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अरण्यशब्दाद् वुञ् प्रत्ययो भवति शैसिको मनुस्ये ऽभिधेये। औपसङ्ख्यानिकस्य णस्य अपवादः। आरण्यको मनुस्यः। पथ्याध्यायन्यायविहारमनुस्यहस्तिषु इति वक्तव्यम्। आरण्यकः पन्थाः। आरण्यको ऽध्यायः। आरण्यको न्यायः। आरण्यको विहारः। आरण्यको मनुष्यः। आरण्यको हस्ती। वा गोमयेसु। आरण्याः, आरण्यका गोमयाः। एतेसु इति किम्? आरण्याः पशवः।
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1334 अरण्यान्मनुष्ये। आरण्यक इति। पन्था अध्यायो न्यायो विहारो मनुष्यो हस्ती वा। वा गोमयेष्विति। वार्तिकमिदम्।
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