ०पु | अधीये | अधीवहे | अधीमहे |
The following table gives the forms for the धातुः √इ (इङ् अध्ययने | नित्यमधिपूर्वः २. ४१) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अधीताम् | अधीयाताम् | अधीयताम् |
म०पु | अधीष्व | अधीयाथाम् | अधीध्वम् |
उ०पु | अध्ययै | अध्ययावहै | अध्ययामहै |
The following table gives the forms for the धातुः √इ (इङ् अध्ययने | नित्यमधिपूर्वः २. ४१) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अध्यैत | अध्यैयाताम् | अध्यैयत |
म०पु | अध्यैथाः | अध्यैयाथाम् | अध्यैध्वम् |
उ०पु | अध्यैयि | अध्यैवहि | अध्यैमहि |
The following table gives the forms for the धातुः √इ (इङ् अध्ययने | नित्यमधिपूर्वः २. ४१) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अधीयीत | अधीय़ीयाताम् | अधीयीरन् |
म०पु | अधीयीथाः | अधीयीयाथाम् | अधीयीध्वम् |
उ०पु | अधीयीय | अधीयीवहि | अधीयीमहि |
Consider the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे, धातु-पाठः #२. ४) ।
Since the ending अकार: (which is an इत्) of (दुहँ प्रपूरणे २. ४) has a स्वरित-स्वर:, therefore by 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले, this धातुः is उभयपदी। It can take either a आत्मनेपद-प्रत्ययः or परस्मैपद-प्रत्ययः।
The following table gives the forms for the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे) लँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दोग्धि | दुग्धः | दुहन्ति |
म०पु | धोक्षि | दुग्धः | दुग्ध |
उ०पु | दोह्मि | दुह्वः | दुह्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दोग्धु/दुग्धात् | दुग्धाम् | दुहन्तु |
म०पु | दुग्धि/दुग्धात् | दुग्धम् | दुग्ध |
उ०पु | दोहानि | दोहाव | दोहाम |
The following table gives the forms for the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अधोक्/अधोग् | अदुग्धाम् | अदुहन् |
म०पु | अधोक्/अधोग् | अदुग्धम् | अदुग्ध |
उ०पु | अदोहम् | अदुह्व | अदुह्म |
The following table gives the forms for the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दुह्यात् | दुह्याताम् | दुह्युः |
म०पु | दुह्याः | दुह्यातम् | दुह्यात |
उ०पु | दुह्याम् | दुह्याव | दुह्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे #२. ४०) लँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दुग्धे | दुहाते | दुहते |
म०पु | धुक्षे | दुहाथे | धुग्ध्वे |
उ०पु | दुहे | दुह्वहे | दुह्महे |
The following table gives the forms for the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे #२. ४०) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दुग्धाम् | दुहाताम् | दुहताम् |
म०पु | धुक्ष्व | दुहाथाम् | धुग्ध्वम् |
उ०पु | दोहै | दोहावहै | दोहामहै |
The following table gives the forms for the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे #२. ४०) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अदुग्ध | अदुहाताम् | अदुहत |
म०पु | अदुग्धाः | अदुहाथाम् | अधुग्ध्वम् |
उ०पु | अदुहि | अदुह्वहि | अदुह्महि |
The following table gives the forms for the धातुः √दुह् (दुहँ प्रपूरणे #२. ४०) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दुहीत | दुहीयाताम् | दुहीरन् |
म०पु | दुहीथाः | दुहीयाथाम् | दुहीध्वम् |
उ०पु | दुहीय | दुहीवहि | दुहीमहि |
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Aug 27th 2011
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ओ३म्
Consider the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) ।
The इत् letter (अकार:) of the धातुः √लिह् has a स्वरित-स्वरः। Therefore, as per 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले, this धातुः √लिह् can take either परस्मैपद-प्रत्यया: or आत्मनेपद-प्रत्यया:।
The following table gives the forms for the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) लँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | लेढि | लीढः | लिहन्ति |
म०पु | लेक्षि | लीढः | लीढ |
उ०पु | लेह्मि | लिह्वः | लिह्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | लेढु/लीढात् | लीढाम् | लिहन्तु |
म०पु | लीढि/लीढात् | लीढम् | लीढ |
उ०पु | लेहानि | लेहाव | लेहाम |
The following table gives the forms for the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अलेट्/अलेड् | अलीढाम् | अलिहन् |
म०पु | अलेट्/अलेड् | अलीढम् | अलीढ |
उ०पु | अलेहम् | अलिह्व | अलिह्म |
