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तिक इत्येवम् आदिभ्यः शब्देभ्यो ऽपत्ये फिञ् प्रत्ययो भवति। तैकायनिः। कैतवायनिः। वृषशब्दो ऽत्र पठ्यते, तस्य प्रत्ययसन्नियोगेन यकारन्तत्वम् इष्यते। वार्ष्यायणिः। कौरव्यशब्दः पठ्यते, स च क्षत्रयवचनः, औरसशब्देन क्ष्त्रियप्रत्ययान्तेन साहचर्यात्। यस् तु कुर्वादिह्यो ण्यः 4-1-151 , तदन्तादिञैव भवितव्यम्। तथा च ण्यक्षत्रियार्षञितो यूनि लुगणिञोः 2-4-58 इत्यत्र उदाहृतं कौरव्यः पित, कौरव्यः पुत्रः इति। तिक। कितव। संज्ञा। बाल। शिखा। उरस्। शाट्य। सैन्धव। यमुन्द। रूप्य। ग्राम्य। नील। अमित्र। गौकक्ष्य। कुरु। देवरथ। तैतिल। औरस। कुअरव्य। भैरिकि। भौलिकि। चौपयत। चैतयत। चैटयत। शैकयत। क्षैतयत। ध्वाजवत। चन्द्रमस्। षुभ। गङ्गा। वरेण्य। सुयामन्। आरद। वह्यका। खल्या। वृष। लोमका। उदन्य। यज्ञ।
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1161 तिकादिभ्य फिञ्। इञोऽपवादः। तैकायनिरिति। फञि आयन्नादेशः।
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