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अञ्जेः सिचि इडागमो भवति। आञ्जीत्, आञ्जीष्टाम्, आञ्जिषुः। सिचि इति किम्? अङ्क्ता अञ्जिता। ऊदित्वाद् विभाषा भवति।
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674 अञ्जेः सिचो नित्यमिट् स्यात्. आञ्जीत्.. तञ्चू संकोचने.. 15.. तनक्ति. तञ्चिता, तङ्क्ता. ओविजी भयचलनयोः.. 16.. विनक्ति.. विङ्क्तः. विज इडिति ङित्त्वम्. विविजिथ. विजिता. अविनक्. अविजीत्.. शिषॢ विशेषणे.. 17.. शिनष्टि. शिं शिंष्टः. शिंषन्ति. शिनक्षि. शिशेष. शिशेषिथ. शेष्टा. शेक्ष्यति. हेर्धिः. शिण्ड्ढि. शिनषाणि. अशिनट्. शिंष्यात्. शिष्यात्. अशिषत्.. एवं पिषॢ संचूर्णने.. 18.. भञ्जो आमर्दने.. 19.. श्नान्नलोपः. भनक्ति. बभञ्जिथ, बभङ्क्थ. भङ्क्ता. भङ्ग्धि. अभाङ्क्षीत्.. भुज पालनाभ्यवहारयोः.. 20.. भुनक्ति. भोक्ता. भोक्ष्यति. अभुनक्..
926 अञ्जेः सिचि। `इडत्त्यर्ती' त्यत इडित्यनुवर्तते। ऊदित्?तवादेव सिद्धे नित्यार्थमिदम्। तदाह – अञ्जेरित्यादिना। तञ्चू सङ्कोचने। नोपधः कृतपरसवर्णनिर्देशः। अञ्जूवद्रूपाणि यथायोग्यमूह्रानि। ओ विजीति। ओकार इत्। अनिट्सु इरितो ग्रहणादयं सेट्। रुधादयः। रुधादयः॥
1037 अञ्जेः सिचि। नित्यमिट् स्यादिति। विभाषाग्रहमं नानुवर्तत इति भावः। सिचि किम् ?। अङ्क्ता। पृची। ईदित्त्वान्निष्ठायां नेट्। पृक्तः `अपृक्त एका'लित्यत्र नञ्पूर्वः।\र्\निति तत्त्वबोधिन्याम् रुधादयः।
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