The following table gives the forms for the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | लिह्यात् | लिह्याताम् | लिह्युः |
म०पु | लिह्याः | लिह्यातम् | लिह्यात |
उ०पु | लिह्याम् | लिह्याव | लिह्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) लँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | लीढे | लिहाते | लिहते |
म०पु | लिक्षे | लिहाथे | लीढ्वे |
उ०पु | लिहे | लिह्वहे | लिह्महे |
The following table gives the forms for the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | लीढाम् | लिहाताम् | लिहताम् |
म०पु | लिक्ष्व | लिहाथाम् | लीढ्वम् |
उ०पु | लेहै | लेहावहै | लेहामहै |
The following table gives the forms for the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अलीढ | अलिहाताम् | अलिहत |
म०पु | अलीढाः | अलिहाथाम् | अलीढ्वम् |
उ०पु | अलिहि | अलिह्वहि | अलिह्महि |
The following table gives the forms for the धातुः √लिह् (लिहँ आस्वादने, धातु-पाठः #२. ६) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | लिहीत | लिहीयाताम् | लिहीरन् |
म०पु | लिहीथाः | लिहीयाथाम् | लिहीध्वम् |
उ०पु | लिहीय | लिहीवहि | लिहीमहि |
Let us consider the धातुः √ब्रू (ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि २. ३९) । The ञकार: at the end of “ब्रूञ्” is an इत् by 1-3-3. Therefore, as per 1-3-72, this धातुः √ब्रू can take either परस्मैपद-प्रत्यया: or आत्मनेपद-प्रत्यया:।
The following table gives the forms for the धातुः √ब्रू (ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि २. ३९) , लँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | आह/ब्रवीति | आहतुः/ब्रूतः | आहुः/ब्रुवन्ति |
म०पु | आत्थ/ब्रवीषि | आहथुः/ब्रूथः | ब्रूथ |
उ०पु | ब्रवीमि | ब्रूवः | ब्रूमः |
The following table gives the forms for the धातुः √ लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ब्रवीतु/ब्रूतात् | ब्रूताम् | ब्रुवन्तु |
म०पु | ब्रूहि/ब्रूतात् | ब्रूतम् | ब्रूत |
उ०पु | ब्रवाणि | ब्रवाव | ब्रवाम |
The following table gives the forms for the धातुः √ब्रू (ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि २. ३९) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अब्रवीत् | अब्रूताम् | अब्रुवन् |
म०पु | अब्रवीः | अब्रूतम् | अब्रूत |
उ०पु | अब्रवम् | अब्रूव | अब्रूम |
The following table gives the forms for the धातुः √ब्रू (ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि २. ३९) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ब्रूयात् | ब्रूयाताम् | ब्रूयुः |
म०पु | ब्रूयाः | ब्रूयातम् | ब्रूयात |
उ०पु | ब्रूयाम् | ब्रूयाव | ब्रूयाम |
The following table gives the forms for the धातुः √ब्रू (ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि २. ३९) लँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ब्रूते | ब्रुवाते | ब्रुवते |
म०पु | ब्रूषे | ब्रुवाथे | ब्रूध्वे |
उ०पु | ब्रुवे | ब्रूवहे | ब्रूमहे |
The following table gives the forms for the धातुः √ब्रू (ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि २. ३९) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ब्रूताम् | ब्रुवाताम् | ब्रुवताम् |
म०पु | ब्रूष्व | ब्रुवाथाम् | ब्रूध्वम् |
उ०पु | ब्रवै | ब्रवावहै | ब्रवामहै |
The following table gives the forms for the धातुः √ब्रू (ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि २. ३९) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अब्रूत | अब्रुवाताम् | अब्रुवत |
म०पु | अब्रूथाः | अब्रुवाथाम् | अब्रूध्वम् |
उ०पु | अब्रुवि | अब्रूवहि | अब्रूमहि |
The following table gives the forms for the धातुः √ब्रू (ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि २. ३९) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ब्रवीत | ब्रवीयाताम् | ब्रवीरन् |
म०पु | ब्रवीथाः | ब्रवीयाथाम् | ब्रवीध्वम् |
उ०पु | ब्रवीय | ब्रवीवहि | ब्रवीमहि |
The following table gives the forms for the धातुः √हु (हु दानादनयोः #३.१) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | जुहोति | जुहुतः | जुह्वति |
म०पु | जुहोषि | जुहुथः | जुहुथ |
उ०पु | जुहोमि | जुहुवः | जुहुमः |
The following table gives the forms for the धातुः √हु (हु दानादनयोः #३.१) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | जुहोतु/जुहुतात् | जुहुताम् | जुह्वतु |
म०पु | जुहुधि/जुहुतात् | जुहुतम् | जुहुत |
