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दिशित्येवम् आदिभ्यः प्रातिपदिकेभ्यः यत् प्रत्ययो भवति तत्र भवः इत्येतस्मिन् विषये। अणश्छस्य च अपवादः। दिशि भवम् दिश्यम्। वर्ग्यम्। मुखजघनशब्दयोरशरीरावयवार्थः पाठः, सेनामुख्यम्, सेनाजघन्यम् इति। दिश्। वर्ग। पूग। गण। पक्ष। धाय्या। मित्र। मेधा। अन्तर। पथिन्। रहस्। अलीक। उखा। साक्षिन्। आदि। अन्त। मुख। जघ्न। मेघ। यूथ। उदकात् संज्ञयाम्। न्याय। वंश। अनुवंश। विश। काल। अप्। आकाश। दिगादिः।
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1096 दिश्यम्. वर्ग्यम्..
1408 दिगादिभ्यो यत्। `भव इत्यर्थे सप्तम्यन्तेभ्यः' इति शेषः। दिश्यमिमि। दिशि भवमित्यर्थः।
1106 दिगादिभ्यो। `दिश्, वर्ग, पूग, पक्ष, रहस्, उखा, साक्षिन्, आदि, अन्त, मुख, जघन, मेघ,यूथ, `उदकात्संज्ञायां'न्याय, वंश, काल्येत्यादि दिगादिः। मुखजघनयोः पाठोऽत्राऽशरीरावयवार्थः। सेनाया मुखे जघने च भवं—-मुख्यम्। जघन्यम्।
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