Table of Contents

<<5-1-127 —- 5-1-129>>

5-1-128 पत्यन्तपुरोहितादिभ्यो यक्

प्रथमावृत्तिः

TBD.

काशिका

पत्यन्तात् प्रातिपदिकात् पुरोहितादिभ्यश्च यक् प्रत्ययो भवति भावकर्मणोरर्थयोः। सेनापतेः भावः कर्म वा सैनापत्यम्। गार्हपत्यम्। प्राजापत्यम्। पौरोहित्यम्। राज्यम्। पुरोहित। राजन्। संग्रामिक। एषिक। वर्मित। खण्डिक। दण्डिक। छत्रिक। मिलिक। पिण्डिक। बाल। मन्द। स्तनिक। चूडितिक। कृषिक। पूतिक। पत्रिक। प्रतिक। अजानिक। सलनिक। सूचिक। शाक्वर। सूचक। पक्षिक। सारथिक। जलिक। सूतिक। अञ्जलिक। राजासे। पुरोहितादिः।

Ashtadhyayi (C.S.Vasu)

TBD.

लघु

1166

बालमनोरमा

1770 पत्यन्त। पत्यन्तेभ्यः पुरोहितादिभ्यश्च षष्ठ\उfffद्न्तेभ्यो भावकर्मणोर्याक्स्यादित्यर्थः। राजासे इति। पुरोहितादिगणसूत्रमिदम्। राजा असे इति च्छेदः। `स' इति समासस्य प्राचां संज्ञा। तदाह–राजन्शब्द इति राज्यमिति। यकि टिलोपः। `ये चाऽभावकर्मणो'रिति प्रकृतिभावस्तु न, `अभावकर्मणो'रिति पर्युदासात्। समाऽसे त्विति। अदिको राजा अदिराजः। प्रादिसमासः। `असे' इति पर्युदासाद्यगभावे ब्राआहृणादित्वात्ष्यञि आधिराज्यमिति रूपमित्यर्थः। यक्ष्यञोः स्वरे विशेषः।

तत्त्वबोधिनी

Satishji's सूत्र-सूचिः

TBD.