उ०पु | जुहवानि | जुहवाव | जुहवाम |
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Sept 10th 2011
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The following table gives the forms for the धातुः √हु (हु दानदनयोः #३.१) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अजुहोत् | अजुहुताम् | अजुहवुः |
म०पु | अजुहोः | अजुहुतम् | अजुहुत |
उ०पु | अजुहवम् | अजुहुव | अजुहुम |
The following table gives the forms for the धातुः √हु (हु दानदनयोः #३.१) विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | जुहुयात् | जुहुयाताम् | जुहुयुः |
म०पु | जुहुयाः | जुहुयातम् | जुहुयात |
उ०पु | जुहुयाम् | जुहुयाव | जुहुयाम |
The following table gives the forms for the धातुः √भी (ञिभी भये #३.२) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | बिभेति | बिभितः/बिभीतः | बिभ्यति |
म०पु | बिभेषि | बिभिथः/बिभीथः | बिभिथ/बिभीथ |
उ०पु | बिभेमि | बिभिवः/बिभीवः | बिभिमः/बिभीमः |
The following table gives the forms for the धातुः √भी (ञिभी भये #३.२) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | बिभेतु/बिभितात्/बिभीतात् | बिभिताम्/बिभीताम् | बिभ्यतु |
म०पु | बिभिहि/बिभीहि/बिभितात्/बिभीतात् | बिभितम्/बिभीतम् | बिभित/बिभीत |
उ०पु | बिभयानि | बिभयाव | बिभयाम |
The following table gives the forms for the धातुः √भी (ञिभी भये #३.२) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अबिभेत् | अबिभिताम्/अबिभीताम् | अबिभयुः |
म०पु | अबिभेः | अबिभितम्/अबिभीतम् | अबिभित/अबिभीत |
उ०पु | अबिभयम् | अबिभिव/अबिभीव | अबिभिम/अबिभीम |
The following table gives the forms for the धातुः √भी (ञिभी भये #३.२) विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | बिभियात्/बिभीयात् | बिभियाताम्/बिभीयाताम् | बिभियुः/बिभीयुः |
म०पु | बिभियाः/बिभीयाः | बिभियातम्/बिभीयातम् | बिभियात/बिभीयात |
उ०पु | बिभियाम्/बिभीयाम् | बिभियाव/बिभीयाव | बिभियाम/बिभीयाम |
The following table gives the forms for the धातुः √पॄ (पॄ पालनपूरणयोः #३.४) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | पिपर्ति | पिपूर्तः | पिपुरति |
म०पु | पिपर्षि | पिपूर्थः | पिपूर्थ |
उ०पु | पिपर्मि | पिपूर्वः | पिपूर्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √पॄ (पॄ पालनपूरणयोः #३.४) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | पिपर्तु/पिपूर्तात् | पिपूर्ताम् | पिपुरतु |
म०पु | पिपूर्हि/पिपूर्तात् | पिपूर्तम् | पिपूर्त |
उ०पु | पिपराणि | पिपराव | पिपराम |
The following table gives the forms for the धातुः √पॄ (पॄ पालनपूरणयोः #३.४) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अपिपः | अपिपूर्ताम् | अपिपरुः |
म०पु | अपिपः | अपिपूर्तम् | अपिपूर्त |
उ०पु | अपिपरम् | अपिपूर्व | अपिपूर्म |
The following table gives the forms for the धातुः √पॄ (पॄ पालनपूरणयोः #३.४) विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | पिपूर्यात् | पिपूर्याताम् | पिपूर्युः |
म०पु | पिपूर्याः | पिपूर्यातम् | पिपूर्यात |
उ०पु | पिपूर्याम् | पिपूर्याव | पिपूर्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √हा (ओँहाक् त्यागे #३.९) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | जहाति | जहितः/जहीतः | जहति |
म०पु | जहासि | जहिथः/जहीथः | जहिथ/जहीथ |
उ०पु | जहामि | जहिवः/जहीवः | जहिमः/जहीमः |
The following table gives the forms for the धातुः √हा (ओँहाक् त्यागे #३.९) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | जहातु/जहितात्/जहीतात् | जहिताम्/जहीताम् | जहतु |
म०पु | जहाहि/जहिहि/जहीहि/जहितात्/जहीतात् | जहितम्/जहीतम् | जहित/जहीत |
उ०पु | जहानि | जहाव | जहाम |
The following table gives the forms for the धातुः √हा (ओँहाक् त्यागे #३.९) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अजहात् | अजहिताम्/अजहीताम् | अजहुः |
म०पु | अजहाः | अजहितम्/अजहीतम् | अजहित/अजहीत |
उ०पु | अजहाम् | अजहिव/अजहीव | अजहिम/अजहीम |
The following table gives the forms for the धातुः √हा (ओँहाक् त्यागे #३.९) विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | जह्यात् | जह्याताम् | जह्युः |
म०पु | जह्याः | जह्यातम् | जह्यात |
उ०पु | जह्याम् | जह्याव | जह्याम |
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Sept 24th 2011
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Consider the √भृ-धातुः (डुभृञ् धारणपोषणयोः #३.६).
