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5-2-135 पुष्कराऽदिभ्यो देशे

प्रथमावृत्तिः

TBD.

काशिका

पुष्कर इत्येवम् आदिभ्यः प्रातिपदिकेभ्य इनिः प्रत्ययो भवति समुदायेन चेद् देशो ऽभिधीयते। पुष्करिणी। पद्मिनी। देशे इति किम्? पुस्करवान् हस्ती। इनिप्रकरणे बलाद् बहूरुपूर्वादुपसङ्ख्यानम्। बाहुवली। ऊरुबली। सर्वादेश्च। सर्वधनी। सर्वबीजी। सर्वकेशी नटः। अर्थाच् च असन्निहिते। अर्थी। असन्निहिते इति किम्? अर्थवान्। तदन्ताच् च इति वक्तव्यम्। धान्यार्थी। हिरण्यार्थी। पुष्कर। पद्म। उत्पल। तमाल। कुमुद। नड। कपित्थ। बिस। मृणाल। कर्दम। शालूक। विगर्ह। करीष। शिरीष। यवास। प्रवास। हिरण्य। पुष्करादिः।

Ashtadhyayi (C.S.Vasu)

TBD.

लघु

बालमनोरमा

1915 पुष्करादिभ्यो देशे। पुष्करशब्दान्मत्वर्थे इनिरेव स्याद्देशे गम्ये। एतत्पूर्वपदकाद्बलशब्दान्तान्मत्वर्थे इनिरेवेत्यर्थः। वार्तिकमिदम्।`इनिरेवे'ति शेषः। \र्\नर्थाच्चासंनिहिते इति। वार्तिकमिदम्। असन्निहितविषयकादर्थशब्दादनिरेवेत्यर्थः। अर्थीति। असंनिहितोर्थोऽस्येति विग्रहः। अर्थो नास्तीति यावत्। ?त्र विरोधादस्तीति न सम्बध्यते। अर्थोऽसंनिहितोऽस्येत्यर्थे अप्राप्त एव इनिर्विधीयत इति कैयटः। तदन्तविधिनिषेधादाह–तदन्ताच्चेति। अर्थशब्दान्तादपि इनिर्वक्तव्य इत्यर्थः।

तत्त्वबोधिनी

Satishji's सूत्र-सूचिः

TBD.