Since the √भृ-धातुः has ञकारः as इत्, by 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले, √भृ-धातुः is उभयपदी।
The following tables give the forms for the √भृ-धातुः when it takes परस्मैपद-प्रत्ययाः।
The following table gives the forms for the धातुः √भृ (डुभृञ् धारणपोषणयोः #३.६) लँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | बिभर्ति | बिभृतः | बिभ्रति |
म०पु | बिभर्षि | बिभृथः | बिभृथ |
उ०पु | बिभर्मि | बिभृवः | बिभृमः |
The following table gives the forms for the धातुः √भृ (डुभृञ् धारणपोषणयोः #३.६ ) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | बिभर्तु/बिभृतात् | बिभृताम् | बिभ्रतु |
म०पु | बिभृहि/बिभृतात् | बिभृतम् | बिभृत |
उ०पु | बिभराणि | बिभराव | बिभराम |
The following table gives the forms for the धातुः √भृ (डुभृञ् धारणपोषणयोः #३.६) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अबिभः | अबिभृताम् | अबिभरुः |
म०पु | अबिभः | अबिभृतम् | अबिभृत |
उ०पु | अबिभरम् | अबिभृव | अबिभृम |
The following table gives the forms for the धातुः √भृ (डुभृञ् धारणपोषणयोः #३.६) विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | बिभृयात् | बिभृयाताम् | बिभृयुः |
म०पु | बिभृयाः | बिभृयातम् | बिभृयात |
उ०पु | बिभृयाम् | बिभृयाव | बिभृयाम |
Consider the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, धातु-पाठः #३. १०) ।
The “डु” at the beginning of this धातुः gets इत्-सञ्ज्ञा by 1-3-5 आदिर्ञिटुडवः। The ञकारः at the end gets इत्-सञ्ज्ञा by 1-3-3 हलन्त्यम्। Both take लोप: by 1-3-9 तस्य लोपः।
Since the √दा-धातुः has ञकारः as इत्, by 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले, √दा-धातुः is उभयपदी।
The following table gives the forms for the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, ३. १०), लँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ददाति | दत्तः | ददति |
म०पु | ददासि | दत्थः | दत्थ |
उ०पु | ददामि | दद्वः | दद्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, ३. १०), लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ददातु/दत्तात् | दत्ताम् | ददतु |
म०पु | देहि/दत्तात् | दत्तम् | दत्त |
उ०पु | ददानि | ददाव | ददाम |
The following table gives the forms for the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, ३. १०), लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अददात् | अदत्ताम् | अददुः |
म०पु | अददाः | अदत्तम् | अदत्त |
उ०पु | अददाम् | अदद्व | अदद्म |
The following table gives the forms for the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, ३. १०), विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दद्यात् | दद्याताम् | दद्युः |
म०पु | दद्याः | दद्यातम् | दद्यात |
उ०पु | दद्याम् | दद्याव | दद्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, ३. १०), लँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दत्ते | ददाते | ददते |
म०पु | दत्से | ददाथे | दद्ध्वे |
उ०पु | ददे | दद्वहे | दद्महे |
The following table gives the forms for the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, ३. १०), लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दत्ताम् | ददाताम् | ददताम् |
म०पु | दत्स्व | ददाथाम् | दद्ध्वम् |
उ०पु | ददै | ददावहै | ददामहै |
The following table gives the forms for the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, ३. १०), लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अदत्त | अददाताम् | अददत |
म०पु | अदत्थाः | अददाथाम् | अदद्ध्वम् |
उ०पु | अददि | अदद्वहि | अदद्महि |
The following table gives the forms for the धातुः √दा (जुहोत्यादि-गणः, डुदाञ् दाने, ३. १०), विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | ददीत | ददीयाताम् | ददीरन् |
म०पु | ददीथाः | ददीयाथाम् | ददीध्वम् |
उ०पु | ददीय | ददीवहि | ददीमहि |
Consider the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके, धातु-पाठः #३. ११) ।
The “डु” at the beginning of this धातुः gets इत्-सञ्ज्ञा by 1-3-5 आदिर्ञिटुडवः। The ञकारः at the end gets इत्-सञ्ज्ञा by 1-3-3 हलन्त्यम्। Both take लोप: by 1-3-9 तस्य लोपः।
Since the √धा-धातुः has ञकारः as इत्, by 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले, √धा-धातुः is उभयपदी ।
The following table gives the forms for the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके ३. ११), लँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दधाति | धत्तः | दधति |
म०पु | दधासि | धत्थः | धत्थ |
उ०पु | दधामि | दध्वः | दध्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके ३. ११), लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दधातु/धत्तात् | धत्ताम् | दधतु |
म०पु | धेहि/धत्तात् | धत्तम् | धत्त |
उ०पु | दधानि | दधाव | दधाम |
The following table gives the forms for the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके ३. ११), लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अदधात् | अधत्ताम् | अदधुः |
म०पु | अदधाः | अधत्तम् | अधत्त |
उ०पु | अदधाम् | अदध्व | अदध्म |
The following table gives the forms for the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके ३. ११), विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दध्यात् | दध्याताम् | दध्युः |
म०पु | दध्याः | दध्यातम् | दध्यात |
उ०पु | दध्याम् | दध्याव | दध्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके ३. ११), लँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | धत्ते | दधाते | दधते |
म०पु | धत्से | दधाथे | धद्ध्वे |
उ०पु | दधे | दध्वहे | दध्महे |
The following table gives the forms for the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके ३. ११), लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | धत्ताम् | दधाताम् | दधताम् |
म०पु | धत्स्व | दधाथाम् | धद्ध्वम् |
उ०पु | दधै | दधावहै | दधामहै |
The following table gives the forms for the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके ३. ११), लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अधत्त | अदधाताम् | अदधत |
म०पु | अधत्थाः | अदधाथाम् | अधद्ध्वम् |
उ०पु | अदधि | अदध्वहि | अदध्महि |
The following table gives the forms for the धातुः √धा (जुहोत्यादि-गणः, डुधाञ् धारणपोषणयोः | दान इत्यप्येके ३. ११), विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दधीत | दधीयाताम् | दधीरन् |
म०पु | दधीथाः | दधीयाथाम् | दधीध्वम् |
उ०पु | दधीय | दधीवहि | दधीमहि |
Consider the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, धातु-पाठः #३. १२) ।
The इर् in णिजिँर् gets इत्-सञ्ज्ञा by वार्तिकम् इर इत्सञ्ज्ञा वाच्या and takes लोप: by 1-3-9 तस्य लोपः। The णकारः becomes नकारः by 6-1-65 णो नः, so only “निज्” remains. The इकारः in इर् has a स्वरित-स्वरः। Therefore, as per 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले, √निज्-धातुः is उभयपदी ।
The following table gives the forms for the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, ३. १२), लँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | नेनेक्ति | नेनिक्तः | नेनिजति |
म०पु | नेनेक्षि | नेनिक्थः | नेनिक्थ |
उ०पु | नेनेज्मि | नेनिज्वः | नेनिज्मः |
The following table gives the forms for the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, ३. १२), लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | नेनेक्तु/नेनिक्तात् | नेनिक्ताम् | नेनिजतु |
म०पु | नेनिग्धि/नेनिक्तात् | नेनिक्तम् | नेनिक्त |
उ०पु | नेनिजानि | नेनिजाव | नेनिजाम |
The following table gives the forms for the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, ३. १२), लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अनेनेक् | अनेनिक्ताम् | अनेनिजुः |
म०पु | अनेनेक् | अनेनिक्तम् | अनेनिक्त |
उ०पु | अनेनिजम् | अनेनिज्व | अनेनिज्म |
The following table gives the forms for the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, ३. १२), विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:, परस्मैपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | नेनिज्यात् | नेनिज्याताम् | नेनिज्युः |
म०पु | नेनिज्याः | नेनिज्यातम् | नेनिज्यात |
उ०पु | ननिज्याम् | नेनिज्याव | नेनिज्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, ३. १२), लँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | नेनिक्ते | नेनिजाते | नेनिजते |
म०पु | नेनिक्षे | नेनिजाथे | नेनिग्ध्वे |
उ०पु | नेनिजे | नेनिज्वहे | नेनिज्महे |
The following table gives the forms for the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, ३. १२), लोँट्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | नेनिक्ताम् | नेनिजाताम् | नेनिजताम् |
म०पु | नेनिक्ष्व | नेनिजाथाम् | नेनिग्ध्वम् |
उ०पु | नेनिजै | नेनिजावहै | नेनिजामहै |
The following table gives the forms for the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, ३. १२), लँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अनेनिक्त | अनेनिजाताम् | अनेनिजत |
म०पु | अनेनिक्थाः | अनेनिजाथाम् | अनेनिग्ध्वम् |
उ०पु | अनेनिजि | अनेनिज्वहि | अनेनिज्महि |
The following table gives the forms for the धातुः √निज् (जुहोत्यादि-गणः, णिजिँर् शौच-पोषणयोः, ३. १२), विधिलिँङ्, कर्तरि प्रयोग:, आत्मनेपद-प्रत्ययाः ।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | नेनिजीत | नेनिजीयाताम् | नेनिजीरन् |
म०पु | नेनिजीथाः | नेनिजीयाथाम् | नेनिजीध्वम् |
उ०पु | नेनिजीय | नेनिजीवहि | नेनिजीमहि |
Consider the √दिव्-धातुः (दिवादि-गणः, दिवुँ क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु, धातु-पाठः #४. १).
In the धातु-पाठः, the √दिव्-धातुः has one इत् letter which is the अनुनासिक-उकारः । This इत् letter has a उदात्त-स्वरः। Thus the √दिव्-धातुः is devoid of any indications for bringing in आत्मनेपद-प्रत्ययाः। (Neither 1-3-12 अनुदात्तङित आत्मनेपदम् nor 1-3-72 स्वरितञितः कर्त्रभिप्राये क्रियाफले applies.) Therefore, as per 1-3-78 शेषात् कर्तरि परस्मैपदम्, the √दिव्-धातुः, in कर्तरि प्रयोगः, will take the परस्मैपद-प्रत्ययाः by default.
The following table gives the forms for the धातुः √दिव्-धातुः (दिवादि-गणः, दिवुँ क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु, धातु-पाठः #४. १) लँट्, कर्तरि प्रयोगः।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दीव्यति | दीव्यतः | दीव्यन्ति |
म०पु | दीव्यसि | दीव्यथः | दीव्यथ |
उ०पु | दीव्यामि | दीव्यावः | दीव्यामः |
The following table gives the forms for the धातुः √दिव्-धातुः (दिवादि-गणः, दिवुँ क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु, धातु-पाठः #४. १) लोँट्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दीव्यतु/दीव्यतात् | दीव्यताम् | दीव्यन्तु |
म०पु | दीव्य/दीव्यतात् | दीव्यतम् | दीव्यत |
उ०पु | दीव्यानि | दीव्याव | दीव्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √दिव्-धातुः (दिवादि-गणः, दिवुँ क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु, धातु-पाठः #४. १) लँङ्, कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | अदीव्यत् | अदीव्यताम् | अदीव्यन् |
म०पु | अदीव्यः | अदीव्यतम् | अदीव्यत |
उ०पु | अदीव्यम् | अदीव्याव | अदीव्याम |
The following table gives the forms for the धातुः √दिव्-धातुः (दिवादि-गणः, दिवुँ क्रीडाविजिगीषाव्यवहारद्युतिस्तुतिमोदमदस्वप्नकान्तिगतिषु, धातु-पाठः #४. १) विधिलिँङ् , कर्तरि प्रयोग:।
एकवचनम् | द्विवचनम् | बहुवचनम् | |
प्र०पु | दीव्येत् | दीव्येताम् | दीव्येयुः |
म०पु | दीव्येः | दीव्येतम् | दीव्येत |
उ०पु | दीव्येयम् | दीव्येव | दीव्येम |
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